छत्तीसगढ़ के बस्तर जंगलों में सालों तक आतंक का पर्याय बना नाम था – माडवी हिडमा. वह हमेशा AK-47 राइफल लेकर घूमता था. उसके साथी भी INSAS, SLR जैसी आधुनिक राइफलें इस्तेमाल करते थे. ये हथियार सेना और पुलिस के होते हैं. सवाल उठता है कि ये घातक हथियार आखिरी बचे नक्सलियों तक कैसे पहुंच जाते हैं?
ये एक रहस्य था, लेकिन अब सुरक्षाबलों की सफलता से साफ हो रहा है. हाल ही में आंध्र प्रदेश के जंगलों में हुए एनकाउंटर में हिडमा, उसकी पत्नी राजे और चार साथी मारे गए. वहां से दो AK-47, पिस्तौल और दूसरी राइफलें बरामद हुईं. हिडमा पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था. वह 26 बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था, जैसे 2010 का दंतेवाड़ा हमला (76 जवान शहीद) और 2013 का झीरम घाटी हमला.
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रक्षा विशेषज्ञ और सरकारी रिपोर्ट्स (जैसे गृह मंत्रालय, SATP और NIA) के अनुसार, नक्सलियों के हथियारों के मुख्य स्रोत ये हैं..

पुलिस-सुरक्षाबलों से लूटना (सबसे बड़ा स्रोत)
नक्सली पुलिस कैंप या गश्त पर हमला करके हथियार लूट लेते हैं. AK-47, INSAS, SLR जैसी राइफलें ज्यादातर इसी तरह मिलती हैं. पुराने हमलों में हजारों हथियार लूटे गए. अब सुरक्षाबल मजबूत हो गए हैं, इसलिए लूट कम हुई है, लेकिन बचे नक्सली अब भी यही तरीका अपनाते हैं.
देश में ही बनाना (देशी फैक्ट्री)
बिहार, यूपी, एमपी में अवैध फैक्टरियां AK-47 की नकल बनाती हैं. नक्सली जंगल में खुद लेथ मशीन से हथियार बनाते हैं. इस साल छत्तीसगढ़ में एक एनकाउंटर में हमास जैसी सुरंग में हथियार फैक्ट्री मिली थी.
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खरीदना या तस्करी
पहले नक्सली पूर्वोत्तर के उग्रवादियों (जैसे ULFA, NSCN) या श्रीलंका के LTTE से हथियार खरीदते थे. नेपाल बॉर्डर से भी आते थे. अब फंडिंग रुक गई है – ठेकेदारों से उगाही, तेंदू पत्ता का पैसा बंद हो गया. ऑनलाइन पेमेंट और ED-NIA की कार्रवाई से पैसे नहीं आते.
सरेंडर करने वालों से वापस मिलना
जब नक्सली सरेंडर करते हैं, तो हथियार जमा करते हैं. लेकिन कुछ हथियार छिपाकर रख लेते हैं या बाद में फिर इस्तेमाल करते हैं. इस साल हजारों नक्सली सरेंडर कर चुके हैं, जिनसे AK-47 समेत सैकड़ों हथियार मिले.

इस साल छत्तीसगढ़ में अबूझमाड़ और नॉर्थ बस्तर को नक्सल-मुक्त घोषित कर दिया गया. सिर्फ साउथ बस्तर में कुछ बचे हैं. हिडमा का मारा जाना 'नक्सलवाद में आखिरी कील' कहा जा रहा है. उसके बाद बची PLGA बटालियन-1 (सबसे खतरनाक यूनिट) अब कमजोर हो गई.
नक्सलियों के पास पहले हजारों आधुनिक हथियार थे, लेकिन अब वे हथियारों की कमी से जूझ रहे हैं. सरकार की रणनीति – ज्यादा कैंप, ड्रोन, फंडिंग रोकना और सरेंडर पॉलिसी – काम कर रही है. हिडमा जैसा खूंखार कमांडर भी AK-47 बचाकर नहीं भाग सका. आने वाले दिनों में बाकी नक्सली भी या तो सरेंडर करेंगे या खत्म हो जाएंगे.