भारत ने हाल ही में अग्नि-5 मिसाइल का एक ऐतिहासिक परीक्षण किया, जिसे मिशन दिव्यास्त्र नाम दिया गया. इस परीक्षण में अग्नि-5 ने मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक का प्रदर्शन किया, जो इसे एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाने की क्षमता देता है.
लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है इसका 90 डिग्री का तीव्र मोड़, जो सामान्य बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए असंभव माना जाता है. यह करतब डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की तकनीकी ताकत का प्रतीक है.
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अग्नि-5 क्या है?
अग्नि-5 एक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) है. यह भारत की सबसे लंबी दूरी की मिसाइल है, जिसकी रेंज 5000 से 8000 किलोमीटर तक है. यह मिसाइल तीन चरणों वाली ठोस ईंधन प्रणाली से चलती है और मैक 24 (29,400 किमी/घंटा) की रफ्तार पकड़ सकती है.
यह चीन के उत्तरी हिस्सों और यूरोप के कुछ क्षेत्रों को भी निशाना बना सकती है. अग्नि-5 को रोड-मोबाइल और कैनिस्टराइज्ड बनाया गया है, यानी इसे ट्रक से कहीं भी ले जाया और मिनटों में लॉन्च किया जा सकता है. इसका वजन 50 टन है. यह 1.5-2 टन तक का पेलोड ले जा सकता है.
90 डिग्री का हैरतअंगेज टर्न
सामान्य बैलिस्टिक मिसाइलें एक निश्चित प्रक्षेप पथ (ट्रैजेक्ट्री) पर चलती हैं, जो घुमावदार होता है. लेकिन अग्नि-5 ने इस बार मध्य उड़ान (मिड-फेज) में 90 डिग्री का तीव्र मोड़ लिया, जो तकनीकी रूप से असाधारण है. सामान्य मिसाइलों में इतना तीव्र मोड़ जी-फोर्स (गुरुत्वाकर्षण बल) और प्रीसेशन के कारण मिसाइल के टूटने का खतरा पैदा करता है. लेकिन DRDO ने इस असंभव को संभव कर दिखाया.
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कैसे हुआ यह करतब?
इस 90 डिग्री मोड़ ने मिसाइल को मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में सक्षम बनाया, क्योंकि यह अप्रत्याशित दिशा बदल सकती है.

मिशन दिव्यास्त्र: MIRV तकनीक का कमाल
11 मार्च 2024 को डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वीप (ओडिशा) से अग्नि-5 का पहला MIRV परीक्षण किया गया. MIRV तकनीक का मतलब है कि एक मिसाइल कई न्यूक्लियर वॉरहेड्स ले जा सकती है, जो अलग-अलग लक्ष्यों को निशाना बना सकते हैं. प्रत्येक वॉरहेड का वजन 400 किलोग्राम तक हो सकता है. मिशन दिव्यास्त्र में अग्नि-5 ने 4 न्यूक्लियर वॉरहेड्स ले जाने की क्षमता दिखाई.
इस तकनीक से भारत उन चुनिंदा देशों (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, और ब्रिटेन) में शामिल हो गया, जिनके पास MIRV मिसाइलें हैं. यह तकनीक भारत की न्यूक्लियर डिटरेंस (परमाणु निरोध) को और मजबूत करती है, खासकर चीन के खिलाफ, जिसके पास पहले से DF-5B जैसी MIRV मिसाइलें हैं.
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MIRV बस: कितने वॉरहेड्स?
MIRV बस वह हिस्सा है, जो कई वॉरहेड्स को ले जाता है. उन्हें अलग-अलग लक्ष्यों तक पहुंचाता है. अग्नि-5 का MIRV बस 4 से 5 वॉरहेड्स ले जा सकता है, जैसा कि इसकी साइज और डायमीटर से अनुमान लगाया गया है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह 10-12 वॉरहेड्स तक ले जा सकता है, लेकिन DRDO ने आधिकारिक तौर पर 4 वॉरहेड्स की पुष्टि की है.

मिशन दिव्यास्त्र की खासियत
पहला MIRV टेस्ट: 11 मार्च 2024 को हुआ यह टेस्ट भारत का पहला MIRV परीक्षण था, जिसे शंकरी चंद्रशेखरन (प्रोजेक्ट डायरेक्टर) और शीला रानी (प्रोग्राम डायरेक्टर) जैसी महिला वैज्ञानिकों ने नेतृत्व किया.
स्वदेशी तकनीक: मिसाइल में स्वदेशी एवियोनिक्स, सटीक सेंसर और गाइडेंस सिस्टम का उपयोग हुआ, जो आत्मनिर्भर भारत की मिसाल है.
रणनीतिक महत्व: यह मिसाइल चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के लिए मजबूत संदेश है. यह नो-फर्स्ट-यूज नीति के तहत भारत की जवाबी हमले की क्षमता को बढ़ाती है.
लॉन्च सिस्टम: ट्रांसपोर्ट-कम-टिल्टिंग व्हीकल-5 (140 टन, 30 मीटर लंबा ट्रेलर) से लॉन्च होने वाली यह मिसाइल मिनटों में तैयार हो सकती है.

क्यों है यह उपलब्धि खास?
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भविष्य की योजनाएं
अग्नि-6: यह एक नई MIRV-सक्षम मिसाइल होगी, जो 10-12 वॉरहेड्स ले जा सकती है और 12,000 किमी तक की रेंज होगी. इसका डिजाइन तैयार है. 2024-25 में टेस्ट हो सकता है.
पनडुब्बी लॉन्च मिसाइल (SLBM): भारत जल्द ही K-सीरीज मिसाइल का टेस्ट करेगा, जो पनडुब्बियों से लॉन्च होगी.
ASAT क्षमता: अग्नि-5 को एंटी-सैटेलाइट (ASAT) हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो 800 किमी ऊंचाई तक सैटेलाइट को नष्ट कर सकता है.
Pressure tank here maintains pressure in the propellant lines or help in tank pressurization for controlled flow. And the oxidizer tank provides thrust and maneuverability so the PBV/MIRV bus can orient and deploy each warhead to a separate target.#A5 https://t.co/nVsBbhuhez pic.twitter.com/7ZS6O1lqDQ
— Defence Decode® (@DefenceDecode) August 21, 2025
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चुनौतियां और चिंताएं
हथियारों की दौड़: विशेषज्ञों का कहना है कि MIRV तकनीक क्षेत्रीय हथियारों की दौड़ को बढ़ा सकती है, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ.
तकनीकी चुनौतियां: छोटे वॉरहेड्स बनाना और सटीक गाइडेंस सिस्टम विकसित करना जटिल है. भारत ने सीमित न्यूक्लियर टेस्ट के बावजूद यह हासिल किया.
राजनीतिक निर्णय: मिसाइल की रेंज और वॉरहेड्स की संख्या जैसे फैसले कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) लेगी.