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बोर्ड एग्जाम से पहले बढ़ी टेंशन, टीनेज-बच्चों में डिप्रेशन कैसे पहचानें? एक्सपर्ट से जानें

डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि जो बच्चे और किशोर डिप्रेशन में होते हैं, उनमें कुछ सामान्य लक्षण वही होते हैं जो वयस्कों में होते हैं, जैसे गहरी उदासी और कुछ भी करने के लिए प्रेरणा की कमी. लेकिन उनमें अक्सर अलग-अलग लक्षण भी होते हैं.

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परीक्षा के तनाव से कैसे निपटें? एक्सपर्ट्स से जानें (सांकेतिक तस्वीर)
परीक्षा के तनाव से कैसे निपटें? एक्सपर्ट्स से जानें (सांकेतिक तस्वीर)

बोर्ड एग्जाम सिर पर हों तो थोड़ी घबराहट होना लाजिमी है. मनोविज्ञान में इस एंजाइटी को चिंताजनक नहीं माना गया है. लेकिन अगर यही तनाव बच्चों की लाइफस्टाइल से लेकर उनके व्यवहार को पूरी तरह बदलकर रख दे तो पेरेंट्स के तौर पर हमें चौकन्ना हो जाना चाहिए. 

IHBAS नई दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश एक रिसर्च का हवाला देते हुए कहते हैं कि 100 में से लगभग 5 बच्चों और किशोरों में ऐसे लक्षण होते हैं जो डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं. डिप्रेशन अक्सर फैमिली प्रॉब्लम्स के चलते होता है. उदाहरण के लिए बचपन में मां-बाप को खो देना, स्कूल में कठिनाइयां फेस करना और कोई दोस्त न होने के कारण होता है. इसके अलावा कुछ और वजहें भी इसका कारक बनती हैं, जैसे- 

  • जिनके करीबी रिश्तेदार डिप्रेशन या अन्य गंभीर मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं. 
  • अतीत में डिप्रेशन या एंजाइटी डिसऑर्डर रहा हो. 
  • बच्चा पहले हिंसा या दुर्व्यवहार का शिकार हुआ हो. 
  • बच्चा अपने या अपने शरीर के प्रति बहुत नकारात्मक दृष्टिकोण रखता रहा हो. 
  • शारीरिक बीमारियां और कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव से भी डिप्रेशन की संभावना बढ़ सकती है. 

यह अचानक नहीं होता

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डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि बोर्ड एग्जाम आए और बच्चा डिप्रेशन में चला गया, ऐसा कभी अचानक नहीं होता. अगर बच्चे में पहले से एंजाइटी या डिप्रेशन के लक्षण हैं, तभी यह एग्जाम या किसी असामान्य परिस्थ‍ित‍ि के दौरान ट्रिगर कर सकता है. यह डिप्रेशन बच्चों के नखरों या उनके "ब्लूज़" से अलग होता है. शरीर में बदलावों के दौरान बच्चों के व्यवहार में अनियमितता डिप्रेशन की श्रेणी में नहीं आता. मसलन, कोई बच्चा उदास दिखता है तो इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वो डिप्रेशन में है. लेकिन अगर वो उदासी हर वक्त उसे घेरे रहती है. वो सामाजिक गतिविधियों में रुचि लेना बंद कर देता है. खाने-पीने और सोने-जगने का क्रम अनियमित हो गया है. मसलन, ज्यादा खाने लगना या बहुत कम खाने लगना, ज्यादा सोना या बहुत कम सोना, बात बात पर रोने लगना, ये सब डिप्रेशन के लक्षणों में आता है. 

बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण 

डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि जो बच्चे और किशोर डिप्रेशन में होते हैं, उनमें कुछ सामान्य लक्षण वही होते हैं जो वयस्कों में होते हैं, जैसे गहरी उदासी और कुछ भी करने के लिए प्रेरणा की कमी. लेकिन उनमें अक्सर अलग-अलग लक्षण भी होते हैं. ये पूरी तरह उनकी उम्र पर निर्भर करते हैं:

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प्री-स्कूल बच्चों में तनाव

प्री स्कूल बच्चों में इसे पहचानना मुश्क‍िल है. ये बच्चे शायद बहुत बार उदास नहीं होते हैं, और यह कहना मुश्किल हो सकता है कि वे अवसादग्रस्त हैं या नहीं. प्री-स्कूल के बच्चे उदास होते हैं तो वे बहुत रोते हैं, खेलने में उनकी रुचि नहीं होती और वे बहुत चिंतित (Anxious)रहते हैं. कई बच्चे अच्छा व्यवहार करने और आज्ञाकारी बनने का बहुत अधिक प्रयास करते हैं. डिप्रेशन कुछ बच्चों में उनके विकास को धीमा कर सकता है. 

स्कूल गोइंग बच्चों में डिप्रेशन

स्कूल जाने वाले बच्चे जो डिप्रेशन में होते हैं वे अक्सर अपनी हॉबी में रुचि खो देते हैं और दूसरों के प्रति शत्रुतापूर्ण हो सकते हैं. वे बहुत जल्दी अपना आपा खो देते हैं, छोटी-छोटी बातों पर आसानी से परेशान हो जाते हैं और उनका सेल्फ स्टीम बहुत कम हो जाता है. 

टीनेज बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण 

किशोरों के साथ "सामान्य" मूड स्विंग और जब वे वास्तव में उदास होते हैं, दोनों के बीच अंतर बताना मुश्किल हो सकता है. यहां तक ​​कि स्वस्थ युवा लोग भी कभी-कभी उद्दंड, आक्रामक, उदासीन होते हैं, लो सेल्फ स्टीम रखते हैं या अपने आप में पीछे हट जाते हैं. साथ ही उदास महसूस करते हैं. हमेशा वजन में बदलाव, नशीली दवाओं या शराब का सेवन, अत्यधिक थकान और आत्मघाती विचार (खुद को मारने के बारे में सोचना) जैसी चीजें किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण हो सकती हैं. 

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कैसे रोका जा सकता है बच्चों में डिप्रेशन? 

  • मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि बच्चों का एक स्थ‍िर व्यक्त‍ित्व बनाने में माता-पिता और आसपास की स्थ‍िति का बड़ा रोल होता है. वो अपने बड़ों से ही सीखते हैं कि चुनौतियों का सामना कैसे करना है. इसमें करीबी, रिश्तेदारों की भी भूमिका होती है. 
  • डॉ शेखावत कहते हैं कि यदि कोई बच्चा उदास होता है, तो यह महत्वपूर्ण है कि उसके दोस्तों और परिवार को पहले ही इसका एहसास हो जाए. इसलिए बच्चे के साथ बॉन्डिंग बहुत अच्छी होनी चाहिए. डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों में उदासी, किसी भी चीज़ का आनंद न लेना या कुछ भी करने की इच्छा न होना और हर काम से बहुत पीछे हट जाना शामिल हो सकता है. 
  • तीसरा तरीका ये होता है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे समस्याओं और कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए अपनी खुद की तमाम रणनीतियां विकसित करते हैं. वे इन रणनीतियों को अपने अनुभवों के साथ-साथ अपने परिवार और दोस्तों के माध्यम से सीखते हैं. लेकिन कभी-कभी यह पर्याप्त नहीं होता. ऐसे में पेशेवर मदद उपलब्ध है, ये बच्चों को जरूर बताना चाहिए.
  • डॉ ओमप्रकाश बताते हैं कि कुछ संस्थान बच्चों या किशोरों को तनाव प्रबंधन और समस्याओं से निपटने में मदद करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और पाठ्यक्रम पेश करते हैं. इनमें आम तौर पर ग्रुप सेशन शामिल होते हैं जहां वे चीजें सीखते हैं जैसे कि तनाव से कैसे निपटें और संघर्षों को कैसे पार करें, और अगर वे दुखी महसूस करते हैं तो वे क्या कर सकते हैं. 
  • यदि कोई बच्चा या टीन एजर सीवियर डि‍प्रेशन से पीड़ित है या ऐसा महसूस करता है कि वह अब जीना नहीं चाहता है, तो यह महत्वपूर्ण है कि वो किसी से शेयर कर पाए और उसे वहां से सही काउंसिलिंग मिल जाए. उन्हें बताया जाए कि डॉक्टर या मनोचिकित्सा प्रैक्टि‍स से संपर्क कर सकते हैं. ऐसे डॉक्टर भी हैं जो बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में विशेषज्ञ हैं और वे टेलीफोन हेल्पलाइन का भी उपयोग करते हैं. 

