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दिल्ली के कोचिंग सेंटर्स का रियलिटी चेक... कितने सुरक्षित हैं यहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स?

दिल्ली के मुखर्जी नगर में गुरुवार को हादसे के बाद aajtak.in ने राजधानी के कई संस्थानों का रियल‍िटी चेक किया. इस रियल‍िटी चेक में संस्थानों के फायर सिस्टम की पड़ताल में जो सामने आया, वो हम यहां आपको बता रहे हैं. पढ़ें- पूरी रिपोर्ट.

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शहर के कई इलाकों में बिना सेफ्टी के इंस्टीट्यूट चल रहे हैं.
शहर के कई इलाकों में बिना सेफ्टी के इंस्टीट्यूट चल रहे हैं.

दिल्ली के मुखर्जी नगर में गुरुवार को जो हादसा हुआ उसमें 61 बच्चे घायल हुए. यहां अपनी जान बचने के लिए कई छात्रों को रस्सी के सहारे नीचे उतरना पड़ा. ऐसा बच्चों को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि जिस बिल्डिंग में आग लगी वहां पर फायर के सेफ्टी नॉर्म्स पूरी तरीके से सही थे ही नहीं. दिल्ली के कई इलाकों में इस तरह के इंस्टीट्यूट धड़ल्ले से चल रहे हैं जहां पर करियर बनाने के लिए बच्चे अपना जान दांव पर लगाकर के पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं. 

फायर सेफ्टी के इक्विपमेंट्स हैं तो लेकिन काम के नहीं
दिल्ली के मुखर्जी नगर में जिस संस्कृत इंस्टीट्यूट में आग लगी वहां से चंद कदमों की दूरी पर हम एक और इंस्टीट्यूट में पहुंचे जिसका हमने रियलिटी चेक किया. उस इंस्टीट्यूट की बिल्डिंग में आने जाने वाले रास्ते पर बिजली के खुले तार और लाइन से दो दर्जन से ज्यादा मीटर नजर आए. वो भी खुले में, यही नहीं अगर किसी कारण मीटर में आग लग जाए तो छत पर निकलने का रास्ता भी बंद है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे बच्चों की जिंदगी दांव पर लगाकर इंस्टीट्यूट के मालिक बच्चों का नहीं बल्कि अपना करियर बनाने में लगे. वहीं, मुखर्जी नगर के पास ही में एक इंस्टीट्यूट का रियलिटी चेक हमने और किया जहां फायर सेफ्टी से जुड़े इक्विपमेंट्स हमें नजर तो आए लेकिन वो काम करते नजर नहीं आए. ना तो उसमें पानी था और पानी जहां से बाहर निकलता है कचरे का ढेर नजर आया. 

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लक्ष्मी नगर में भी हाल बेहाल कोचिंग इंस्टीट्यूट्स
मुखर्जी नगर हो या दिल्ली का लक्ष्मी नगर या फिर राजोरी गार्डन इन तमाम इलाकों में जो इंस्टीट्यूट चल रहे हैं. उनमें ज्यादातर पढ़ाई करने के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश से छात्र आते हैं. अपने आपको आईएएस आईपीएस बनने का सपना लेकर यह बच्चे दिन-रात मेहनत करते हैं ताकि अपना करियर बना सकें. मुखर्जी नगर के बाद हम पहुंचे लक्ष्मी नगर. लक्ष्मी नगर भी इन दिनों इंस्टीट्यूट का हब बना हुआ है. यहां छोटी-छोटी गलियों में कई इंस्टीट्यूट खुले हुए हैं, जहां पर सीएस और सीए की पढ़ाई कराई जाती है लेकिन आलम और भी खराब नजर आया. महज डेढ़ फीट के जीने से आने-जाने का रास्ता, 11 क्लास रूम में कई-कई बच्चे और फायर सेफ्टी के कोई इंतजाम नहीं. बावजूद इसके इन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं.

20-25 साल पुरानी बिल्डिंग में चल रहे कोचिंग सेंटर
एमसीडी से मिली जानकारी के मुताबिक मुखर्जी नगर और लक्ष्मी नगर इलाको में जो इंस्टीट्यूट चल रहे हैं वो ज्यादातर 10 से 20 साल पुरानी बिल्डिंग में चल रहे हैं. कई इंस्टीट्यूट तो 25 साल पुरानी बिल्डिंग में चल रहे हैं. ये पहले घर हुआ करते थे, जो अब कमाई के लिए इंस्टीट्यूट्स में तब्दील हो चुके हैं. 

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फायर सेफ्टी एनओसी पर क्या कहते हैं अधिकारी?
दिल्ली फायर चीफ अतुल गर्ग के मुताबिक, दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में ढेरों इंस्टीट्यूट चल रहे हैं. जो इंस्टीट्यूट फायर सेफ्टी एनओसी के लिए हमारे पास आकर अप्लाई करता है हम उन्हें एनओसी देते हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल उनके पास कोई ऐसी टीम नहीं है जो इन इंस्टीट्यूट्स में जाकर सर्वे करे. लेकिन हाल में आए हाईकोर्ट के ऑर्डर को ध्यान में रखते हुए जल्द ही दिल्ली के तमाम कोचिंग सेंटर्स का सर्वे किया जाएगा और कार्रवाई भी की जाएगी. हालांकि अगर मुखर्जी नगर जैसी कोई घटना फिर से होती है और फायर सेफ्टी के नाम पर कमी पाई जाती है तो उन्हें नोटिस भेजकर उचित कदम उठाए जाएंगे. 

भगवान भरोसे छात्रों की जान, इन हालातों में होती है पढ़ाई
मुखर्जी नगर के अलग अलग इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले छात्रों से हमने बात की. 2021 में बिहार से यहां आए संतोष भी उन्हीं में से एक हैं. संतोष मुखर्जी नगर में रहकर ही एक कोचिंग सेंटर से यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. उनका कहना है कि  अच्छे करियर की तलाश में कई साल पहले घर छोड़ दिया था, यहां आकर पढ़ना आसान नहीं है, खाने-पीने से लेकर रोजमर्रा की जिंदगी में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, काफी संघर्ष के साथ इन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स से तैयारी कर रहे हैं.

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एक कमरे में 100 से 150 बच्चे पढ़ते हैं. इनमें फायर सेफ्टी के कोई इंतजाम नहीं हैं, न ही आग लगने जैसे घटनाओं से बचने के उपाय, सब भगवान भरोसे है. आज तक की टीम ने पाया कि जिन इलाकों में इस तरह के इंस्टीट्यूट चल रहे है वहां हर साल एक-दो ऐसे छोटे मोटे हादसे होते ही रहते हैं. ज्यादातर हादसे गर्मी के दिनों मे होते हैं, जिसकी एक वजह बिजली का लोड बढ़ना भी है. 
 

 

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