बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहा है. बिहार के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो इस लिस्ट में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर अपने संघर्षों से पूरा किया. बावजूद इसके उनकी सादगी नहीं गई. कर्पूरी ठाकुर जो मुख्यमंत्री का एक टर्म गुजार चुके थे लेकिन उनका फटा कुर्ता देख चंद्रशेखर ने उनके लिए चंदा जुटाया और उन्हें कुछ नए कुर्ते खरीदने की सलाह दी थी. इतना ही नहीं, ये मुख्यमंत्री उधार का कोट लेकर विदेश गए थे क्योंकि उनके पास खुद का कोई कोट था ही नहीं.
दी लल्लनटॉप के चुनावी किस्से में एक किस्सा 1974 का है. उस वक्त पिछड़े वर्ग से आने वाले नेता कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री के रूप एक साल कुर्सी संभाल चुके थे. वह 20 दिसंबर 1970 से 1971 तक मुख्यमंत्री थे. इसके बाद 1974 में जेपी आंदोलन के तहत बिहार में छात्र आंदोलन चरम पर था. जेपी के आवास पर एक मीटिंग हुई थी जिसमें लगभग सभी दलों के नेता शामिल हुए थे.
चंद्रशेखर की पड़ी नजर :
इस मीटिंग में मौजूद रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के मुताबिक दिल्ली से चंद्रशेखर भी बैठक में पहुंचे थे. यहां पहुंचे कर्पूरी ठाकुर को फटे कुर्ते में देखकर उन्होंने सभी उपस्थित लोगों से चंदा के रूप में कुछ न कुछ देने का कहा. करीब सौ-डेढ़ सौ रुपये जुटा कर उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के हाथ में रखे और कहा कि अपने लिए भी कुछ सोचा कीजिए और कुछ नये कुर्ते खरीद लीजिए. कर्पूरी ये रुपये ले नहीं रहे थे लेकिन चंद्रशेखर की जिद के बाद उन्होंने संकोच भाव से रुपये रख लिए.
यूगोस्लाविया राष्ट्रपति ने गिफ्ट किया कोट:
दूसरी कहानी कर्पूरी ठाकुर की विदेश यात्रा से जुड़ी है. 1952 में वह पहली बार विधायक बने. 1952 में विधि निर्माता प्रतिनिधि समिति का एक प्रतिनिधि मंडल ऑस्ट्रेलिया और यूरोप दौर पर गया जिसमें कर्पूरी भी शामिल थे. यूरोप की ठंड से सभी वाकिफ थे. उन्हें कोट रखने की सलाह दी गयी. चूंकि उनके पास अपना कोट नहीं था इसलिए उन्होंने अपने एक मित्र से पुराना कोट उधार लिया. यूगोस्लाविया पहुंचने पर उन्होंने कोट पहना जो वहां की ठंड के लिहाज से नाकाफी था. वहां के राष्ट्रपति मार्शल टीटो ने जब कर्पूरी ठाकुर का कोट देखा तो उनके लिए एक नये कोट का प्रबंध कर उन्हें गिफ्ट किया था.
ऐसे बने पहली बार मुख्यमंत्री :
कर्पूरी ठाकुर के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की घटना की नींव थी 1969 को विधानसभा चुनाव जब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. खंडित जनादेश के बीच संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने सरकार बनाई. इसमें जनसंघ, कांग्रेस के असंतुष्ट दल के लोग तथा कई छोटे दल शामिल थे. चार माह में दो बार मुख्यमंत्री बदले जा चुके थे. जनसंघ से हुए मतभेद के चलते एक साल बाद दोबारा चुनाव हुए. इस बार भी किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के विधायक दल के नेता थे कर्पूरी ठाकुर. मुख्यमंत्री पद को लेकर जिरह चल रही थी. इसी बीच कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने पर संसोपा के प्रमुख नेता बाहर चल गए और इधर कर्पूरी ठाकुर ने जनसंघ, कांग्रेस और छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया और खुद मुख्यमंत्री के रूप में 22 दिसंबर 1970 को शपथ ली.
अविश्वास प्रस्ताव के पूर्व इस्तीफा:
मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर की पहली पारी बहुत ही दुश्वारियों से भरी थी. सबको खुश करने के चक्कर में उन्होंने सात सप्ताह में पांच बार मंत्रीमंडल का विस्तार किया. बावजूद असंतोष कम नहीं हुआ. एक साल बाद कांग्रेस-आर ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया. हालांकि इस पर बहस के पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. दूसरी बार वह 1977 में मुख्यमंत्री बने जब बिहार में जनता पार्टी की बड़ी जीत हुए और इस पार्टी के सबसे बड़े घटक दल के तौर लोकदल के कर्पूरी ठाकुर को मौका मिल ही गया.
आरक्षण के बाद बढ़ा विरोध:
मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरे कार्यकाल में कर्पूरी ठाकुर ने मुंगेरीलाल कमीशन की रिपोर्ट पर बिहार में पिछड़े वर्ग के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. हालांकि यही चीज उनके बड़े विरोध की वजह बनी. सरकार के अंदर ही विरोध चल रहा था. 11 अप्रैल 1979 को जमशेदपुर में भड़के दंगे के बाद उनकी कुर्सी हिल गयी. केंद्रीय नेतृत्व ने पाया कि ज्यादातर विधायक उनके खिलाफ थे लिहाजा उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद उनकी लम्बी पारी नेता प्रतिपक्ष के रूप में चली लेकिन 1987 में उनसे यह दर्जा भी छिन गया.