ऐसे होता है बच्चों-टीनेजर्स में डिप्रेशन का इलाज

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डिप्रेशन के माइल्ड केसेज में एक विकल्प यह है कि पहले कुछ दिन इंतजार करें और देखें कि यदि इलाज के बिना लक्षण ठीक या कम हो जाते हैं तो ज्यादा चिंता की बात नहीं है. लेकिन इस बीच बच्चे को अच्छी तरह आब्जर्व करें. इसमें उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने और उन्हें गंभीरता से लेने की कोशिश करना शामिल है. उन्हें अन्य बच्चों की तुलना में अधिक समझ और धैर्य की आवश्यकता हो सकती है, साथ ही अपने आत्म-सम्मान को बढ़ाने के लिए अधिक अवसरों की भी आवश्यकता हो सकती है. यदि आवश्यक हो, तो वे पेशेवर मनोवैज्ञानिक सलाह का भी उपयोग कर सकते हैं. परिवार सहायता केंद्र भी इनकी मदद कर सकते हैं. 

वयस्कों में अवसाद की तरह, बच्चों और किशोरों में अवसाद का इलाज अवसादरोधी दवाओं या संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (सीबीटी) जैसे मनोवैज्ञानिक उपचार से किया जा सकता है. उपचार का प्रबंधन बाल रोग विशेषज्ञों और मनोचिकित्सकों या बाल मनोचिकित्सकों द्वारा किया जाता है. दवा का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए क्योंकि इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, इस बात के कुछ सबूत हैं कि कुछ प्रकार के एंटीडिप्रेसेंट्स से किशोरों में खुद को मारने (आत्महत्या करने) के बारे में सोचने की संभावना बढ़ सकती है. 

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डिप्रेशन से निपटने के लिए ये तरीके अपनाएं 

  • शारीरिक गतिविध‍ियां बढ़ाएं उदाहरण के लिए किसी स्पोर्ट्स क्लब में बच्चे को शामिल करें. इससे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य तो सुधरता ही है साथ ही सोशल स्क‍िल भी बढ़ती है. 
  • कोई क्र‍िएट‍िव वर्कशॉप में हिस्सा लें इससे उनके आत्मविश्वास में सुधार हो सकता है. 
  • यदि कोई बच्चा या किशोर स्कूल में खेल का आनंद नहीं लेता है, तो उसे कहीं और खेल गतिविधियों और कक्षाओं की तलाश करनी चाहिए, ताकि वह प्रदर्शन करने के लिए कम दबाव महसूस करे और केवल गतिविधि का आनंद ले सके. 
  • बहुत से युवा एक डायरी रखते हैं जिसमें वे अपने विचारों, चिंताओं और भावनाओं को समझने और उनसे बेहतर ढंग से निपटने का प्रयास करते हैं.  
  • कुछ लोगों को पालतू जानवर में आराम मिलता है. हालांकि, अन्य लोगों से बात करना और उनके करीब महसूस करना आपकी भावनात्मक भलाई के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.

जिन युवाओं को डिप्रेशन है, वे टेलीफोन हेल्पलाइन के साथ-साथ परिवारों, बच्चों और किशोरों के लिए सहायता केंद्रों का उपयोग कर सकते हैं. कई स्कूलों में बात करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता, मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता होते हैं. इसके अलावा कई बोर्ड भी हेल्पलाइन शुरू करते हैं.

(अगर आपके या आपके किसी परिचित में मन में आता है खुदकुशी का ख्याल तो ये बेहद गंभीर मेडिकल एमरजेंसी है. तुरंत भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 पर संपर्क करें. आप टेलिमानस हेल्पलाइन नंबर 1800914416 पर भी कॉल कर सकते हैं. यहां आपकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी और विशेषज्ञ आपको इस स्थिति से उबरने के लिए जरूरी परामर्श देंगे. याद रखिए जान है तो जहान है.)

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