दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और बीजेपी ने बीच सीधी लड़ाई देखने को मिल रही है, जबकि कांग्रेस भी इस बार चुनावी मैदान में उम्मीदों को लेकर उतर रही है. लेकिन इस लड़ाई में सभी ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है. मतलब 6 महीने पहले कांग्रेस की अगुवाई में जितने दल एक मंच पर आए थे, वो अब कांग्रेस के खिलाफ केजरीवाल के साथ खड़े दिख रहे हैं. उनकी दलील है कि जो बीजेपी को हराएगा उसे सभी समर्थन देंगे और कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी को सिर्फ कांग्रेस ही हरा सकती है, लेकिन दिल्ली में कांग्रेस की लड़ाई बीजेपी से नहीं आम आदमी पार्टी से है.
दिल्ली के चुनाव में इंडिया गठबंधन के दो दोस्तों की दोस्ती में कुश्ती का असर दिल्ली से बाहर कितना है. ये कहना मुश्किल है, क्योंकि दिल्ली में केजरीवाल का साथ दे रही समाजवादी पार्टी को यूपी के मिल्कीपुर चुनाव में कांग्रेस साथ दे रही है, लेकिन वर्चस्व की लड़ाई वहां भी है.
इंडिया ब्लॉक का केजरीवाल को समर्थन
वहीं, कल तक केजरीवाल हाथ (कांग्रेस) के साथ थे, पर आज खिलाफ खड़े हैं. इस लड़ाई में केजरीवाल को इंडिया ब्लॉक के तमाम घटक दलों का भी साथ मिल रहा है. उद्धव ठाकरे की पार्टी पहले ही कह रही है कांग्रेस और केजरीवाल को आपस में एक-दूसरे के नहीं लड़ना चाहिए. ममता की पार्टी कह रही है सरकार को केजरीवाल की ही बननी चाहिए और दो तीन हफ्ते पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी के चुनावी कार्यक्रम में साथ देने पहुंचे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो स्वयं कह दिया कि दिल्ली में वो केजरीवाल के साथ हैं.
15 जनवरी के कांग्रेस खोलेगी नया मुख्यालय
वहीं, इंडिया ब्लॉक के तमाम घटक दलों के द्वारा केजरीवाल को समर्थन के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी दिल्ली में पूरे दमखम के साथ उतर रही है और 15 जनवरी को नया पार्टी मुख्यालय खोल रही है. दिल्ली की अहम सीटों पर मजबूत चेहरे उतार रही है. चुनावी मुद्दों पर केजरीवाल के साथ हेड ऑन टक्कर ले रही है, दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस के खिलाफ केजरीवाल के साथ खड़े हो चुके हैं...तो अब सवाल है कि क्या दिल्ली में कांग्रेस सिर्फ केजरीवाल से नहीं बल्कि इंडिया से भी लड़ रही है.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का परफॉर्मेंस
वैसे इंडिया गठबंधन के दल दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी पार्टी का साथ देने को तैयार दिख रहे हैं तो मतलब साफ है कि साथी दल दिल्ली में कांग्रेस की जमीन वापसी की उम्मीद कम देख रहे हैं, क्योंकि पिछले 3 चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि 2008 में जिस कांग्रेस के पास 40.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 सीटें थीं वो 2013 आते-आते 24.7 फीसदी वोट शेयर बचा था और सीटें बची थीं 8. फिर 2015 में तो कांग्रेस के हाथ सिर्फ 9.7 फीसदी वोट बचे और सीटें हो गईं जीरो...2020 में और बुरा हाल हुआ वोट परसेंट बचा 4.3 और सीटें शून्य ही रहीं.
आप खा गई कांग्रेस के वोट!
कांग्रेस ने 11 साल पहले केजरीवाल का साथ देकर जो गलती दिल्ली में की थी उसे फिर 2024 में दोहरा दिया. इसका ये नतीजा हुआ कि 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान जिस कांग्रेस के खाते दिल्ली में 15.2 फीसदी वोट बचे थे...और जो 2019 में बढ़कर 22.6 फीसदी तक पहुंचे थे. वो केजरीवाल के साथ मिलकर लड़ने के बाद 2024 में घटकर सिर्फ 19 फीसदी रह गए.
उधर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में 18 फीसदी वोट पाने वाली आम आदमी पार्टी कांग्रेस का हाथ थाम कर 24.17 फीसदी तक पहुंच गई. लेकिन इस बार कांग्रेस को दिल्ली में एंटी इनकम्बेंसी से बड़ी उम्मीदें हैं. यही वजह है कि जिस करप्शन और नाकामी के मुद्दे पर केजरीवाल ने कांग्रेस से दिल्ली की कुर्सी छीनी थी. उसी करप्शन और नाकामी के मुद्दे पर कांग्रेस अब केजरीवाल के झाडू के तिनके बिखेरने में जुटी हुई है.