भारत का आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष जारी है. मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के छह महीने बाद भी पाकिस्तानी आतंकवाद की चुनौतियां कम नहीं हुईं. इंडिया टुडे की टीम लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के उरी सेक्टर के सीमावर्ती गांवों में गई. यहां पाकिस्तानी गोलीबारी ने तबाही मचाई थी. दर्जनों लोग मारे गए, सैकड़ों घर तबाह हो गए.
आज हम आपको बताएंगे कि ग्रामीणों की जिंदगी अब कैसी है. बंकरों का सपना अधूरा है. जले घर अब भी मलबे में हैं, और सख्त सर्दी में लोग बेघर घूम रहे हैं. ये एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट है, जो दिखाती है कि सरकारी वादों के बीच ग्रामीणों की असल पीड़ा क्या है.
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पहलगाम हमले के बाद भारत ने आतंकवाद को 'युद्ध का कार्य' मान लिया. दिल्ली धमाके ने राज्यों में सफेद कॉलर आतंक नेटवर्क उजागर किया. नौगाम में विस्फोटक फटा, जांच जारी है. मई में ऑपरेशन सिंदूर चला. भारत ने पाकिस्तान के अंदर आतंक के ठिकानों पर सटीक हमले किए.

जवाब में पाकिस्तान ने युद्धविराम तोड़ा और एलओसी पर भारी गोलीबारी की. उरी सेक्टर के गांवों पर गोलियां बरसीं. दर्जनों जानें गईं, सैकड़ों घर जलकर राख हो गए. छह महीने बाद इंडिया टुडे की टीम उरी पहुंची. यहां उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले में एलओसी के साथ लगे 20 से ज्यादा गांव हैं.
पाकिस्तानी पहाड़ियों से नजर आते ही ये गांव हमेशा खतरे में रहते हैं. ग्रामीण कहते हैं कि हमारी जिंदगी वैसी ही है जैसे ऑपरेशन से पहले थी. लेकिन सेना एक्सरसाइज कर रही है, तो हमारी सुरक्षा का क्या?
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उरी के सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोग कहते हैं कि गोलीबारी के दौरान छिपने के लिए बंकर जरूरी हैं. ऑपरेशन सिंदूर से पहले भी उन्होंने कई बार मांग की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई. 2020 में सरकार ने उरी में कई सामुदायिक बंकर बनाने का प्लान बनाया. कुछ बने, लेकिन ज्यादातर अधूरे हैं. ऑपरेशन के बाद एक भी नया बंकर नहीं बना.

पिछले महीने जम्मू-कश्मीर सरकार ने विधानसभा को बताया कि 202 मंजूर व्यक्तिगत बंकरों और ओवरहेड प्रोटेक्शन ट्रेंचों में से 40 पूरे हो गए. बाकी 162 चार हफ्तों में बनने थे. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जमीनी हकीकत अलग है. कोई नया काम नहीं हुआ.
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बारामूला के डिप्टी कमिश्नर ने मई की तबाही के बाद 202 ओवरहेड प्रोटेक्शन ट्रेंच मंजूर किए. लेकिन ये भी गांवों में नहीं बने. ग्रामीण सवाल उठाते हैं कि सेना कार्रवाई के लिए तैयार हो रही है, तो हमारी सुरक्षा का इंतजाम क्यों नहीं?. लाल हुसैन कोहली ने कहा कि पुराने बंकर टूटे-फूटे हैं. नया कुछ नहीं. गोलीबारी हो तो क्या करें?

बंकरों की कमी एक समस्या है, लेकिन पाकिस्तानी गोलीबारी से जले घरों की कहानी और दर्दनाक है. सलामाबाद जैसे एलओसी गांवों में घर जल गए, लेकिन मुआवजा कम था. ग्रामीण अब सर्दी में कैंपों में रह रहे हैं. इंडिया टुडे ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जमीनी हकीकत देखी थी. अब लौटकर देखा तो तस्वीर झकझोर देने वाली है.
ग्रामीणों ने बताया कि थोड़ा-सा पैसा मिला, लेकिन घर दोबारा बनाने के लिए कम था. वे सेना के चेकपॉइंट के अंदर रहते हैं, जहां निर्माण मुश्किल है. ज्यादातर मजदूर हैं, खुद नहीं बना सकते. कोई अधिकारी या नेता ऑपरेशन के बाद नहीं आया.
सलामाबाद गांव की जीनत जिनके सीने में शेल से चोट लगी है, कहती हैं कि मेरा घर जल गया. छाती में गोली लगी, लेकिन दर्द घर का ज्यादा है. थोड़ा पैसा मिला, लेकिन क्या करूं? कैंप में ठंड लग रही है. बच्चे बीमार हो रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि न घर, न बंकर. सर्दी में सड़क पर सोते हैं. सरकार कब मदद करेगी? ये गांव संवेदनशील जगहों पर हैं, फंड न होने से काम रुका है.

भारत आतंकवाद के खिलाफ मजबूत कदम उठा रहा है, लेकिन एलओसी के ग्रामीणों की आवाज दब रही है. बंकर न बनने से जान का खतरा है, घर न बनने से जिंदगी कठिन हो गई है. सरकार को अब तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.