scorecardresearch
 

हरियाणा की पॉलिटिक्स में अरविंद केजरीवाल कितने फिट? क्या लोकल बॉय वाला कार्ड दिलाएगा मजबूती

आम आदमी पार्टी हरियाणा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को लेकर लोकल बॉय वाला कार्ड खेल रही है. क्या ये कार्ड पार्टी को मजबूती दिला पाएगा? अरविंद केजरीवाल हरियाणा की पॉलिटिक्स में कितने फिट हैं?

Advertisement
X
दिल्ली के मुख्यमंत्री और AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल. (फाइल फोटो: X/@AAP)
दिल्ली के मुख्यमंत्री और AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल. (फाइल फोटो: X/@AAP)

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को 13 सितंबर के दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी, पार्टी की ओर से यही कहा गया कि अब वे हरियाणा में प्रचार की कमान संभालेंगे. तब से अब तक आठ दिन गुजर चुके हैं और इन आठ दिनों में बहुत कुछ बदल चुका है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री से कार्यवाहक मुख्यमंत्री हो चुके हैं.

केजरीवाल आज यमुनानगर के जगाधरी विधानसभा क्षेत्र में रोड शो के जरिये अपने प्रचार अभियान का आगाज करेंगे. आम आदमी पार्टी ने अपने सबसे बड़े नेता के 11 जिलों में 13 कार्यक्रम तय किए हैं. सवाल है कि करीब 10 साल तक दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काबिज रहे अरविंद केजरीवाल हरियाणा की पॉलिटिक्स में कितने फिट हैं? इसे पांच पॉइंट में समझा जा सकता है.

1- सेंटीमेंट पॉलिटिक्स

अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाई है. पार्टी ने पंजाब की सत्ता का सफर भी तय किया है, सरकार बनाई है. लेकिन केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पंजाब के बीच स्थित हरियाणा की सियासत का मिजाज अलग है. हरियाणा की पॉलिटिक्स में सेंटीमेंट का सिक्का चलता है.

इस बार के चुनाव में जाट, पहलवान और किसान सेंटीमेंट को कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर धार देने की कोशिश की है. आम आदमी पार्टी भी केजरीवाल के लोकल बॉय होने का कार्ड खेल रही है. केजरीवाल के जेल में रहते समय आम आदमी पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालने वाली उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल हर रैली में उन्हें हरियाणा का बेटा और खुद को हरियाणा की बहु बताती रहीं. जानकार इसके पीछे सेंटीमेंट वाली पिच पर पार्टी को खड़ा करने की रणनीति को ही वजह बताते हैं.

Advertisement

2- क्लास और कास्ट

अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति देखें तो यह क्लास के इर्द-गिर्द नजर आती है. दिल्ली की बात करें तो फ्री बिजली-पानी और महिलाओं के लिए फ्री बस यात्रा जैसे कदमों के साथ ही मोहल्ला क्लीनिक ने जाति-धर्म की भावना से ऊपर उठकर आम आदमी पार्टी के लिए गरीब और महिला, ये दो क्लास बेस्ड वोटर वर्ग तैयार करने में अहम भूमिका निभाई.

पंजाब से लेकर गुजरात और गोवा तक, आम आदमी पार्टी ने गरीब और महिला, इन दो क्लास को ही टार्गेट किया. महिलाओं के लिए हर महीने कैश का वादा जो हरियाणा में बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक के मैनिफेस्टो का अंग है, ये दांव सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने ही पंजाब में चला था. हरियाणा में आम आदमी पार्टी किसी जाति या वर्ग में अपना मजबूत आधार बना वोटरबैंक बनाने में उतनी सफल नहीं नजर आती.

