उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले मानवेंद्र सिंह ने यह साबित कर दिया है कि अगर इंसान के इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बीमारी या परेशानी उसके सपनों को रोक नहीं सकती. सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) जैसी गंभीर बीमारी से जूझते हुए भी मानवेंद्र ने पहले ही प्रयास में UPSC परीक्षा पास कर 112 वीं रैंक हासिल की है.
बचपन से बीमारी से संघर्ष
मानवेंद्र को बचपन से ही सेरेब्रल पाल्सी है. यह दिमाग से जुड़ी बीमारी होती है, जिसमें शरीर की कई नसें ठीक से काम नहीं करतीं और चलने-फिरने में परेशानी होती है. जब मानवेंद्र सिर्फ 6 महीने के थे, तभी से उनका इलाज शुरू हो गया था. उनकी मां और नानी-नाना ने इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी—आयुर्वेद, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी, फिजियोथेरेपी और एलोपैथी, हर तरह का इलाज कराया गया.

पिता का साया जल्दी उठा, नानी के घर पली उम्मीदें
मानवेंद्र के पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था. इसके बाद वे अपनी मां के साथ नानी के घर रहने लगे. नानी-नाना ने उन्हें सिर्फ सहारा ही नहीं दिया, बल्कि इतना आत्मविश्वास भी दिया कि मानवेंद्र खुद पर भरोसा करने लगे. धीरे-धीरे वे अपने पैरों पर चलने लगे और खुद को कमजोर नहीं, बल्कि सक्षम समझने लगे.
पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल
मानवेंद्र पढ़ाई में शुरू से ही होशियार रहे. 10वीं और 12वीं में टॉप-10 में जगह बनाई. JEE परीक्षा पहले प्रयास में पास कर 63वीं रैंक हासिल की. IIT पटना से B.Tech किया. कॉलेज के दिनों में उन्होंने हॉस्टल में रहकर खुद अपने कपड़े धोए, खाना बनाया और रोज़ 3–4 किलोमीटर तक साइकिल भी चलाई. बीमारी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी.
UPSC में भी पहले प्रयास में सफलता
इस साल मानवेंद्र ने UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की और पहले ही प्रयास में 112वीं रैंक लाकर IES में चयन पाया. यह सफलता सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो किसी कमजोरी के कारण खुद को पीछे मान लेता है.
मां, नानी-नाना और ईश्वर का साथ
मानवेंद्र की मां शहर के एक मोंटेसरी स्कूल में प्रिंसिपल हैं. उनका कहना है कि इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा योगदान ईश्वर की कृपा, फिर नानी-नाना का सहयोग और मानवेंद्र का खुद पर भरोसा है. मानवेंद्र हमेशा अपनी मां से कहते थे, 'मैं सब ठीक कर लूंगा' और उन्होंने सच में कर दिखाया.
परिवार का गर्व
मानवेंद्र के परिवार में एक भाई और एक बहन भी हैं. उनकी बहन भी UPSC की तैयारी कर रही हैं. पूरा परिवार मानवेंद्र की इस उपलब्धि पर गर्व महसूस करता है. मानवेंद्र की कहानी हमें सिखाती है कि किस्मत नहीं, मेहनत और हौसला इंसान की पहचान बनाते हैं.