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हमेशा फिलिस्तीन समर्थक रहे भारत की इजरायल से कैसे हुई थी दोस्ती? हमास कैसे बना खतरे का दूसरा नाम

भारत इजरायल का भी दोस्त है और फिलिस्तीन का भी. मौजूदा जंग के दौरान भी भारत इजरायल के साथ-साथ फिलिस्तीन के साथ भी है. अलबत्ता हमास के खिलाफ है. क्योंकि हमास को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया जा चुका है.

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भारत और फिलिस्तीन के रिश्ते बहुत पुराने हैं
भारत और फिलिस्तीन के रिश्ते बहुत पुराने हैं

इजरायल और हमास के बीच जारी जंग ने इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है. भारत भी हमास के हमले के बाद इजरायल के साथ खड़ा है. लेकिन इसी बीच अचानक एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है. इस मौके पर उस पुराने वीडियो के सामने आने के बाद लोग उलझन में हैं कि भारत किसके साथ है और किसके खिलाफ? ये उलझन इसलिए बढी क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुले तौर पर फिलिस्तिनियों का समर्थन कर रहे हैं. जबकि मौजूदा सरकार ने हमास के हमले के बाद इजरायल के साथ खड़े होने की बात की है. 

भारत फिलिस्तानी का दोस्त मगर हमास के खिलाफ
तो चलिए इस उलझन को सुलझाते हैं. दरअसल, भारत इजरायल का भी दोस्त है और फिलिस्तीन का भी. मौजूदा जंग के दौरान भी भारत इजरायल के साथ-साथ फिलिस्तीन के साथ भी है. अलबत्ता हमास के खिलाफ है. क्योंकि हमास को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया जा चुका है. गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी फिलिस्तीन को लेकर अपने स्टैंड को साफ कर दिया था.

भारत का फिलिस्तीन से पुराना रिश्ता
दरअसल, इजरायल से दोस्ती भारत की जरूरत है. जबकि फिलिस्तीन से रिश्ते भारत की विदेश नीति का बेहद पुराना हिस्सा. दिल्ली में चाहे सरकार कांग्रेस की रही हो या फिर बीजेपी की. इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर भारतीय विदेश नीति में कभी कोई बदलाव नहीं आया.

भारत ने किया था फिलिस्तीन के बंटवारे का विरोध 
अंगेजों की गुलामी से भारत को 1947 में आजादी मिली, जबकि इसके एक साल बाद 1948 में अंग्रेजों ने फिलिस्तीन के दो टुकड़े कर एक टुकड़े पर इजरायल बसा दिया. इस टुकड़े की भनक 47 में ही भारत को लग चुकी थी. 47 में ही संयुक्त राष्ट महासभा में फिलिस्तीन के दो टुकड़े किए जाने का मुद्दा उठा था और बाकायदा इस पर मतदान हुआ था. तब भारत ने यूएन में फिलिस्तीन के ना सिर्फ बंटवारे का विरोध किया था, बल्कि इसके खिलाफ मतदान किया था. इतना ही नहीं भारत पहला गैर अरब देश था, जिसने 1974 में यासिर अराफात की अगुवाई वाले फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेशनजेशन यानी पीएलओ को मान्यता दी थी. यासिर अराफात फिलिस्तीनी आंदोलन के सबसे बड़ा चेहरा हुआ करते थे. भारत से उनकी बेहद पुरानी दोस्ती रही. इंदिरा गांधी को वो अपनी बहन माना करते थे. जबकि अटल बिहारी वाजपेयी तक से उनके बेहद गहरे संबंध थे.

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फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात के साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी

फिलिस्तीन का समर्थक रहा है भारत
यही वजह है कि 1988 में इजरायल अमेरिका के विरोध के बावजूद फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले कुछ देशों में से भारत भी एक था. भारत आज भी यूएन में फिलिस्तीन का हर मोड पर समर्थन करता रहा है. सितंबर 2015 में भारत भी उन देशों में से एक था, जिसने यूएन परिसर में बाकी देशों की तरह फिलिस्तीन के झंडे को भी लगाने का समर्थन किया था. फिलिस्तीन के मौजूदा राष्टपति महमूद अब्बास कई बार भारत का दौरा कर चुके हैं. इतना ही नहीं तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अक्टूबर 2015 में फिलिस्तीन का दौरा किया था. गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, विदेश मंत्री जसवंत और सुषमा स्वराज भी फिलिस्तीन का दौरा कर चुकी हैं. 

