NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) एक ऐसा सैन्य गठबंधन है, जो अपने सदस्य देशों की सुरक्षा का वादा करता है. लेकिन पिछले कुछ सालों में, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, कई देशों के लिए यह सपना बुरे सपने में बदल गया है. यूक्रेन पूरी तरह तबाह हो चुका है. जॉर्जिया और बोस्निया-हर्जेगोविना में विवाद बढ़ रहे हैं. फिनलैंड-स्वीडन भी रूस के निशाने पर हैं.
यूक्रेन: तबाही का मंजर
रूस ने 2022 में यूक्रेन पर हमला किया, क्योंकि वह नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का हिस्सा बने. नाटो ने यूक्रेन को समर्थन दिया, जैसे हथियार और आर्थिक मदद लेकिन लड़ाई में सीधे नहीं कूदा, ताकि रूस के साथ बड़ा युद्ध न हो. नतीजा? यूक्रेन के शहर तबाह हो गए, लाखों लोग विस्थापित हुए और अर्थव्यवस्था चरमरा गई. लोग कहते हैं कि नाटो की देरी ने यूक्रेन को कमजोर किया, जबकि रूस इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में रखना चाहता है.
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जॉर्जिया और बोस्निया-हर्जेगोविना: विवादों का जाल
जॉर्जिया ने 2008 में नाटो में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन रूस ने हमला कर दिया. अबखाजिया-साउथ ओसेशिया पर कब्जा जमा लिया. बोस्निया-हर्जेगोविना में भी नाटो सदस्यता की चाहत है, लेकिन वहां के नेता मिलोराद डोडिक रूस के करीब हैं. अलगाव की बात करते हैं. रूस इन देशों में अशांति फैलाकर नाटो के विस्तार को रोकना चाहता है. नाटो इन इलाकों में शांति बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन विवाद सुलझ नहीं रहे.
फिनलैंड-स्वीडन: नई चुनौतियां
फिनलैंड और स्वीडन, जो दशकों तक तटस्थ रहे उन दोनों ने 2022 में रूस के हमले के बाद नाटो जॉइन किया. फिनलैंड की रूस से 1340 किमी लंबी सीमा अब नाटो-रूस टकराव का नया मोर्चा बन गई है. रूस ने चेतावनी दी कि ये देश उसके निशाने पर हैं. नाटो इन्हें सुरक्षा दे रहा है, लेकिन रूस की ओर से साइबर हमले और सैन्य गतिविधियां बढ़ रही हैं.

रूस का नजरिया: प्रभाव बनाम खतरा
रूस का कहना है कि नाटो का विस्तार उसके सीमावर्ती देशों में खतरा है. वह यूक्रेन, जॉर्जिया जैसे देशों को नाटो से दूर रखना चाहता है. नाटो का दावा है कि वह सिर्फ बचाव के लिए है. रूस की आक्रामकता का जवाब दे रहा है. लेकिन इस टकराव ने इन देशों को संकट में डाल दिया है.
सपना या जोखिम?
कई लोग मानते हैं कि नाटो का वादा सुरक्षा का था, लेकिन रूस के जवाबी कदमों ने इसे जोखिम में डाल दिया. यूक्रेन की तबाही और जॉर्जिया-बोस्निया में अस्थिरता इसका सबूत है. फिनलैंड-स्वीडन के लिए नाटो सुरक्षा लाया, लेकिन रूस के निशाने पर आने का डर भी बढ़ा. क्या नाटो का विस्तार शांति लाएगा या और संघर्ष को जन्म देगा, यह सवाल अनसुलझा है.
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संतुलन की जरूरत
नाटो का सपना इन देशों के लिए चुनौती बन गया है. यूक्रेन तबाह है, जॉर्जिया-बोस्निया विवादों में फंसे हैं, और फिनलैंड-स्वीडन रूस की नजर में हैं. नाटो को अपनी रणनीति पर फिर से सोचना होगा, ताकि सुरक्षा के साथ शांति बनी रहे. यह स्थिति दुनिया के लिए सबक है कि सैन्य गठबंधन जितने फायदेमंद हैं, उतने ही संवेदनशील भी.