
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव दिल्ली में हैं. तेजस्वी ने मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. महागठबंधन के नेताओं की 17 अप्रैल को पटना में होने वाली बैठक से पहले महत्वपूर्ण मानी जा रही इस बैठक को लेकर तेजस्वी यादव ने कहा कि सकारात्मक बातचीत हुई है.
सीएम फेस को लेकर सवाल पर उन्होंने कहा कि चुनाव के पहले तय करना है या बाद में, हम लोग चर्चा करके इस पर फैसला लेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बैठक का वीडियो पोस्ट कर कहा कि तेजस्वी यादव से मुलाकात कर महागठबंधन की मजबूती पर चर्चा की. बिहार की जनता को हम एक सशक्त, सकारात्मक, न्यायप्रिय और कल्याणकारी विकल्प देंगे. दो पुराने सहयोगी दलों के शीर्ष नेताओं की ये बैठक ऐसे समय हुई है, जब रिश्ते उतने सहज नहीं दिख रहे.
बिहार में नैसर्गिक रूप से लालू यादव की अगुवाई वाले आरजेडी को कांग्रेस का बड़ा भाई माना जाता है. 1999 से अब तक विधानसभा चुनाव देखें तो ऐसा ही है भी, लेकिन कांग्रेस नेताओं के हालिया बयान सहज संबंधों की असहजता बयान करते हैं. बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाए जाने के बाद कृष्णा अल्लावरु यह साफ कह चुके हैं कि पार्टी यहां अब किसी की बी टीम बनकर नहीं रहेगी. वह प्रभारी बनाए जाने के बाद कई बार पटना पहुंचे, लेकिन लालू यादव से औपचारिक मुलाकात से भी परहेज किया.
पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी बुलाया गया तो वहीं कन्हैया कुमार की पलायन रोको, नौकरी दो पदयात्रा में खुद राहुल गांधी शामिल हुए. पप्पू यादव और कन्हैया कुमार, इन दोनों ही नेताओं को लेकर ये कहा जाता है कि इन्हें लालू यादव पसंद नहीं करते. कन्हैया की यात्रा के समापन के मौके पर पटना पहुंचे कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने यह कह दिया कि मुख्यमंत्री कौन होगा, यह महागठबंधन को जनादेश मिलने पर घटक दलों के नेता बैठकर तय करेंगे.
आरजेडी पहले ही यह साफ कर चुकी है कि उसका सीएम फेस तेजस्वी यादव हैं. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनानी है. ऐसे में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की बढ़ी सक्रियता, अल्लावरु और सचिन पायलट के बयान से बड़े भाई का सवाल और गहरा हो गया है. कांग्रेस को कोशिश अब यह संदेश देने की है कि लालू यादव की पार्टी महागठबंधन की इकलौती ड्राइविंग फोर्स नहीं है. दोनों दलों के नेताओं के बीच चल रही परसेप्शन की लड़ाई के बीच शीर्ष नेताओं की बैठक में बात चुनावी रणनीति को लेकर भी हुई.
बिहार चुनाव में कौन क्या चाह रहा?
बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग महागठबंधन के लिए सिरदर्द बनता दिख रहा है. हर दल अपने मन की मुराद पूरी करने पर अडिग रह सहयोगियों से कु्र्बानी चाह रहा है. कांग्रेस की कोशिश है कि सीटों की संख्या अधिक नहीं तो 2020 के विधानसभा चुनाव से कम भी न हो. कांग्रेस का फोकस इस बार अधिक से अधिक ऐसी सीटें हासिल करने पर है जहां पार्टी मजबूत स्थिति में है या जीतने की संभावनाएं भी हैं. कांग्रेस पिछली बार की तरह महज संख्या गिनाने के लिए ऐसी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती जो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का गढ़ मानी जाती हैं.
2020 में कांग्रेस को मिली 70 में से 45 सीटें ऐसी थीं जिन्हें बीजेपी या जेडीयू का गढ़ माना जाता है. इन सीटों पर हाथ का पंजा चुनाव निशान वाली पार्टी तीन या इससे अधिक चुनावों से नहीं जीत पाई थी. कांग्रेस इस बार इस तरह की परिस्थितियों से बचने, अपनी जीत की मजबूत संभावना वाली सीटें चाहती है. वहीं, आरजेडी चाहती है कि कांग्रेस और अन्य सहयोगियों को कम से सम सीटों पर सहमत कर अधिक से अधिक सीटों पर लालटेन निशान वाले उम्मीदवार उतारें. मुश्किल ये है कि लेफ्ट भी अधिक सीटें चाहता है.
महत्वाकांक्षी मुकेश सहनी भी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के लिए 60 सीटों के साथ डिप्टी सीएम पद की दावेदारी कर चुके हैं. एक दिन पहले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से एग्जिट का ऐलान करने वाले पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) और आईपी गुप्ता की पार्टी भी अगर महागठबंधन में शामिल होती है तो इन दलों को एडजस्ट करने की चुनौती भी है. आरजेडी महागठबंधन के इंजन की भूमिका में रहते हुए सहयोगी दलों से कुर्बानी की उम्मीद पाले है तो वहीं सहयोगी दल भी यही उम्मीद लालू की पार्टी से कर रहे हैं.
सीटों को लेकर क्यों फंसा है पेच
सीट शेयरिंग के फॉर्मूलों की बात करें तो महागठबंधन में जीती सीटों को लेकर कोई पेच नहीं है, लड़ाई पिछले चुनाव की हारी सीटों को लेकर है. आरजेडी किसी भी हाल में कांग्रेस को 50 से ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं दिख रही तो वहीं कांग्रेस 70 सीटों से कम पर तैयार नहीं. पिछले चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी आरजेडी सत्ता से दूर रह गई तो इसका ठीकरा तब कांग्रेस पर ही फूटा था.
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पिछले चुनाव में कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट और आरजेडी के पैन बिहार मजबूत प्रभाव का हवाला देकर आरजेडी चाहती है कि इस बार 150 से ज्यादा सीटें अपने पास रखी जाएं. लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग के दौरान लालू यादव ने कांग्रेस को एक-एक सीट के लिए पानी पिला दिया था. कांग्रेस की कोशिश तब लालू की ओर से रचे व्यूह में ही इस बार आरजेडी को उलझा 70 सीटें हासिल करने की है, वह भी अपनी मनपसंद.
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वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क के मुताबिक पहले पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को प्रमोट किया जाना और अब सचिन पायलट का सीएम फेस पर हालिया बयान, कांग्रेस की रणनीति आरजेडी की दुखती रग दबाने की है. कांग्रेस ने आरजेडी को ऐसे फेर में उलझा दिया है कि वह स्ट्राइक रेट का भी हवाला नहीं दे पा रही. कांग्रेस की रणनीति विधानसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर बातचीत से पहले अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने की नजर आती है और इसी का असर है कि महागठबंधन की पटना में बैठक से तेजस्वी को दिल्ली जाना पड़ा.
पिछले चुनाव में क्या था फॉर्मूला
हर चुनाव में सीट शेयरिंग के लिए सियासी दल पिछले चुनाव को 'आधार' के तौर पर लेते हैं. बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग की बात करें तो साल 2020 के चुनाव में आरजेडी ने महागठबंधन में सबसे अधिक 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस के हिस्से 70 सीटें आई थीं. लेफ्ट को 29 सीटें मिली थीं. इस बार के चुनाव में अगर पशुपति पारस की पार्टी भी महागठबंधन के साथ आती है तो आरजेडी के सामने वीआईपी के साथ आरएलजेपी को भी एडजस्ट करने की चुनौती होगी.