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CrPC Section 162: पुलिस को दिए गए बयान से संबंधित है सीआरपीसी की धारा 162

सीआरपीसी की धारा 162 में पुलिस को दिए गए बयान पर का हस्ताक्षरित न किया जाना और बयान का साक्ष्य में उपयोग करना परिभाषित किया गया है. चलिए जानते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 162 इस बारे में क्या बताती है?

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पुलिस को दिए गए बयान से संबंधित है ये धारा
पुलिस को दिए गए बयान से संबंधित है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पुलिस को दिए गए बयान से संबंधित है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में कोर्ट (Court) और पुलिस (Police) की कार्य प्रणाली से संबंधित प्रावधान दर्ज किए गए हैं. जिनका प्रयोग ज़रूरत पड़ने पर किया जाता है. इसी तरह से सीआरपीसी की धारा 162 में पुलिस को दिए गए बयान पर का हस्ताक्षरित न किया जाना और बयान का साक्ष्य में उपयोग करना परिभाषित किया गया है. चलिए जानते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 162 इस बारे में क्या बताती है? 

सीआरपीसी की धारा 162 (CrPC Section 162)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 162 में पुलिस को दिए गए उन कथनों का जिक्र है, जिस पर हस्ताक्षर नहीं किए गए और बयानों का साक्ष्य में उपयोग किया जाना बताया गया है. CrPC की धारा 162 के मुताबिक- 

(1) किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान किया गया कोई कथन, यदि लेखबद्ध किया जाता है तो कथन करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा, और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अभिलेख, चाहे वह पुलिस डायरी में हो या न हो, और न ऐसे कथन या अभिलेख का कोई भाग ऐसे किसी अपराध की, जो ऐसा कथन किए जाने के समय अन्वेषणाधीन था, किसी जांच या विचारण में, इसमें इसके पश्चात् यथाउपबंधित के सिवाय, किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाएगा:

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परंतु जब कोई ऐसा साक्षी, जिसका कथन उपर्युक्त रूप में लेखबद्ध कर लिया गया है, ऐसी जांच या विचारण में अभियोजन की ओर से बुलाया जाता है तब यदि उसके कथन का कोई भाग, सम्यक् रूप से साबित कर दिया गया है तो, अभियुक्त द्वारा और न्यायालय की अनुज्ञा से अभियोजन द्वारा उसका उपयोग ऐसे साक्षी का खंडन करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 145 द्वारा उपबंधित रीति से किया जा सकता है और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस प्रकार उपयोग में लाया जाता है तब उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुनः परीक्षा में भी, किंतु उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी बात का स्पष्टीकरण करने के प्रयोजन से ही, उपयोग में लाया जा सकता है.

(2) इस धारा की किसी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 32 के खंड (1) के उपबंधों के अंदर आने वाले किसी कथन को लागू होती है या उस अधिनियम की धारा 27 के उपबंधों पर प्रभाव डालती है.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 161: पुलिस को गवाहों के परीक्षण का अधिकार देती है धारा 161 

क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. 

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CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

 

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