बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए अभी चुनाव कार्यक्रम का ऐलान नहीं हुआ और समीकरण साधने के लिए सियासी दलों की जोर आजमाइश जोरों पर है. चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की पदयात्रा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बिहार विकास यात्रा से शुरू हुई यात्राओं की पॉलिटिक्स में विपक्षी महागठबंधन के बाद अब एक और नाम जुड़ गया है.
यह नाम है उत्तर प्रदेश की सत्ता पर चार बार काबिज रही बहुजन समाज पार्टी का. बसपा के चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद 'सर्वजन हिताय जागरुकता यात्रा' पर निकल पड़े हैं. इस यात्रा की शुरुआत 10 सितंबर को कैमूर जिले के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में स्थित भगवानपुर हाईस्कूल के मैदान से हुई, जो वैशाली पहुंचकर संपन्न होगी.
आकाश आनंद की यह यात्रा 11 दिन तक चलेगी, 13 जिलों से गुजरेगी. यात्रा जिन जिलों से गुजरेगी, उनमें बक्सर, रोहतास, छपरा, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर जिले शामिल हैं. आकाश आनंद ने अपनी यात्रा के पहले दिन हर जनसभा में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का जिक्र किया, चार बार बसपा की सरकार बनने का उल्लेख किया.
आकाश आनंद यह भी बताते रहे कि यूपी में मायावती की अगुवाई वाली बसपा सरकार के समय सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की नीति पर काम हुआ. उन्होंने बिहार में भी बसपा की सरकार बनाने का आह्वान किया. चुनावी मौसम में चर्चा अब इसे लेकर भी छिड़ गई है कि बिहार की यात्रा पॉलिटिक्स में बसपा के आकाश आनंद को उतारने के पीछे क्या है- उत्साह या मजबूरी?
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रामगढ़ उपचुनाव नतीजों का उत्साह
बिहार में चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले बसपा की सक्रियता और यात्रा के लिए कैमूर जिले के चयन को रामगढ़ उपचुनाव के नतीजों से जोड़कर भी देखा जा रहा है. रामगढ़ सीट से विधायक रहे सुधाकर सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव में बक्सर सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गए थे. सुधाकर सिंह के इस्तीफे से रिक्त हुई रामगढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में बसपा ने कड़ी टक्कर दी.
बसपा उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह यादव रामगढ़ उपचुनाव में 1362 वोट के अंतर से हार गए थे, लेकिन उन्हें 60 हजार 895 वोट मिले थे. बसपा के सतीश ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अजीत कुमार सिंह को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था. अजीत कुमार सिंह आरजेडी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र और बक्सर सांसद सुधाकर सिंह के भाई हैं. रामगढ़ सीट जगदानंद सिंह का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है.
बसपा की सक्रियता के पीछे सियासी मजबूरी!
बसपा की चुनाव पूर्व सक्रियता के पीछे सियासी मजबूरी की चर्चा भी है. साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इ्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी थी. उपेंद्र कुशवाहा इस बार नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के साथ मैदान में हैं, जो सत्ताधारी एनडीए में है.
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उपेंद्र कुशवाहा का सियासी प्रभाव शाहाबाद के इलाके में माना जाता है, जो यूपी से सटा हुआ है. बसपा की सक्रियता भी इन्हीं इलाकों में रही है. ओवैसी की पार्टी का असर सीमांचल में है और फोकस भी. सीमांचल की सियासत में बसपा का न तो कभी असर रहा है, और ना ही फोकस. उपेंद्र कुशवाहा साथ रहे नहीं. ऐसे में बसपा ने अकेले चलने का रास्ता चुना और यही वजह है कि उसकी चुनाव पूर्व सक्रियता को सियासी मजबूरी से जोड़कर देखा जा रहा है.
जाटव वोट पर नजरें, सर्वजन पर निशाना
आकाश आनंद की सर्वजन हिताय यात्रा के पीछे बसपा की रणनीति बिहार की जाटव पॉलिटिक्स के वैक्यूम को भरने के साथ ही खुद को सर्वजन की पार्टी के रूप में पेश करने की है. बिहार की दलित पॉलिटिक्स की बात करें तो तीन प्रमुख चेहरे हैं- चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और पशुपति पारस. जीतनराम मांझी महादलित, खासकर मुसहर वर्ग में मजबूत प्रभाव रखते हैं. मांझी का असर गया और आसपास के जिलों तक माना जाता है. वहीं, चिराग पासवान की पार्टी का प्रभाव वैशाली यानी हाजीपुर तक.
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चिराग की पार्टी का बेस वोटर पासवान है. पशुपति पारस भी पासवान वोट पर ही दावा करते हैं . ऐसे में शाहाबाद के साथ ही बिहार के भोजपुरी बेल्ट में दलित पॉलिटिक्स का कोई मजबूत विकल्प नहीं है. एक पहलू यह भी है कि जाटव पॉलिटिक्स की पिच खाली ही है, जिस पर मजबूत जगह बनाने की कोशिश बसपा साल 1995 से ही करती आई है. इस बार आकाश आनंद के चेहरे पर युवा, सर्वजन हिताय के नारे पर अन्य जातियों को साधने की कोशिश बिहार चुनाव में नीला रंग कितना चटख कर पाएगी? ये देखने वाली बात होगी.