केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की जनता ने इस बार कमल खिला दिया है. 27 साल के वनवास के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 48 सीटें जीतकर दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने जा रही है. सत्ताधारी आम आदमी पार्टी 22 सीटें ही जीत सकी. बीजेपी की इस बड़ी जीत में तीन सीटें ऐसी भी हैं जहां पार्टी के पक्ष में नतीजा चौंका रहा है. तीन मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी इस बार कमल खिला है. ये सीटें हैं- गांधीनगर, करावल नगर और मुस्तफाबाद.
गांधीनगर सीट से बीजेपी के अरविंदर सिंह लवली ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के नवीन चौधरी (दीपू) को 12748 वोट से हरा दिया है. करावलनगर सीट से बीजेपी के कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी के मनोज कुमार त्यागी को 23355 और मुस्तफाबाद सीट से मोहन सिंह बिष्ट ने आम आदमी पार्टी के अदील अहमद खान को 17578 वोट से हरा दिया. अब चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि मुस्लिम बाहुल्य इन तीन सीटों पर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी ने कमल खिला दिया?
1- कोर वोटर से जुड़े सिख मतदाता
बीजेपी को इस बार अपने कोर वोटर के साथ ही सिख मतदाताओं के भी जुड़ने का फायदा हुआ है. पार्टी ने गांधीनगर से चार बार के पूर्व विधायक अरविंदर सिंह लवली पर दांव लगाया था. लवली के अपने आधार वोटर और सिख मतदाताओं ने बीजेपी के वोटबैंक के साथ 'चेरी ऑन द केक' का रोल निभाया और यहां कमल खिल गया. डी-सीलिंग के वादे के कारण व्यावसायी वर्ग से भी बीजेपी को अच्छा समर्थन मिला.
2- उत्तराखंडी और पूर्वांचली वोटर
बीजेपी को इस बार उत्तराखंडी और पूर्वांचली मतदाताओं का भी समर्थन मिला. आम आदमी पार्टी ने इस बार एक भी उत्तराखंडी नेता को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया था. इसे लेकर उत्तराखंडी समाज में नाराजगी थी. करावल नगर से बीजेपी ने पूर्वांचली चेहरे कपिल मिश्रा को टिकट दिया. उत्तराखंडी वोटर नाराज न हो जाएं, इसका ध्यान रखते हुए करावलनगर से विधायक मोहन सिंह बिष्ट को मुस्तफाबाद से उम्मीदवार बनाया. पार्टी ने चार उत्तराखंडी नेताओं को टिकट दिया था जिसकी वजह से ये वोटर वर्ग उसके समर्थन में था ही, कपिल मिश्रा के आ जाने से पूर्वांचली वोटर भी लामबंद हो गए और इस सीट पर कमल खिल गया.
3- मुस्तफाबाद में बंटे ओवैसी ने बिगाड़ा AAP का खेल
मुस्तफाबाद सीट से बीजेपी ने करावल नगर के निवर्तमान विधायक मोहन सिंह बिष्ट को उतारा था. इस विधानसभा क्षेत्र में उत्तराखंडी समाज के मतदाताओं की अच्छी तादाद है. मोहन इस इलाके में नया नाम भी नहीं थे. मोहन के पक्ष में उत्तराखंडी, पूर्वांचली के साथ ही जाट-गुर्जर समुदाय ने भी एकमुश्त मतदान किया. वहीं, आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली एआईएमआईएम तक ने मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाया था. मुस्लिम वोट बंटे और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला.
इस सीट पर ओवैसी फैक्टर ने आम आदमी पार्टी का खेल खराब कर दिया. मुस्तफाबाद में ओवैसी फैक्टर कितना असरदार रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी की जीत का अंतर 17 हजार 578 वोट का रहा और एआईएमआईएम के ताहिर हुसैन को यहां 33 हजार से अधिक वोट मिले हैं. कांग्रेस भी 11 हजार से अधिक वोट पाने में सफल रही.
4- ध्रुवीकरण
मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ध्रुवीकरण ने भी बीजेपी की राह आसान कर दी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन और शिफा उर रहमान, शाहरूख पठान जैसे चेहरों के उतारने से भी वोटों का ध्रुवीकरण हुआ, खासकर मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर. यह भी एक फैक्टर रहा कि बीजेपी 2020 की दो के मुकाबले इस बार मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की तीन सीटें जीतने में सफल रही.