scorecardresearch
 

सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले दो नेत्रहीन युवा बने मिसाल, जानें-पूरी कहानी

भले ही ओड‍िशा के प्रसन्ना पांडा और प्राचुर्य प्रधान सौ फीसदी नेत्रहीन होने के चलते दुनिया को खुली आंखों से नहीं देख सकते. लेकिन इंसान सपने तो किसी भी हाल में देख सकता है. इन दो युवाओं ने भी सिविल सेवा में जाने का सपना देखा था. आज ये सपना सच करके वो मिसाल बन गए हैं. आइए जानें- इनकी कहानी...

Advertisement
X
प्राचुर्य प्रधान (L) प्रसन्ना पांडा (R) (Photo:aajtak.in)
प्राचुर्य प्रधान (L) प्रसन्ना पांडा (R) (Photo:aajtak.in)

कहते हैं इंसान सच्ची लगन, धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ एक रास्ते पर निकल पड़े तो उसे मंजिल जरूर मिलती है.  ओड‍िशा के प्रसन्ना पांडा और प्रचुर्य प्रधान जो शत-प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं. इन दोनों उम्मीदवारों ने राज्य की सिविल सेवा परीक्षाओं में सफलता पाकर कई अन्य लोगों को प्रेरित किया है. बता दें कि ओडिशा लोक सेवा आयोग (ओपीएससी) द्वारा शुक्रवार को ओडिशा सिविल सेवा परीक्षा 2020 के परिणाम घोषित किए गए थे. 

राज्य के खुर्दा जिले के प्रसन्ना कुमार पांडा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं. प्रसन्नाा ने इस परीक्षा में 266 वां स्थान हासिल किया है. वहीं ओडिशा के नुआपाड़ा के बोडेन निवासी 25 वर्षीय प्राचुर्य ने अपने पहले प्रयास में 392 उम्मीदवारों में से 292 वां स्थान प्राप्त किया है. 

नौकरी की-शतरंज ख‍ेला,  ये थी स्ट्रेटजी  

aajtak.in से बातचीत में प्राचुर्य प्रधान ने बतासा कि वो वर्तमान में ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन के साथ एक सहायक प्रबंधक (वित्त) के रूप में काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हर किसी को बड़े सपने देखने चाहिए, सपने जरूर सच होते हैं. यदि आपके पास आत्मविश्वास, समर्पण और लगन है, तो आप निश्चित रूप से कुछ भी हासिल कर सकते हैं. 

अपनी चुनौतियों के बारे में बात करते हुए प्राचुर्य ने कहा कि मेरे सामने पहली चुनौती टाइम मैनेजमेंट की थी, चूंकि मैं एक अंतरराष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी भी हूं, इसलिए दो चीजों को संतुलित करना एक ऐसी चीज थी जिसका मुझे ध्यान रखना था. मेरे पास सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए पूरा दिन नहीं था. इसलिए मैंने दिन में केवल 4-5 घंटे अध्ययन किया और अन्य आदतों से छुटकारा पाया जिसमें समय बच सके. आख‍िर में मुझे मंजिल मिल गई. 

Advertisement

इससे पहले प्राचुर्य राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) और एक जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) क्वालीफाई कर चुके हैं. वो रेनशॉ विश्वविद्यालय, कटक में वाणिज्य में पीएचडी कर रहे हैं. प्राचुर्य ने नेशनल कॉलेज नुआपाड़ा से बीकॉम और इग्नू से पीजी की पढ़ाई भी की है. उन्होंने अब तक आईपीसीसी के दोनों समूहों को भी पूरा कर लिया है और सीए फाइनल परीक्षा में शामिल होंगे. 

जीत चुके हैं पदक 

प्राचुर्य ने 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में आयोजित तीसरे एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीता था. उन्हें इस उपलब्धि के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सम्मानित किया गया था. मीडिया से बात करते हुए प्रसन्ना पांडा ने कहा कि सिविल सेवा में शामिल होना और लोगों की सेवा करना उनका बचपन का सपना था. भीमा भोई स्कूल और BJB कॉलेज से शिक्षा पूरी करने के बाद, वह जेएनयू के तहत स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पढ़ने के लिए नई दिल्ली आ गए थे, बता दें कि उन्होंने पिछले साल पीजी पूरा किया था. 

पहले अटेंप्ट में चयनित हुए थे प्रसन्ना 

वहीं जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशंस में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने वाले प्रसन्ना पांडा ने पहली बार 2019 में सिविल सर्विसेज एग्जाम दिया था. वो इस परीक्षा में मेन्स के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए थे. प्रसन्ना ने कहा कि पहली बार सेलेक्शन न होने पर भी मैंने उम्मीद नहीं खोई. मैंने अपने प्रयास और तैयारी जारी रखी और अंत में अपने दूसरे प्रयास में परीक्षा क्वालीफाई कर ली.

Advertisement

उन्होंने कहा, "एक नेत्रहीन उम्मीदवार के रूप में, मुझे अपनी तैयारी के दौरान कुछ बाधाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे संसाधनों और हस्तलिखित नोट्स की रीच हमारे लिए बहुत कम है. अब आगे मौका मिला तो मैं (पिछड़े क्षेत्र) कोरापुट-बलांगीर-कालाहांडी क्षेत्र के लिए काम करना चाहता हूं. प्रसन्ना ने कहा कि मेरा आगे का सपना है कि मैं अपने चिल्का क्षेत्र में पर्यटन के विकास और झील पर निर्भर समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान कर सकूं. 

 

Advertisement
Advertisement