आज से ठीक 54 साल पहले, 16 दिसंबर 1971 को ढाका के रामना रेस कोर्स पर पाकिस्तान की सेना ने इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण किया. लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने हथियार डाले. 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक कैदी बने. पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया. लेकिन पाकिस्तान की अपनी जांच में हार का कारण कुछ और निकला – शराब, औरतें और नैतिक पतन.
ढाका में धूप खिली थी. नियाजी कांपते हाथों से आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रहे थे. सामने भारतीय और मुक्तिवाहिनी के कमांडर. पीछे 93 हजार सैनिक. बांग्लादेश के गुस्साए लोग बैरिकेड तोड़ने को बेकरार. भारतीय झंडे लहरा रहे थे. पाकिस्तान का आधा हिस्सा हमेशा के लिए खो गया.
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इसी समय रावलपिंडी में जनरल याह्या खान हैंगओवर से जूझ रहे थे. उनकी करीबी 'जनरल रानी' कुछ घंटे पहले उनके घर से निकली थीं. गवाहों ने बाद में बताया कि रात की पार्टी बहुत जोरदार थी.

हार के सदमे में पाकिस्तान के नए नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने चीफ जस्टिस हमूदुर रहमान की अगुवाई में जांच कमीशन बनाया. मकसद था – पता लगाना कि पूर्वी पाकिस्तान क्यों खो गया और जिम्मेदार कौन है?
कमीशन ने 1972-74 में जांच की. मुख्य रिपोर्ट 1974 में आई, लेकिन पूरक रिपोर्ट का 'नैतिक पहलू' वाला अध्याय सबसे विवादास्पद था. कमीशन ने साफ कहा कि हार सिर्फ सैन्य गलतियों से नहीं हुई. सेना के बड़े अफसरों का नैतिक पतन मुख्य कारण था. मार्शल लॉ के कामों से शुरू हुई ये गिरावट याह्या के समय में चरम पर पहुंच गई. बड़े अफसर भ्रष्टाचार और अनैतिक जीवन में डूब गए, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता खत्म हो गई थी.
जनरल याह्या खान 1969 में सत्ता में आए. शराब पीने और पार्टियों के शौकीन. कमीशन के अनुसार, याह्या और उनके करीबियों ने सत्ता के शीर्ष पर नशे और अनैतिकता का माहौल बनाया. ढाका से हार की खबरें आ रही थीं, लेकिन कमांडर-इन-चीफ 'व्यस्त' रहते थे.
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'जनरल रानी' यानी अकलीम अख्तर उनकी सबसे करीबी थीं. कोई आधिकारिक पद नहीं, लेकिन प्रमोशन, ठेके सब उनके जरिए होते थे. मशहूर गायिका नूरजहां भी याह्या के घर आती-जाती थीं. कमीशन ने सीधे नाम नहीं लिए, लेकिन बाद की कहानियों में ये दोनों औरतें हार का प्रतीक बन गईं.
नियाजी पर कमीशन सबसे सख्त था. उन्हें अनैतिकता और भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया. लाहौर में एक वेश्यालय से रिश्ते, रिश्वत लेना, यहां तक कि सैनिकों में कहा जाता था – जब कमांडर खुद ऐसा है, तो हम क्यों रुकें?. नियाजी पर पूर्वी पाकिस्तान से पान की तस्करी का भी आरोप था. उनकी वजह से सेना में अनुशासन खत्म हो गया.

कमीशन ने कहा – शराब, औरतें और भ्रष्टाचार से अफसरों की लड़ने की इच्छा खत्म हो गई. बड़े अफसरों की कोर्ट मार्शल की सिफारिश की, लेकिन कभी अमल नहीं हुआ. रिपोर्ट दशकों तक दबी रही.
कुछ कहते हैं ये नैतिक पतन की बात राजनीतिक बहाना था – असली कारण थे बंगालियों पर अत्याचार, चुनाव न मानना और अलगाववाद. लेकिन कमीशन के सबूत बताते हैं कि नैतिक गिरावट ने भी हार में बड़ा रोल निभाया.
याह्या 1980 में मरे, नियाजी 2004 में. दोनों पर कभी मुकदमा नहीं चला. पाकिस्तान आज भी 1971 के सबकों से जूझ रहा है. वो हैंगओवर आज भी सिरदर्द देता है.