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कोर्ट में हनुमान मंदिर, वकील का जनेऊ संस्कार... एक 'भीष्म प्रतिज्ञा' से ऐसे जिंदा हो उठा मुर्दा दारोगा!

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है. यहां एक दारोगा ने एक केस में कोर्ट में पेश होने से बचने के लिए खुद को मुर्दा बता दिया. उसे जिंदा साबित करने के लिए कोर्ट के वकील ने अपना जनेऊ उतारकर कसम खाई थी. 12 साल बाद वकील ने उस मृतक दारोगा को जिंदा साबित कर दिया है.

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बिहार के मुजफ्फरपुर में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है.
बिहार के मुजफ्फरपुर में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है.

बिहार के मुजफ्फरपुर के कोर्ट परिसर में मौजूद भगवान बजरंगबली का मंदिर. यहां माथे पर त्रिपुंड लगाए भक्तिपूर्वक खड़े शहर के एक नामी वकील पंडित जी की मौजूदगी और मंत्रोच्चारण के बीच जनेऊ धारण करते हुए. वैसे तो यज्ञोपवित और उपनयन संस्कार हिंदुओं की एक प्रचलित धार्मिक परंपरा है, लेकिन यहां कोर्ट परिसर में हुए इस जनेऊ संस्कार के अलग ही मायने हैं. क्योंकि ये जनेऊ वकील साहब पूरे 12 साल के बाद दोबारा उन्हीं रीति रिवाज के साथ धारण कर रहे हैं, जिस तरह कभी बचपन में उनके घरवालों ने उन्हें जनेऊ संस्कार के दौरान इसे धारण करवाया था. लेकिन बड़ा सवाल उनको दोबारा जनेऊ धारण करने की जरूरत क्यों पड़ी?

आखिर जनेऊ धारण करने का उनके अपने पेशे यानी वकालत से क्या लेना-देना है? सबसे अहम ये कि आखिर ये सबकुछ अदालत परिसर के मंदिर में क्यों हो रहा है?

12 साल बाद वकील साहब के दोबारा जनेऊ धारण करने के पीछे एक ऐसी कहानी या यूं कहें कि एक ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा है, जिसे जान कर कोई भी हैरान हो सकता है. प्रतिज्ञा एक सच को सामने लाने की, एक मुर्दा इंसान को जिंदा साबित करने की और एक बेगुनाह को इंसाफ दिलाने की. वैसे तो किसी वकील के लिए इन कामों को करना ना तो कोई नई बात है और ना कोई अजीब बात. लेकिन मुजफ्फरपुर के क्रिमिनल लॉयर डॉ. एसके झा के लिए ये सबकुछ महज एक केस की नहीं, बल्कि मान-सम्मान और प्रतिष्ठा से जुड़ी बात थी. उस वक्त उन्होंने इसी कोर्ट परिसर में अपना जनेऊ उतारते हुए ये कसम खाई थी कि जब तक एक खास मुकदमे से जुड़ा सारा सच वो दुनिया के सामने नहीं लेकर आएंगे, तब तक वो अपना जनेऊ धारण नहीं करेंगे. अब जब वो सच सामने आ चुका है, उन्होंने दोबारा जनेऊ धारण किया है. 

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4 नवंबर 2012, नेवरी गांव, मुजफ्फरपुर

मान-सम्मान, सच-झूठ, और इंसाफ-नाइंसाफी की इस कहानी की शुरुआत होती है आज से ठीक 12 साल पहले 4 नवंबर 2012 को. जब मुजफ्फरपुर के एक स्कूल टीचर अनंतराम पर उन्हीं के गांव की रहनेवाली एक महिला रेप का इल्ज़ाम लगाते हुए मुकदमा दर्ज करवा देती है. शिकायत करने वाली महिला भी उसी गांव की थी. रेप जैसे संगीन जुर्म के मामले में आरोपी करार दिए जाने के साथ ही पुलिस अब अनंतराम के पीछे पड़ जाती है और उन दिनों मुजफ्फरपुर के ही अहियापुर थाने में तैनात दारोगा रामचंद्र सिंह शिक्षक अनंतराम को गिरफ्तार कर लेते हैं. जबकि अनंतराम शुरू से ही खुद को बेकसूर बताते रहे हैं. वो बताते हैं कि ये विवाद दरअसल रेप या किसी महिला के यौन उत्पीड़न का नहीं, बल्कि पैसों का है. जो कभी उन्होंने अपने ही गांव की रहने वाली उस महिला के पति को उधार के तौर पर दिए थे. 

उधार के पैसे मांगने पर दर्ज कराया केस

कुछ दिनों बाद अनंतराम महिला के पति से अपने सवा लाख रुपए वापस मांगने लगे, तो उसने और उसके घरवालों ने ना सिर्फ उनके साथ मारपीट की, बल्कि उनके खिलाफ रेप का केस भी दर्ज करवा दिया. हद तो ये रही कि महिला ने एफआईआर में रेप का वक़्त भी वो लिखवाया, जब मारपीट के मामले में पुलिस ने खुद पहले ही अनंतराम को अस्पताल में भर्ती करवाया था. यानी शिकायत के मुताबिक अनंतराम ने पुलिस की जानकारी में अस्पताल में रहते हुए ही महिला का रेप कर दिया. ज़ाहिर है, मामला झूठा था. अनंतराम की इस कहानी से उनके वकील डॉ. एसके झा भी मुतमईन थे. लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब मामला ट्रायल के स्टेज में पहुंचा और मामले के इनवेस्टिगेशन ऑफिसर दारोगा रामचंद्र सिंह को अदालत में मुल्जिम के खिलाफ सबूत पेश करने और गवाही देने के लिए बुलाया गया.

