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सदा पे, ईजी पैसा, डिजिटल वॉलेट्स... ऑनलाइन चंदे की रकम सीधे जा रही आतंकी मसूद अजहर के खातों में

जैश-ए-मोहम्मद ने गुप्त रूप से 3910 करोड़ रुपये जुटाने का अभियान चलाया, ताकि पाकिस्तान में 313 नए आतंकी प्रशिक्षण शिविर बनाए जा सकें. मसूद अजहर और उसके भाई तल्हा अल सैफ ने डिजिटल वॉलेट्स और मस्जिदों में चंदा इकट्ठा किया. अल रहमत ट्रस्ट ने भी फंडिंग में मदद की. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से जैश के ठिकानों पर हमला कर इस योजना को झटका दिया.

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जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी आका मसूद अजहर और उसके परिवार वाले डिजिटल वॉलेट के जरिए दान लेते थे पैसा. (File Photo: Reuters)
जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी आका मसूद अजहर और उसके परिवार वाले डिजिटल वॉलेट के जरिए दान लेते थे पैसा. (File Photo: Reuters)

पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने चुपके से बड़ी फंडरेजिंग अभियान शुरू किया था, जिसका मकसद 313 नए मरकज (प्रशिक्षण शिविर और सुरक्षित ठिकाने) बनाने के लिए 3,910 करोड़ रुपये (PKR 3.91 बिलियन) जुटाना था.

यह अभियान जैश के आतंकी ढांचे को मजबूत करने और हथियारों के भंडार को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम था. इस कहानी में हम इस गुप्त योजना, इसके नेताओं और इसके खतरनाक मंसूबों को समझेंगे.

जैश का खतरनाक मिशन

जैश-ए-मोहम्मद, जिसे मौलाना मसूद अजहर ने 2000 में स्थापित किया था, भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए कुख्यात है. इस संगठन ने 2001 में भारतीय संसद पर हमला, 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला और 2019 में पुलवामा हमले जैसे बड़े आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया.

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अब जैश ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए एक नया और गुप्त अभियान शुरू किया, जिसके तहत वह पाकिस्तान में 313 नए मरकज बनाना चाहता था. ये मरकज न केवल आतंकियों को प्रशिक्षण देने के लिए थे, बल्कि मसूद अजहर और उसके परिवार के लिए सुरक्षित ठिकाने के रूप में भी काम करते, ताकि उनकी मौजूदगी को छिपाया जा सके.

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इस अभियान का लक्ष्य था 3,910 करोड़ रुपये जुटाना, जिससे जैश न केवल नए शिविर बना सके, बल्कि मशीन गन, रॉकेट लॉन्चर और मोर्टार जैसे उन्नत हथियार भी खरीद सके. इस रकम का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने और नए हमलों की योजना बनाने में होना था.

डिजिटल वॉलेट्स का जाल

जैश ने इस फंडरेजिंग अभियान को अंजाम देने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया. संगठन ने ईजीपैसा (EasyPaisa) और सदापे (SadaPay) जैसे पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल किया, जो बैंक खातों से अलग काम करते हैं.

ये वॉलेट्स वॉलेट-टू-वॉलेट और वॉलेट-टू-कैश लेनदेन की सुविधा देते हैं, जिससे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए इनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है. साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अमित दूबे के अनुसार, ये डिजिटल वॉलेट्स डिजिटल हवाला की तरह काम करते हैं, जो बिना बैंकिंग नेटवर्क के पैसों का लेनदेन संभव बनाते हैं.

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इन डिजिटल वॉलेट्स को मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों के मोबाइल नंबरों से जोड़ा गया था. उदाहरण के लिए, एक सदापे खाता मसूद अजहर के भाई तल्हा अल सैफ (तल्हा गुलजार) के नाम पर था, जो पाकिस्तानी मोबाइल नंबर +92 3025xxxx56 से जुड़ा था.

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यह नंबर जैश के हरिपुर जिला कमांडर अफताब अहमद के नाम पर रजिस्टर्ड था, जिसका पता हरिपुर के खाला बट्ट टाउनशिप में जैश के शिविर से मेल खाता था. इसी तरह, एक ईजीपैसा वॉलेट मसूद अजहर के बेटे अब्दुल्ला अजहर के मोबाइल नंबर +92 33xxxx4937 से जुड़ा था.

इसके अलावा, गाजा की मदद के नाम पर एक और वॉलेट +92xxxx195206 नंबर से चलाया जा रहा था, जो खालिद अहमद के नाम पर था, लेकिन इसे मसूद अजहर के बेटे हम्माद अजहर द्वारा संचालित किया जा रहा था.

जैश की रणनीति थी कि वह हर 3-4 महीने में इन वॉलेट्स को बदल देता था. बड़ी रकम को पहले मुख्य वॉलेट्स में जमा किया जाता, फिर उसे 10-15 छोटे वॉलेट्स में बांटकर नकद निकाला जाता या ऑनलाइन ट्रांसफर किया जाता. इससे FATF की निगरानी से बचना आसान हो जाता था.

मस्जिदों में नकद चंदा और अल रहमत ट्रस्ट

डिजिटल वॉलेट्स के अलावा, जैश के कमांडर हर शुक्रवार को पाकिस्तान की मस्जिदों में नकद चंदा इकट्ठा करते थे. यह चंदा कथित तौर पर गाजा की मदद के लिए था, लेकिन वास्तव में इसका इस्तेमाल जैश की आतंकी गतिविधियों के लिए होता था. खैबर पख्तूनख्वा में एक वीडियो में जैश के कमांडर वसीम चौहान (उर्फ वसीम खान, उर्फ अकबर) को शुक्रवार की नमाज के बाद नकद गिनते देखा गया.

