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हिडमा की मौत के बाद टॉप नक्सली कमांडरों में हथियार डालने की बेचैनी, MMC ज़ोन ने दिया आत्मसमर्पण का संकेत

हिडमा की मौत और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के फैसलों के बाद, महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MMC) ज़ोन के नक्सली कमांडरों ने आत्मसमर्पण और युद्धविराम की इच्छा जताई है. प्रवक्ता द्वारा जारी पत्र में PLGA गतिविधियों पर रोक और सरकार से बातचीत की अपील शामिल है.

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हिडमा की मौत के बाद नक्सलियों में हलचल मची है (फाइल फोटो)
हिडमा की मौत के बाद नक्सलियों में हलचल मची है (फाइल फोटो)

कुख्यात माओवादी कमांडर हिडमा के मारे जाने के बाद संगठन के भीतर तेजी से हलचल बढ़ गई है. इसी माहौल में MMC ज़ोन की ओर से एक महत्वपूर्ण पत्र तीनों राज्यों की सरकारों को जारी किया गया, जिसमें नक्सली कमांडरों ने आत्मसमर्पण का संकेत दिया है. 

पत्र में साफ कहा गया कि केंद्रीय कमेटी देश-दुनिया की बदली परिस्थितियों का आकलन करते हुए संघर्ष को अस्थायी तौर पर रोकना चाहती है. हिडमा की मौत ने भी इस फैसले को और मजबूती दी है. संगठन के कई पुराने कमांडर अब लड़ाई छोड़कर सुरक्षित माहौल में मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं. नक्सल संगठन की रणनीति में यह सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है.

नक्सल कमांडरों में बेचैनी
पत्र में जिक्र किया गया कि पार्टी की केंद्रीय कमेटी के सदस्य और पोलित ब्यूरो के नेता कॉमरेड सोमा दादा ने भी संघर्ष रोकने का निर्णय लिया है. इसी दिशा में MMC ज़ोन ने न सिर्फ समर्थन दिया, बल्कि इसे जमीन पर लागू करने का फैसला किया. हिडमा की मौत ने नक्सली कमांडरों को यह महसूस कराया है कि अब जंगलों में लड़ाई का दौर अधिक समय तक जारी नहीं रह सकता. कई टॉप कमांडरों को अपने भविष्य, सुरक्षा और परिवार की चिंता सता रही है. इसलिए वे चाहते हैं कि सरकार उनके आत्मसमर्पण की प्रक्रिया को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाए.

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PLGA गतिविधियों को रोकने का निर्देश
MMC ज़ोन की ओर से जारी पत्र में एक बड़ा कदम PLGA की तमाम गतिविधियों पर रोक का निर्देश है. यह पहली बार है जब संगठन ने अपने लड़ाकू दस्तों को इतनी स्पष्ट हिदायत दी है. पत्र में कहा गया कि संगठन में कुछ चुगलखोर तत्वों के कारण अंदरूनी नुकसान हुआ है और संघर्ष रोकना जरूरी है. कमांडरों को आदेश दिया गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में हथियारबंद गतिविधियां बंद करें. यह संकेत है कि हिडमा के बाद संगठन अब बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण या युद्धविराम की दिशा में बढ़ रहा है.

जंगल में छिपे नेता चाहते हैं सुरक्षित बातचीत
पत्र में MMC ज़ोन ने यह स्पष्ट किया कि वे तीनों राज्यों महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों से मुलाकात करना चाहते हैं. इसके लिए जनप्रतिनिधियों और पत्रकारों की मौजूदगी को जरूरी बताया गया है. यह पहली बार है जब शीर्ष नक्सली नेता खुद बैठक की मांग कर रहे हैं. संगठन चाहता है कि प्रतिनिधियों को सुरक्षित जगह पर लाकर बातचीत की जाए, जहां वे अपनी शर्तें रख सकें. हिडमा की मौत के बाद नक्सली कमांडरों का आत्मविश्वास काफी कमजोर हुआ है और वे रास्ता बदलने के संकेत दे रहे हैं.

2026 तक युद्धविराम के संकेत
पत्र में एक अहम बिंदु यह है कि केंद्रीय कमेटी के संदेश में मार्च 2026 तक जनयुद्ध को रोकने की बात कही गई है. यह माओवादियों का अब तक का सबसे बड़ा रणनीतिक बदलाव माना जा रहा है. कई कमांडरों ने इसे जीवन बचाने और भविष्य सुरक्षित करने का मौक़ा समझा है. संगठन ने अपने सदस्यों को आगे के आदेश तक संघर्ष बंद रखने को कहा है. यह संकेत है कि आने वाले महीनों में बड़े स्तर पर आत्मसमर्पण देखने को मिल सकता है.