भारत के फंड से वेस्ट बैंक में बने दो स्कूल 
10 फरवरी 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन का दौरा किया था. मोदी पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने फिलिस्तीन का दौरा किया. फिलिस्तीन के दौरे के बाद ही मोदी इजरायल भी गए थे. भारत के फंड से ही वेस्ट बैंक में 2015 में दो स्कूल भी बनाए गए थे. तो ये तो रही भारत और फिलिस्तीन के रिश्ते की बात. वो रिश्ता जो आज भी उसी तरह है. 

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1992 में इजरायल से हुई थी भारत की दोस्ती
अब आइए समझते हैं कि भारत और इजरायल की दोस्ती कब और कैसे हुई? क्योंकि भारत कभी उन देशों में से एक था, जिसने फिलिस्तीन के बंटवारे का बाकयदा यूएन में विरोध किया था. ऐसी हालत में इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को लेकर सरकार के सामने कई मुश्किलें थीं. सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि इजरायल से दोस्ती का मतलब अरब देशों से दुश्मनी थी. ऊपर से इससे भारतीय मुसलमानों के नाराज होने का भी जोखिम था. लेकिन बदलते वक्त के साथ भारत ने भी जरूरत के हिसाब से अपना स्टैंड बदला. वो कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार थी, जिसने 1992 में इजरायल के साथ पूरी तरह से राजनायिक संबंध कायम किए. इसी के बाद इजरायल और भारत में दोनों देशों के दूतावास खुले. इजरायल से दोस्ती के बाद अमेरिका भी भारत को लेकर नर्म पड़ गया था. फिर अमेरिका से भी रिश्ते होने शुरू हुए. इजरायल भारत को सैन्य उपकरणों की सप्लाई करने लगा. 

..इसलिए हमास के खिलाफ है भारत
इन तथ्यों के हिसाब से सत्ता में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनों ही सरकारों में इजरायल और फिलिस्तीन के साथ संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं. जो इस वक्त भी है. यानी भारत आज भी इजरायल के साथ खड़ा है. और आज भी फिलिस्तीन के साथ उसकी दोस्ती उतनी ही मजबूत है. लेकिन उसी फिलिस्तीन की गाजा पट्टी पर मौजूद हमास के भारत खिलाफ है. इसकी दो वजह है. एक भले ही हमास 2006 में फिलिस्तीनी ऑथोरिटी यानी पीए का चुनाव जीत कर वहां सरकार में हो, लेकिन 2006 के बाद से गाजा में पीए का दोबारा चुनाव कभी नहीं हुआ. और चूंकि हमास को अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है, इसीलिए वैसे भी उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी जा सकती. यही वजह है कि फिलिस्तीन के साथ होते हुए भी भारत ने इजरायल पर हमास के हमले को गलत ठहराया है. 

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फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी

दुनिया की सबसे गरीब जगहों में से एक है गाजा
इजरायल की कुल आबादी 97 लाख है. जबकि फिलिस्तीन की 54 लाख. ये 54 लाख आबादी भी फिलिस्तीन के बचे-खुचे दो हिस्सों यानी वेस्ट बैंक और गाजा की है. वेस्ट बैंक में 30 लाख की आबादी है. जबकि गाजा की 23 लाख. 40 किलोमीटर लंबे और छह किलोमीटर चौड़ा गाजा दुनिया का तीसरा सबसे कम जगह पर सबसे घनी आबादी वाला इलाका है. खेती के अलावा गाजा का सबसे बड़ा कारोबार साबुन, तेल और कपड़ों का है. गाजा की 70 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ये दुनिया के सबसे गरीब जगहों में से एक है. यहां कायदे से बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं है. ये पूरा इलाका ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय मदद के भरोसे ही जिंदा है. 

गाजा में बेरोजगारी की दर 60 फीसदी
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक गाजा में बेरोजगारी की दर 60 फीसदी तक है. जबकि इजरायल में बेरोजगारी की दर सिर्फ 4 फीसदी. संयुक्त राष्ट्र के रिलीफ एंड वर्क एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां हर 5 में से 3 लोगों को खाना तक मयस्सर नहीं होता. जिसकी वजह से वो एक सेहतमंद जिंदगी भी नहीं जी पाते. गाजा में बुनियादी ढांचे खास कर हेल्थ सर्विसेस की सख्त कमी है. यहां बीमारों के लिए ढंग की चिकित्सा सुविधा तक नहीं है. गंभीर बीमारियों का यहां इलाज तक नहीं हो पाता. जिनके पास पैसे होते हैं, वो दूसरे देशों में जाकर इलाज करा लेते हैं और गरीब लोग यूं ही मर जाते हैं.

