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कुशवाहा, सम्राट चौधरी, पीके और अब चिराग... बिहार में हर कोई नीतीश का विकल्प बनने की लड़ाई में

बिहार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की रेस शुरू हो गई है. जेडीयू '2025 से 30, फिर से नीतीश' का नारा देकर मैदान में है. वहीं, बिहार में नीतीश का विकल्प बनने की लड़ाई भी छिड़ी हुई है.

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बिहार में सीएम के लिए नीतीश कुमार का विकल्प बनने की रेस
बिहार में सीएम के लिए नीतीश कुमार का विकल्प बनने की रेस

बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार के 'फ्यूचर ऑफ्टर पोल' पर बहस छिड़ी है. बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) ने '2025 से 30, फिर से नीतीश' का नारा दे दिया है. जेडीयू के गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर अन्य दलों तक, सभी यह तो कह रहे हैं कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में ही लड़ा जाएगा. लेकिन कोई भी खुलकर यह नहीं कह रहा कि सीएम नीतीश कुमार ही होंगे. विपक्षी दल नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र, स्वास्थ्य का हवाला देकर यह दावे करते फिर रहे हैं कि चुनाव के बाद वह सीएम नहीं बनेंगे.

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एनडीए में शामिल पार्टियां और उनके नेता जहां इस कोशिश में जुटे हैं कि नीतीश कुमार को सीएम रेस में शामिल दिखाते रहने की कोशिश में हैं. वहीं, विपक्षी दलों के साथ ही अंदरखाने भी नीतीश का विकल्प बनने की लड़ाई छिड़ती दिख रही है. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर के बीच नीतीश कुमार का विकल्प बनने की नूरा-कुश्ती चल ही रही थी कि अब इसमें लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का नाम भी शामिल हो गया है.

नीतीश का विकल्प बनने की रेस में ये नेता

बिहार की सियासत में नीतीश कुमार का विकल्प बनने की रेस वैसे तो पहले ही शुरू हो गई थी, लेकिन इसे रफ्तार मिली 2020 के चुनाव में प्रचार के अंतिम दिए उनके एक बयान से. नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव के लिए प्रचार के अंतिम दिन एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इमोशनल कार्ड चलते हुए कहा था- यह मेरा अंतिम चुनाव है. नीतीश के इस ऐलान के बाद विपक्षी महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार रहे आरजेडी के तेजस्वी यादव होड़ में थे ही, एक-एक कर नाम जुड़ते चले गए.

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उपेंद्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय कर दिया. उपेंद्र कुशवाहा की उम्र, अनुभव और समीकरण के साथ जेडीयू संसदीय दल का नेता बनाया जाना भी सीएम पद के लिए नीतीश कुमार का विकल्प बनने की उनकी दावेदारी को और पुख्ता कर रहे थे. उपेंद्र कुशवाहा कोइरी वर्ग से आते हैं, जो नीतीश कुमार के लव-कुश (कुर्मी, कोइरी) समीकरण में भी फिट बैठते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश के विकल्प के तौर पर देखा भी जाने लगा था कि तस्वीर बदल गई. नीतीश के एनडीए का हाथ झटक आरजेडी से गठबंधन कर लेने के बाद वह पार्टी में हाशिए पर चले गए. नीतीश कुमार के खिलाफ मुखर हो गए और बाद में पार्टी छोड़ अपना दल बना लिया. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी एनडीए में ही है, लेकिन सियासी हैसियत के लिहाज से देखें तो काफी पीछे नजर आती है.

सम्राट चौधरी

बिहार बीजेपी के अध्यक्ष रहे सम्राट चौधरी हैं तो पुराने नेता, लेकिन 2020 के बिहार चुनाव के बाद उन्होंने सियासी मानचित्र पर खुद को मजबूती से स्थापित किया. ऊर्जावान नेताओं में गिने जाने वाले सम्राट बिहार में नीतीश कुमार के सबसे मुखर विरोधियों में गिने जाते थे. बीजेपी ने सम्राट को बिहार बीजेपी की कमान सौंप दी, तो इसे नीतीश कुमार का विकल्प पेश करने, उनकी छाया से बाहर निकलने की रणनीति से जोड़कर ही देखा गया.

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मुरेठा सम्राट चौधरी की पहचान से जुड़ गया और उन्होंने कसम भी खाई कि जब तक नीतीश को सीएम पद से हटा नहीं देंगे, मुरेठा नहीं खुलेगा. सम्राट भी उपेंद्र कुशवाहा की ही तरह कोइरी वर्ग से आते हैं. नीतीश कुमार जब महागठबंधन का दामन झटक फिर से एनडीए में लौटे, सम्राट को सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया. बिहार बीजेपी के सबसे बड़े चेहरों में गिने जाने वाले सम्राट भी बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प बनने की होड़ में शामिल माने जाते हैं.

प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के शिष्यों के दौर से आगे निकल रही बिहार की सियासत के प्रमुख युवा चेहरों में गिने जाते हैं. गैर राजनीतिक बैकग्राउंड से आए पीके चुनाव रणनीतिकार रहे हैं, 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश की अगुवाई वाले महागठबंधन को एनडीए का विजय रथ रोककर जीत दिलाने का सेहरा उनके ही सिर सजा था. पीके ने जेडीयू में शामिल होकर सियासी डेब्यू किया, जॉइनिंग के महीनेभर के भीतर ही नीतीश कुमार ने उन्हें उपाध्यक्ष बना दिया. पीके जेडीयू में नीतीश के उत्तराधिकारी तक माने लगे थे, लेकिन यह सफर अधिक लंबा नहीं चला.

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पीके ने जेडीयू छोड़ दी और जन सुराज पदयात्रा पर निकल पड़े. पीके अब जन सुराज पार्टी के साथ चुनावी रिंग में उतर आए हैं और लगातार बिहार के सत्ताधारी गठबंधन को घेरने के साथ ही लालू परिवार पर भी हमलावर हैं. पीके की कोशिश जन सुराज के रूप में बिहार को एनडीए और महागठबंधन से अलग एक तीसरा विकल्प देने की है. पीके का नाम भी सीएम पद के लिए नीतीश का विकल्प बनने की होड़ में शामिल माना जा रहा है.

चिराग पासवान

बिहार में सम्राट चौधरी और पीके के मजबूत सियासी उभार के पहले सीएम के लिए जिन युवा नेताओं को मजबूत दावेदार माना जाता था, उनमें तेजस्वी यादव के साथ ही चिराग पासवान का नाम भी लिया जाता था. चिराग ने 2020 का चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया, तो इसे भी अपनी बारगेन पावर बढ़ाने और तीसरी ताकत के रूप में उभरने की कोशिश से जोड़कर ही देखा गया.

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चिराग पासवान ने इस चुनाव से पहले 243 सीटों पर लड़ने की बात कह हलचल बढ़ा दी है, तो इसके पीछे भी उनकी सियासी महत्वाकांक्षाएं ही बताई जा रही हैं. चिराग पासवान का यह कहना कि हमारा गठबंधन सिर्फ बिहार की जनता से है, उनके फिर से सीएम रेस में उतरने का संकेत बताया जा रहा है और उनकी पार्टी उन्हें सीएम फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करने में भी जुट गई है.

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