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दारोगा की बीवी ने कोर्ट को किया गुमराह

उस दिन रामचंद्र सिंह अदालत में पहुंचे ही नहीं, उल्टा उनकी पत्नी की ओर से ये बता दिया गया कि दरोगा साहब की मौत तो 15 दिसंबर 2009 को ही हो चुकी है. यानी केस दर्ज होने के तीन साल पहले. ऐसे में सवाल ये भी है कि यदि साल 2012 में रेप का केस दर्ज होने के तीन साल पहले ही दारोगा रामचंद्र सिंह दुनिया छोड़ कर जा चुके थे, तो फिर तीन साल उन्होंने केस का अनुसंधान कैसे किया और केस के इनवेस्टिगेशन ऑफिसर कैसे बने? जाहिर है, रेप का मामला संदेहास्पद तो था ही, इसकी जांच करने वाले पुलिस ऑफिसर की भूमिका भी संदेह के घेरे में थी. ऐसे में अनंतराम की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे वकील डॉ. एसके झा ने साल 2012 में ही ये क़सम खा ली कि जब तक वो अपनी मौत को लेकर झूठ बोल रहे दारोगा रामचंद्र सिंह का सच दुनिया के सामने लेकर नहीं आएंगे, तब तक वो जनेऊ धारण नहीं करेंगे.

वकील ने जनेऊ उतार की थी भीष्म प्रतिज्ञा

कुछ इसी प्रतिज्ञा के साथ उन्होंने अपना जनेऊ उतार भी दिया था. लेकिन सितम देखिए कि पूरी कहानी के इतने संदेहास्पद होने के बावजूद लोअर कोर्ट ने टीचर अनंतराम को ना सिर्फ रेप के मामले में दोषी करार दिया, बल्कि उन्हें सात साल की सजा भी सुना दी. और तो और उन्हें इस झूठे केस में ही 6 साल और 9 महीने जेल में भी रहना पड़ा. जाहिर है अगर दारोगा रामचंद्र सिंह उन्हीं दिनों अदालत में पेश होकर अपनी बात रखते या फिर उनका क्रॉस एग्जामिनेशन होता, तो शायद सच्चाई उसी वक़्त सामने आ गई होती. लेकिन दारोगा रामचंद्र सिंह ने ऐसा नहीं किया और उनकी लापरवाही या यूं कहें कि जानबूझ कर अदालत से नदारद रहने का नतीजा ये हुआ कि एक इंसान के मान-सम्मान के दांव पर लगने के साथ-साथ उसकी जिंदगी के करीब 7 साल भी सलाखों के पीछे बर्बाद हो गए. 

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दारोगा रामचंद्र की सच्चाई ऐसे आई सामने

दारोगा रामचंद्र सिंह की सच्चाई सामने के सिलसिले में अनंतराम के वकील डॉ. एसके झा ने ना सिर्फ हाई कोर्ट में अपील दायर की, बल्कि खुद ही अपने तौर पर खुद को मुर्दा बता कर केस छोड़ने वाले आरोपी को भी ढूंढ निकाला. हाई कोर्ट ने पूरे मामले पर गौर किया और अनंतराम को झूठे रेप के इल्ज़ाम से आज़ाद करते हुए 23 जुलाई 2018 को बाइज्जत बरी कर दिया. सच जानने के लिए वकील दारोगा रामचंद्र सिंह के गांव पहुंचे और पता लगाया कि वो ना सिर्फ जिंदा हैं, बल्कि पटना में रह रहे हैं. रिटायरमेंट के बाद पुलिस विभाग के मिलने वाला पेंशन भी ले रहे हैं. यहां बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर दारोगा रामचंद्र सिंह ने ऐसा किया क्यों? इसका जवाब तो खुद रामचंद्र सिंह ही दे सकते हैं. लेकिन जानकारों की मानें तो शायद ऐसा करने के पीछे रामचंद्र सिंह का निजी स्वार्थ हो और वो सच्चाई सामने लाने बच रहे हों.

दारोगा रामचंद्र सिंह की मौत का सच क्या है?

फिलहाल, कोर्ट ने टीचर अनंतराम को बरी तो कर दिया है. लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि सलाखों के पीछे गुजारी गई उनके जिंदगी के 7 साल का हिसाब कौन देगा? एक पुलिस अफसर यानी दारोगा रामचंद्र सिंह की इस घनघोर लापरवाही या यूं कहें कि झूठा मृत्यु प्रमाण पत्र अदालत में सौंपने के मामले में फिलहाल वकील डॉ. एसके झा ने मानवाधिकार आयोग से फरियाद की है, ताकि सच्चाई सामने आ सके. उधर, बिहार पुलिस ने अपने तौर पर मामले की छानबीन शुरू कर दी है, ताकि ये साफ हो सके कि आखिर दारोगा रामचंद्र सिंह की मौत का सच क्या है? क्या उन्होंने वाकई अपनी पत्नी के हाथों अपनी मौत का सर्टिफिकेट अदालत में जमा करवाया था या फिर इस मामले में कोई और लापरवाही हुई? इस मामले की तहकीकात पुलिस द्वारा जारी है. देखते हैं कि दारोगा के सच का पर्दाफाश कब होता है.

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