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सरकार से ‘पहला कदम’ उठाने की अपील
नक्सली प्रवक्ता ने सरकारों से अपील की है कि वे इस पत्र को गंभीरता से पढ़ें और सकारात्मक कदम उठाएं. संगठन चाहता है कि सरकार उनकी बात सुने और आत्मसमर्पण के इच्छुक कमांडरों को सुरक्षित रास्ता दे. शिविरों में बेहतर सुरक्षा, कानूनी प्रक्रिया में मदद और सम्मानजनक पुनर्वास की मांग की गई है. पत्र में यह भी कहा गया कि यदि सरकार आगे आएगी तो नक्सली भी हथियार छोड़ने की तारीख घोषित करेंगे. इस कार्रवाई को हिडमा की मौत के बाद बनी नई ज़मीनी हकीकत का नतीजा माना जा रहा है.

नक्सल कमांडरों में टकराव और डर के हालात
पत्र में यह भी स्वीकार किया गया है कि संगठन के भीतर कई गुटों में टकराव बढ़ गया है. हिडमा की मौत ने यह डर और बढ़ा दिया कि अगला टारगेट कौन होगा. साथ ही कई कमांडर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लगातार दबाव, सुरक्षाबलों की घेराबंदी और कम होती ताकत से जनयुद्ध आगे नहीं बढ़ पाएगा. इसी डर और असुरक्षा के कारण कमांडरों ने संघर्ष रोकने और सुविधा मिलने पर आत्मसमर्पण की इच्छा जताई है. जंगलों में माहौल अब पहले जैसा नहीं रह गया है.

जंगलों में तैनात दस्तों का मनोबल गिरा
PLGA और MMC ज़ोन से जुड़े कई दस्तों के मनोबल में तेजी से गिरावट आई है. पत्र में यह स्वीकार किया गया है कि उनके पास सूचनाएं पहुंचाने का माध्यम सिर्फ चुनिंदा लोग हैं, जिससे वे दुनिया से कटते जा रहे हैं. हिडमा की मौत और अंदरूनी कमजोरियों ने उन्हें यह यकीन दिलाया है कि अब लड़ाई टिक नहीं पाएगी. इसलिए वे चाहते हैं कि सरकार उन्हें सुरक्षित रास्ता दे ताकि वे संगठन छोड़कर सामान्य जीवन जी सकें. यह संकेत बड़ा है कि जंगल में लड़ने वाली पीढ़ी बदलाव चाहती है.

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खनन, विकास और विस्थापन के मुद्दों पर नरमी
पत्र में एक दिलचस्प बात यह है कि संगठन अब खनन कंपनियों, विस्थापन और सरकारी विकास योजनाओं पर पहले जैसी कठोर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है. उन्होंने कहा है कि यदि सरकार चाहती है तो केंद्र से बातचीत कर समस्याओं का समाधान निकाले. यह बदलाव बताता है कि नक्सल एजेंडा अब कमजोर हो चुका है. हिडमा के बाद नेतृत्व में ठोस दिशा नहीं है, इसलिए कई कमांडर चाहते हैं कि सरकार उन्हें साथ लेकर चलने की कोशिश करे. इसी कड़ी में आत्मसमर्पण की राह तलाशना उनके लिए आसान विकल्प बन गया है.

तीनों राज्यों के लिए बड़ा सुरक्षा बदलाव
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों में यह पत्र बड़ी हलचल पैदा कर रहा है. सुरक्षा एजेंसियां इसे नक्सलवाद के कमजोर होते प्रभाव का बड़ा संकेत मान रही हैं. हिडमा की मौत ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है. अब कई कमांडर अंडरग्राउंड होने के बजाय सामने आने को तैयार हैं. यदि सरकार इस मौके को पकड़े, तो आने वाले महीनों में नक्सल मोर्चे पर बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है.

आत्मसमर्पण का औपचारिक ऐलान जल्द?
पत्र के अंतिम हिस्से में साफ कहा गया है कि सरकार के जवाब मिलने के बाद वे ‘हथियार त्यागने की निश्चित तारीख’ की घोषणा करेंगे. इसका मतलब है कि आत्मसमर्पण सिर्फ इच्छा नहीं, बल्कि तय प्रक्रिया का हिस्सा बन चुका है. MMC ज़ोन के 52 सहायकों की टीम भी इस मिशन को आगे बढ़ा रही है. हिडमा के बाद यदि यह सामूहिक आत्मसमर्पण होता है, तो यह नक्सल इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में शामिल होगा.

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