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तरनतारन फेक एनकाउंटर केस: 32 साल बाद मिला न्याय, SSP-DSP सहित 5 पूर्व पुलिस अधिकारी दोषी करार

Tarn Taran Fake Encounter Case: पंजाब के तरनतारन जिले में साल 1993 में हुए एक फेक एनकाउंटर केस में मोहाली स्थित सीबीआई कोर्ट ने पांच पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया है. दोषियों में एसएसपी और डीएसपी रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं.

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पंजाब के तरनतारन जिले में साल 1993 में हुआ था फेक एनकाउंटर. (Photo: AI-generated)
पंजाब के तरनतारन जिले में साल 1993 में हुआ था फेक एनकाउंटर. (Photo: AI-generated)

पंजाब के तरनतारन जिले में साल 1993 में हुए एक फेक एनकाउंटर केस में मोहाली स्थित सीबीआई कोर्ट ने पांच पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया है. दोषियों में एसएसपी और डीएसपी रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं. 32 साल पुराने इस मामले में इन पर आपराधिक षड्यंत्र, हत्या और सबूत मिटाने के संगीन आरोप साबित किए गए हैं. कोर्ट 4 अगस्त को इनके लिए सजा का ऐलान करेगी.

सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए लोगों में पूर्व पुलिस उपाधीक्षक भूपिंदरजीत सिंह (सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक), पूर्व सहायक उप-निरीक्षक दविंदर सिंह (सेवानिवृत्त डीएसपी), पूर्व एएसआई गुलबर्ग सिंह, पूर्व निरीक्षक सूबा सिंह और पूर्व एएसआई रघबीर सिंह शामिल हैं. इन सभी को 1993 में सात लोगों की मौत का दोषी पाया गया है. पीड़ितों में तीन पुलिस अधिकारी भी शामिल थे.

इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. केंद्रीय जांच एजेंसी के अनुसार, 27 जून 1993 को तरनतारन जिले के सरहाली थाने के तत्कालीन प्रभारी गुरदेव सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने एक सरकारी ठेकेदार के घर से विशेष पुलिस अधिकारी शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और बलकार सिंह के साथ-साथ दलजीत सिंह को भी गिरफ्तार किया था. इन सभी को एक झूठे डकैती केस में फंसाया गया.

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पुलिस ने ऐसे गढ़ी फर्जी मुठभेड़ की कहानी

इसके बाद 2 जुलाई 1993 को पुलिस ने दावा किया कि शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए हैं. 12 जुलाई 1993 को तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़ी. पुलिस का दावा था कि डकैती केस में वसूली के लिए मंगल सिंह नामक व्यक्ति को घड़का गांव ले जाया जा रहा था.

पीड़ितों को मारने से पहले यातनाएं दी गईं

उसी वक्त आतंकवादियों ने हमला कर दिया. दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए. लेकिन सीबीआई जांच ने इस कहानी की सच्चाई उजागर कर दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने साफ किया कि मृतकों को मारने से पहले यातनाएं दी गईं. उनसे जब्त किए गए हथियारों के फॉरेंसिक जांच में भी गंभीर विसंगतियां सामने आई थीं. 

शवों को लावारिस बता कर दिया अंतिम संस्कार

इतना ही नहीं पीड़ितों की पहचान मौजूद होने के बावजूद उनके शवों को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया गया था. 28 जुलाई 1993 को डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह के नेतृत्व में एक और फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया गया. इसमें सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह की हत्या कर दी गई. सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर 1996 के आदेश के बाद यह केस सीबीआई को सौंपा गया. 

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32 साल बाद पीड़ित परिवारों को मिला इंसाफ

शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने साल 1999 में इस मामले की एफआईआर दर्ज की थी. इसके बाद लंबी जांच-पड़ताल और कई गवाहियों के बाद अब जाकर आरोपियों को दोषी ठहराया गया. इस मामले में आरोपी पांच अन्य पुलिस अधिकारियों की मौत हो चुकी है. इनमें गुरदेव सिंह, ज्ञान चंद, जगीर सिंह, मोहिंदर सिंह और अरूर सिंह का नाम शामिल है.

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