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'मिशन दिल्ली' के लिए BJP का साइलेंट प्लान, AAP को पछाड़ने के लिए इन इलाकों पर फोकस

बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में इस बार काफी बदलाव किया है. बीजेपी शहरी क्षेत्रों की बजाय राजधानी के बाहरी निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है तांकि अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मजबूती से चुनावी अभियान को आगे बढ़ाया जा सके.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने बनाई खास रणनीति (File Photo)
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने बनाई खास रणनीति (File Photo)

दिल्ली में इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है. आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबले ने राष्ट्रीय राजधानी के सियासी परिदृश्य को काफी हद तक बदल दिया है. जहां मीडिया समेत सभी का ध्यान नई दिल्ली और आसपास के इलाकों पर है, वहीं दिल्ली के बाहरी इलाकों में गुपचुप तरीके से बदलाव की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है.

इस बार भाजपा हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे ग्रामीण इलाकों में बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है. दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है इसलिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में इन दो राज्यों से आए कार्यकर्ताओं का समर्थन भी काम आ रहा है. भाजपा को पिछले कुछ चुनावों में ग्रामीण और आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने में काफी संघर्ष करना पड़ा है, लेकिन इस बार बीजेपी आलाकमान अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली AAP का मुकाबला करने के लिए इन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है.

बीजेपी ने बनाया खास प्लान

गुरुवार को भाजपा ने विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ नेताओं की रैलियों की एक सीरीज शुरू की. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली में अपना अभियान शुरू कर दिया है. प्रचार कार्यक्रम में एक बात जो आम है, वह यह है कि ये सभी नेता ग्रामीण जनसांख्यिकी वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. कुछ ऐसे कारक हैं जो अपराजित रही AAP और सुधरती कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के बेहतर प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

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स्थानीय नेताओं और सर्वेक्षण रिपोर्टों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर भाजपा दिल्ली के सीमावर्ती क्षेत्रों को साध रही है. यहां हम वो पांच कारण बता रहे हैं जो बाहरी दिल्ली के क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी के खिलाफ बढ़त बनाने में बीजेपी के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं-

पड़ोसी राज्यों से कैडर का उपयोग करना: भाजपा देश भर में अपने विशाल कैडर बेस के लिए जानी जाती है. दिल्ली यूनिट 25 से अधिक वर्षों से विपक्षी दलों को सत्ता से बेदखल करने के लिए संघर्ष कर रही है. हाल ही में, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भाजपा मजबूत हुई है. कुछ महीने पहले, पार्टी ने हरियाणा में एक अप्रत्याशित जीत हासिल की.

​​दिल्ली हरियाणा से इस तरह सटी हुई है कि उसकी दो-तिहाई सीमाएं राज्य से जुड़ी हुई हैं. दोनों राज्यों का राजनीतिक प्रभाव दिल्ली में होना तय है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय दिल्ली कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ी भावनात्मक बढ़ावा के रूप में हरियाणा की जीत का पूरा उपयोग कर रहा है. हरियाणा में जीत ने दिल्ली में स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं को यह विश्वास दिलाया कि राष्ट्रीय राजधानी अजेय नहीं है.

भाजपा ने जाटों को दिल्ली की आबादी के मुकाबले ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया है: हरियाणा की सीमा से सटे गांवों में जाट समुदाय की अच्छी-खासी मौजूदगी है. राजनीतिक रूप से इस समुदाय का खासा प्रभाव है. दिल्ली के पहले सीएम चौधरी ब्रह्म प्रकाश जाट नेता थे. बाद में, 1993 में नई शासन प्रणाली को अपनाने पर साहिब सिंह वर्मा सीएम बने. राष्ट्रीय राजधानी की जनसांख्यिकी में बदलाव ने पिछले कुछ सालों में समुदाय की राजनीतिक ताकत को कम कर दिया है.

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अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में जाटों की आबादी 5-6% के बीच है और वह भी कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ही केंद्रित है. लेकिन इस बार भाजपा ने 68 में से 11 टिकट जाट नेताओं को दिए हैं, जो कुल उम्मीदवारों का करीब 16% है. पार्टी को लगता है कि समुदाय का समर्थन उन्हें उन कई सीटों पर जीत दिलाने में मदद करेगा, जहां समुदाय का राजनीतिक दबदबा है.

परंपरागत पंजाबी-बनिया वोट बैंक के बजाय जाट-गुर्जर गठबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रही है बीजेपी: लंबे समय तक भाजपा मुख्य रूप से पंजाबी और वैश्य वोट बैंक पर निर्भर थी. दिल्ली के व्यापारी पहले भाजपा को बड़े पैमाने पर वोट देते थे. लेकिन, AAP के आने के बाद, इनमें से एक बड़ा वोटर अरविंद केजरीवाल के पास चला गया. अब, भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में एक नया मतदाता आधार तलाश रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में, कई निर्वाचन क्षेत्रों में जाट और गुर्जर वोट तय होते हैं और इसलिए भाजपा अब इन मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. 

21 विधानसभा क्षेत्रों पर जीत के लिए चुपचाप काम कर रही है बीजेपी: दिल्ली का ग्रामीण क्षेत्र कभी बाहरी दिल्ली लोकसभा सीटों के अंतर्गत आता था. उत्तर में नरेला और दक्षिण में बदरपुर से शुरू होने वाला विस्तार 20 विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना है. इनमें से अधिकांश सीटों पर जाट, गुर्जर या अनुसूचित जाति का दबदबा है. सज्जन कुमार, साहिब सिंह वर्मा और केएल शर्मा जैसे कई दिग्गज लंबे समय तक इसका प्रतिनिधित्व करते रहे.

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निर्वाचन क्षेत्र के तीन हिस्सों में बंट जाने से इलाके का परिदृश्य बदल गया. 21 निर्वाचन क्षेत्रों में से अधिकांश को उत्तर-पश्चिम और दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्रों में विभाजित किया गया, जबकि एक छोटा हिस्सा पश्चिमी दिल्ली लोकसभा में चला गया. इससे पारंपरिक जाट मतदाता कम प्रासंगिक हो गए हैं और अब दक्षिणी दिल्ली सीट पर गुर्जर वोट अधिक केंद्रित हो गए हैं. भाजपा अब इन सीटों पर काम कर रही है, जिन पर पिछले दो चुनावों में AAP का दबदबा रहा है. पार्टी को लगता है कि मीडिया की चकाचौंध से दूर इन सीटों पर काम करना आसान है.

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 इन सीटों पर आखिरी समय में आक्रामक अभियान चलाने की तैयारी में हैं भाजपा के रणनीतिकार: पार्टी ने अरविंद केजरीवाल और आतिशी जैसे AAP के दिग्गजों के खिलाफ प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश बिधूड़ी जैसे बड़े जाट और गुर्जर नामों को मैदान में उतारा है. वे यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर 8 फरवरी के नतीजों के बाद भाजपा की सरकार बनती है, तो इन नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी. न केवल उम्मीदवार बल्कि योगी आदित्यनाथ और जेपी नड्डा जैसे स्टार प्रचारक भी इन इलाकों में अपना अभियान शुरू कर चुके हैं.

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यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने किराड़ी से अपना अभियान शुरू किया, जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने नजफगढ़ से अपना अभियान शुरू किया. संदेश साफ है कि केजरीवाल को बाहर करने का चक्रव्यूह शहरी दिल्ली से नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों से रचा जा रहा है.

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