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जैश से जुड़ा संगठन अल रहमत ट्रस्ट भी इस अभियान में अहम भूमिका निभा रहा था. यह ट्रस्ट बहावलपुर में नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान के एक खाते (खाता नंबर 105XX9) के जरिए चंदा इकट्ठा करता था, जिसे गुलाम मुर्तजा के नाम पर संचालित किया जाता था.

इस ट्रस्ट को मसूद अजहर, तल्हा अल सैफ, और अन्य जैश नेता जैसे मोहम्मद इस्माइल, मोहम्मद फारूक, फजल-उर-रहमान और रिहान अब्दुल रज्जाक चलाते थे. अल रहमत ट्रस्ट हर साल जैश के फंड में 6-7% (लगभग 100 करोड़ रुपये) का योगदान देता था.

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313 मरकज का खतरनाक प्लान

जैश का लक्ष्य था कि ये 313 नए मरकज पूरे पाकिस्तान में बनाए जाएं. ये मरकज दो मुख्य उद्देश्यों के लिए थे...

  • सुरक्षित ठिकाने: ये मरकज मसूद अजहर और उसके परिवार के लिए सुरक्षित ठिकाने के रूप में काम करते, ताकि वह अपनी मौजूदगी को छिपा सकें. इससे पाकिस्तान सरकार और FATF को यह दिखाने में मदद मिलती कि मसूद अजहर का पता नहीं है.
  • प्रशिक्षण शिविर: इन मरकज का इस्तेमाल नए आतंकियों को भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए किया जाना था. इन शिविरों में मशीन गन, रॉकेट लॉन्चर और मोर्टार जैसे हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता.

जैश ने अपने समर्थकों को सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए प्रचार सामग्री भेजी, जिसमें मसूद अजहर का एक पत्र और वीडियो शामिल थे. इनमें समर्थकों से प्रत्येक मरकज के लिए 12.5 मिलियन रुपये (1.25 करोड़ रुपये) दान करने की अपील की गई थी. यह अभियान पाकिस्तान के साथ-साथ विदेशों में रहने वाले समर्थकों को भी टारगेट कर रहा था.

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बहावलपुर: जैश का मुख्य केंद्र

जैश का मुख्यालय जमिया मस्जिद सुभान अल्लाह बहावलपुर पंजाब में स्थित है. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि 2011-12 में बने इस मुख्यालय का आकार 2022 के बाद दोगुना होकर 18 एकड़ से अधिक हो गया है. यह विस्तार तब हुआ, जब 2022 में FATF ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट से हटा लिया था. इस मुख्यालय का इस्तेमाल भर्ती और फंडरेजिंग के लिए किया जाता है, जबकि आतंकी प्रशिक्षण खैबर पख्तूनख्वा और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में अलग-अलग शिविरों में होता है.

इस मुख्यालय को अल रहमत ट्रस्ट के जरिए स्थापित किया गया था. इसे मसूद अजहर के भाई रऊफ असगर और तल्हा अल सैफ नियमित रूप से देखते हैं. तल्हा अल सैफ जैश की प्रचार और आउटरीच शाखा का नेतृत्व करता है और अक्सर फंडरेजिंग इवेंट्स में देखा जाता है. 

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FATF की निगरानी से बचने की रणनीति

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाला एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है. 2008 से 2022 तक पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट में था, क्योंकि वह जैश और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की फंडिंग को रोकने में नाकाम रहा. 2019 में मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने वैश्विक आतंकी घोषित किया था, जिसके बाद पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा.

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पाकिस्तान ने FATF को दिखाने के लिए दावा किया कि उसने मसूद अजहर, उसका भाई रऊफ असगर और तल्हा अल सैफ के बैंक खातों को सरकारी निगरानी में लिया है. उसने नकद लेनदेन और चमड़े के दान पर भी रोक लगाई थी. लेकिन जैश ने डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल शुरू करके इस निगरानी को चकमा दे दिया. पाकिस्तान ने 2022 में यह भी दावा किया कि मसूद अजहर अफगानिस्तान में छिपा है, लेकिन तालिबान ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसे आतंकी संगठन पाकिस्तानी जमीन पर आधिकारिक संरक्षण में काम करते हैं.

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आतंकी हमलों की नई लहर की तैयारी

3910 करोड़ रुपये का यह फंडरेजिंग अभियान जैश के लिए एक बड़ी सफलता था. संगठन ने पाकिस्तान और विदेशों से भारी मात्रा में चंदा इकट्ठा किया. इस रकम का इस्तेमाल उन्नत हथियार खरीदने और आतंकी ढांचे को मजबूत करने में किया गया. जैश के नेता इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि उनकी गुप्त फंडरेजिंग और सुरक्षित संचार चैनलों की वजह से उनकी योजनाएं पकड़ में नहीं आएंगी.

जैश की योजना थी कि ये नए मरकज भारत, खासकर जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों की नई लहर शुरू करेंगे. संगठन ने पहले भी पुलवामा (2019) और पठानकोट (2016) जैसे हमलों को अंजाम दिया था. अब यह और बड़े हमलों की तैयारी में था.

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भारत की प्रतिक्रिया और ऑपरेशन सिंदूर

भारत ने जैश की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी थी. 7 मई 2025 को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और PoK में जैश के ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए. इनमें बहावलपुर में जैश का मुख्यालय जमिया मस्जिद सुभान अल्लाह भी निशाना बना. इस हमले में मसूद अजहर के 10 परिवार वालों और चार करीबी सहयोगियों की मौत हुई. 

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