भारत में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इन दिन का खास मकसद यह है कि लड़कियों की सेफ्टी, उनकी पढ़ाई, हेल्थ आदि चीजों के बारे में लोगों को जागरुक किया जा सके. पिछले कुछ सालों में लड़कियों की एजुकेशन और उनकी सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं.
साथ ही समाज भी अब इसको लेकर जागरुक होता नजर आता है. हालांकि, कहीं ना हीं अभी भी छोटी उम्र की लड़कियों को भी यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, बाल विवाह आदि चीजें झेलनी पड़ती हैं. ऐसे में लड़कियों को और समाज के बाकी लोगों को यह जानने की सख्त जरूरत हैं कि संविधान में लड़कियों को लेकर कई कानून बनाए गए हैं, जिनके अनुसार, लड़कियां अपने हक की लड़ाई के लिए पुलिस प्रशासन की मदद ले सकती हैं. भारत सरकार ने बालिकाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कानूनी पहल और उपाय किए हैं, आइए उनमें से पांच के बारे में जानते हैं:
गर्भधारण पूर्व प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994 (Pre-Conception Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 1994
भारत में लैंगिक असमानता के कारण लड़की की पहचान होने पर गर्भपात करवा दिया जाता है. संविधान में इसे अपराध बताया गया है. गर्भपात कराने का अधिकार सिर्फ गर्भवती महिलाओं के पास ही है. वह भी लिंग के आधार पर नहीं होना चाहिए. इसमें भी कुछ शर्ते हैं जैसे, अगर गर्भ 12 हफ्ते से अधिक का नहीं है तब एक मेडिकल प्रैक्टिशनर की इजाज़त अबॉर्शन के लिए आवश्यक है. अगर गर्भ 12 से 20 हफ्ते का है तो 2 मेडिकल प्रैक्टिशर की इजाज़त अबॉर्शन के लिए आवश्यक है. 18 साल से कम उम्र की गर्भवती औरत का अबॉर्शन बिना उसके अभिभाव की इजाज़त के नहीं किया जा सकता है.
हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम (Hindu Succession (Amendment) Act, 2005 )
भारत में पिता की संप्त्ति घर के बेटे को दी जाती थी, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के बाद बेटों और बेटियों के समान संपत्ति अधिकारों को मान्यता दी गई, जिसमें कहा गया था कि बेटी की शादी के बाद भी उसके पिता की संपत्ति में समान हिस्सा होगा.
बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009
इस अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है. आरटीई अधिनियम यह भी कहता है कि प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी बच्चे को किसी भी कक्षा में रोका नहीं जा सकता है. यह कानून लड़का और लड़की दोनों के लिए अनिवार्य है. अधिकतर देखा गया है कि लोग लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं, लेकिन संविधान में इसे लड़कियों का अधिकार बताया गया है.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 Child Marriage Prohibition Act, 2006
भारत में लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. बाल विवाह निषेध अधिनियम बाल विवाह पर रोक लगाने और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए नागरिक उपचार के साथ-साथ आपराधिक प्रावधान भी प्रदान करता है. अगर कोई भी माता पिता अपनी लड़की या लड़के का बाल विवाह कराते हैं तो उनको अपराधी माना जाएगा.
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015
इस कानून के तहत चाहे लड़की हो या लड़का, हर बच्चे के पास सुरक्षित वातावरण में रहने का अधिकार है. अधिनियम में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की सुरक्षा, उपचार और पुनर्वास के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं. यह अधिनियम बाल वेश्यावृत्ति के लिए वेश्यालयों में फंसी लड़कियों की रक्षा करता है और अनैतिक, शराबी या भ्रष्ट जीवन में लिप्त किसी भी व्यक्ति की रक्षा करता है.