3- लोकल लीडरशिप

दिल्ली की बात हो या पंजाब या फिर गोवा-गुजरात की, आम आदमी पार्टी के पास हर राज्य में लोकल लीडरशिप थी. एक सेनापति था. पंजाब में भगवंत मान बतौर कॉमेडियन ही सही, पैन पंजाब फेस थे. गुजरात में टीवी फेस रहे इशुदान गढ़वी भी परिचित चेहरा थे और चैत्र वसावा जैसे नेता भी पार्टी के पास थे. लेकिन हरियाणा में हालात अलग हैं. हरियाणा में आम आदमी पार्टी का संगठन भी है, कैडर भी है लेकिन मजबूत लोकल चेहरे का वैक्यूम है.

Advertisement

आम आदमी पार्टी के पास हरियाणा में ऐसे चेहरे का अभाव है जिसका कद कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आसपास भी हो. आम आदमी पार्टी का शहरी इलाकों, खासकर एनसीआर के तहत आने वाले इलाकों के साथ ही पंजाब की सीमा से सटे इलाकों में प्रभाव है लेकिन लोकल लीडरशिप में पार्टी के पास मजबूत चेहरे का अभाव उसके लिए चुनौती है.

यह भी एक वजह हो सकती है कि आम आदमी पार्टी केजरीवाल के लोकल बॉय वाला कार्ड चल रही है. केजरीवाल खुद भी हरियाणा के हिसार के खेड़ा गांव से आते हैं और आम आदमी पार्टी लोकल लीडरशिप का वैक्यूम भरने के लिए उनके इसी कनेक्शन को कैश कराने की रणनीति पर बढ़ती दिख रही है.

4- विपक्ष का वैक्यूम

दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी ने पंजाब से लेकर गोवा-गुजरात तक, जहां-जहां दमदार प्रदर्शन किया वहां एक चीज कॉमन नजर आती है- विपक्ष में वैक्यूम. पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के कमजोर होने का लाभ पार्टी को मिला. आम आदमी पार्टी 2017 में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी और इसके बाद कार्यकर्ताओं ने हर घर गारंटी कार्ड पहुंचाने पर फोकस किया. गुजरात में भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने पूरा जोर लगाया, छह महीने पहले से ही प्रचार शुरू कर दिया, गारंटी कार्ड घर-घर पहुंचाना शुरू कर दिया था जिसका लाभ पांच सीटों पर जीत के साथ मिला भी. लेकिन हरियाणा में तस्वीर अलग है. विपक्ष में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रूप में विपक्षी कांग्रेस के पास मजबूत चेहरा है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: कांग्रेस vs बीजेपीः किसान-पहलवान और नौजवानों के लिए हरियाणा घोषणापत्र में किसके क्या वादे?

5- भरोसा और स्वीकार्यता

 चुनावों में एक बड़ा फैक्टर भरोसे का होता है. आम आदमी पार्टी जब भी किसी दूसरे राज्य में चुनाव लड़ने जाती है, दिल्ली में किए काम को उदाहरण बताती है. हरियाणा चुनाव में पार्टी के प्रचार अभियान की धुरी भी यही नजर आ रहा है. वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप डबास ने कहा कि हरियाणा के हालात ऐसे हैं कि फ्री बिजली और पानी जैसे वादे जो आम आदमी पार्टी करती है, वही वादे कांग्रेस करे तो लोग उस पर अधिक भरोसा करते हैं. सूबे की सियासत में केजरीवाल की स्वीकार्यता अभी उतनी नहीं है.

यह भी पढ़ें: हरियाणा चुनाव 2024: अरविंद केजरीवाल जगाधरी से शुरू करेंगे पहली चुनावी रैली, AAP कार्यकर्ताओं का बढ़ा जोश

हरियाणा चुनाव में अकेले उतरी आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए कांग्रेस पर आक्रामक प्रहार करना भी चुनौतीपूर्ण होगा. गोवा-गुजरात और पंजाब चुनाव तक आम आदमी पार्टी, कांग्रेस की मुखर आलोचक थी. एंटी कांग्रेस राजनीति की बुनियाद पर खड़ी केजरीवाल की पार्टी अब राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन में शामिल है, जिसकी अगुवाई खुद कांग्रेस ही कर रही है. यह फैक्टर भी हरियाणा की सियासत में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के मजबूत उभार की संभावनाओं के विपरीत जा सकता है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement