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दुनिया के देश सेना में कटौती कर रहे हैं या बढ़ा रहे हैं? आंकड़े क्या कहते हैं, कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण का सुझाव कितना व्यावहारिक है

कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के थलसेना कटौती सुझाव पर विवाद जारी है. उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देकर कहा कि भविष्य के युद्ध हवाई-टेक्नोलॉजी आधारित होंगे. बड़ी इन्फैंट्री की जरूरत कम है. लेकिन वैश्विक ट्रेंड विपरीत है—SIPRI रिपोर्ट के अनुसार 2024 में सैन्य खर्च रिकॉर्ड 2.718 ट्रिलियन डॉलर थी जिसमें 9.4% बढ़ोतरी थी. भारत की सीमाओं के लिए जमीनी सेना बेहद जरूरी है.

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कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के थलसेना कटौती के सुझाव पर विवाद हो रहा है. (Photo: Chandradeep Kumar/ITG)
कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के थलसेना कटौती के सुझाव पर विवाद हो रहा है. (Photo: Chandradeep Kumar/ITG)

कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 16 दिसंबर को पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विवादास्पद बयान दिया, जिसने पूरे देश में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. उन्होंने हालिया ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देते हुए कहा कि इस ऑपरेशन में थलसेना की एक किलोमीटर भी हलचल नहीं हुई. सब कुछ सिर्फ हवाई और मिसाइल युद्ध था.

उन्होंने सवाल उठाया कि भविष्य में भी युद्ध इसी तरह लड़े जाएंगे – हवाई और मिसाइल से. ऐसे में क्या हमें 12 लाख सैनिकों वाली बड़ी थलसेना रखने की जरूरत है? या इन सैनिकों को दूसरे कामों में लगाया जा सकता है?

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यह बयान इसलिए और विवादास्पद है क्योंकि सरकारी और सैन्य सूत्रों के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर भारत की रणनीतिक सफलता थी. मई 2025 में पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या के जवाब में भारत ने पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल और हवाई हमले किए.

Prithviraj Chavan army reduction suggestion

ऑपरेशन 10 मई को सीजफायर के साथ खत्म हुआ. इसे भारत की संयमित लेकिन दृढ़ कार्रवाई माना गया. चव्हाण के बयान पर बीजेपी ने तीखा हमला बोला है. भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस की पहचान ही सेना का अपमान करना है. यह सरेंडर माइंडसेट है. कई लोगों ने इसे सेना के मनोबल पर हमला बताया है.

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चव्हाण का सुझाव कितना व्यावहारिक है?

चव्हाण का तर्क है कि आधुनिक युद्ध अब टेक्नोलॉजी आधारित हो गए हैं – ड्रोन, मिसाइल, साइबर और प्रिसिजन स्ट्राइक की भूमिका बढ़ गई है. बड़ी इन्फैंट्री (पैदल सेना) की जरूरत कम हो रही है. यह सुझाव आंशिक रूप से सही है... 

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व्यावहारिक पक्ष...

  • अमेरिका जैसे देश सेना की संख्या घटाकर टेक्नोलॉजी (AI, ड्रोन) पर फोकस कर रहे हैं.
  • भारत में भी अग्निपथ योजना और थिएटर कमांड जैसे सुधार हो रहे हैं, ताकि सेना छोटी लेकिन अधिक कुशल बने.
  • बड़ी सेना का रखरखाव बहुत महंगा है – सैलरी, पेंशन पर बड़ा खर्च. यह पैसा आधुनिकीकरण (नई मिसाइल, ड्रोन, साइबर डिफेंस) पर लग सकता है.
  • ऑपरेशन सिंदूर जैसे मामलों में हवाई/मिसाइल युद्ध की भूमिका प्रमुख थी.

अव्यावहारिक और जोखिम भरा पक्ष...

  • भारत की लंबी सीमाएं (चीन और पाकिस्तान से हजारों किलोमीटर विवादित बॉर्डर) जमीनी घुसपैठ, आतंकवाद और इंसर्जेंसी रोकने के लिए बड़ी थलसेना की जरूरत रखती हैं.
  • क्षेत्र कब्जा या बचाव (जैसे कारगिल 1999 या गलवान 2020) के लिए ग्राउंड ट्रूप्स अनिवार्य हैं. हवाई हमले अकेले क्षेत्र नहीं जीत सकते.
  • अचानक बड़ी कटौती से सेना का मनोबल गिर सकता है. तैयारियां कमजोर हो सकती हैं.
  • वैश्विक ट्रेंड भी इसके विपरीत है – ज्यादातर देश सेनाएं और बजट बढ़ा रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को सेना को आधुनिक बनाना चाहिए (टेक्नोलॉजी बढ़ाकर संख्या स्थिर रखते हुए), लेकिन बड़ी कटौती अभी जोखिम भरी होगी.

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दुनिया की सेनाएं: कटौती या बढ़ोतरी? आंकड़े क्या कहते हैं

चव्हाण के सुझाव के विपरीत, वैश्विक ट्रेंड सेनाओं और रक्षा खर्च में बढ़ोतरी का है. SIPRI की 2025 रिपोर्ट के अनुसार...

  • 2024 में वैश्विक सैन्य खर्च रिकॉर्ड 2.718 ट्रिलियन डॉलर पहुंचा – 2023 से 9.4% बढ़ोतरी, कोल्ड वॉर के बाद सबसे तेज.
  • पिछले 10 सालों में 37% वृद्धि.
  • 100 से ज्यादा देशों ने 2024 में बजट बढ़ाया.
  • सभी क्षेत्रों (यूरोप, मध्य पूर्व, एशिया, अमेरिका, अफ्रीका) में खर्च बढ़ा.
  • कारण: यूक्रेन-रूस युद्ध, गाजा संघर्ष, एशिया में तनाव.

सेना के कर्मियों की संख्या में भी कुल बढ़ोतरी (खासकर यूरोप और एशिया में). कुछ विकसित देश टेक्नोलॉजी पर फोकस करके संख्या स्थिर रख रहे हैं.

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पिछले सालों में टॉप 5 रक्षा बजट वाले देश (SIPRI 2024 डेटा)

  • अमेरिका: 997 बिलियन डॉलर (हर साल बढ़ोतरी)  
  • चीन: 314 बिलियन डॉलर (30 साल से लगातार बढ़ रहा)  
  • रूस: लगभग 149 बिलियन डॉलर (यूक्रेन युद्ध से तेज वृद्धि)  
  • जर्मनी: 88.5 बिलियन डॉलर (2024 में बड़ा जंप)  
  • भारत: लगभग 86 बिलियन डॉलर (दशक में 42% वृद्धि)

ये पांच देश दुनिया के कुल खर्च का 60% हिस्सा खर्च करते हैं.

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कौन से देश कटौती कर रहे हैं? बहुत कम...

  • ईरान: 2024 में 10% कमी (7.9 बिलियन डॉलर).
  • मोरक्को: लगातार कमी.
  • कुछ अन्य छोटे देश.

कुल मिलाकर, वैश्विक ट्रेंड बढ़ोतरी का है. शांति की उम्मीद कम है. खर्च आगे बढ़ेगा. भारत जैसे देशों के लिए संतुलन जरूरी – टेक्नोलॉजी अपनाओ, लेकिन जमीनी ताकत बनाए रखो.

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