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हमास ने फिलिस्तीन को मुसीबत में डाला
हालांकि फिलिस्तीन खास कर गाजा के लोगों को दुनिया भर से मदद मिलती है. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अलावा अरब देश भी इनकी मदद करते हैं. लेकिन हमास की वजह से यहां चीजें और हालात दोनों बिगड़ गई. 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास ने हमला कर एक बार फिर से गाजा के लोगों को मुसीबत में डाल दिया है. बहुत सारे बेकसूर गाजा के शहरी इजरायली हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं. ये कहर अब भी जारी है. यहां तक कि गाजा के लोगों के लिए बिजली पानी तक की लाइनें काट दी गई हैं. खाने के जरूरी सामान से लेकर चिकित्सा तक की सख्त कमी है. और नामालूम इस हाल में गाजा के लोग कब तक जिएं.

पैसा कमाने में सबसे आगे हैं यहूदी
इजरायल और हमास के बीच आमने-सामने की जंग के दौरान तमाम मुस्लिम देश इजरायल और यहूदियों के खिलाफ गोलबंद होने लगे हों, लेकिन यहूदियों का देश इजरायल फिलहाल रुकने वाला नहीं लगता. तारीख गवाह है कि चारों तरफ  से मुस्लिम देशों से घिरे जाने के बावजूद जब-जब अपने पड़ोसी देशों के साथ इजरायल का आमना-सामना हुआ है, जीत इजरायल की ही हुई है. लेकिन बाद सिर्फ जंग की नहीं है, दुनिया में पैसे कमाने के मामले में भी यहूदी काफी आगे हैं.

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हमास के लड़ाके

17 फीसदी डॉलर पर यहूदियों का कब्जा
दुनिया में यहूदियों की तादाद बेशक काफी कम है. लेकिन एक बेहद खास और जानने वाली बात ये है कि यहूदी दुनिया के बेहद अमीर लोगों में शामिल हैं. यहां तक कि 17 फीसदी डॉलर पर यहूदियों का ही कब्जा है. दुनिया में जितने अरबपति लोग हैं, उनमें यहूदियों की तादाद अच्छी खासी है. हमास से जंग के बीच फोर्ब्स ने दुनिया के अमीर लोगों की जो नई लिस्ट जारी की है, उसमें भी यहूदियों के आंकडे हैरान करते हैं.

इजरायल में रहते हैं 70 लाख यहूदी
साल 1948 में ही यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने का फैसला हुआ था, जिसका सबसे ज्यादा समर्थन अमेरिका ने किया था. मौजूदा समय में 1948 के मुकाबले दुनिया भर में यहूदियों की जनसंख्या में गिरावट आई है. लेकिन यहूदी अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी हैं. दुनियाभर में करीब 1 करोड 75 लाख यहूदी हैं. इनमें इजरायल में 70 लाख यहूदी रहते हैं. जो इजरायल की कुल आबादी का 74 फीसदी है. जबकि दुनिया की 43 फीसदी यहूदी आबादी इजरायल में रहती है. इजरायल के अलावा अमेरिका और कनाडा में सबसे ज्यादा यहूदी रहते हैं. इसके अलावा फ्रांस, ब्रिटेन, अर्जेंटीना, रूस, ऑस्टेलिया, जर्मनी और ब्राजील भी यहूदी रहते हैं. इसी तरह भारत में करीब 8 हजार यहूदी रहते हैं.

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अरबपतियों की लिस्ट में 267 यहूदी 
इस बीच फोर्ब्स ने यहूदी अरबपतियों की एक लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में 267 यहूदी अरबपतियों के नाम हैं. जिनकी कुल नेटवर्थ 1.7 ट्रिलियन डॉलर हैं. जो भारत की कुल जीडीपी का 60 फीसदी बैठता है. दुनिया भर के अरबपतियों की लिस्ट में चौथा सबसे अमीर आदमी यहूदी है. जिनका नाम लैरी एलिसन है. लैरी की कुल संपत्ति 107 बिलियन डॉलर आंकी गई है. इनका बिजनेस टेक्नोलॉजी सेक्टर में है. इसी तरह फेसबुक के सर्वेसर्वा मार्क जुकरबर्ग भी चंद साल पहले तक दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे. उनकी संपत्ति में फिलहाल थोड़ी गिरावट जरूर आई है, लेकिन फोर्ब्स की लिस्ट में वो 64.4 बिलियन डॉलर संपति के साथ 16वें पायदान पर हैं. ये लिस्ट बताती है कि दुनिया के 11 से 17 फीसदी डॉलर यहूदियों का कब्जा है.

दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल हैं कई यहूदी
फोर्ब्स की लिस्ट बताती है कि सबसे अमीर यहूदी लैरी एलिसन हैं, दूसरे नंबर पर लैरी पेज हैं, जिनकी संपत्ति 85.2 बिलियन डॉलर है, तीसरे नंबर पर सर्गेई ब्रिन हैं, जो 81.8 बिलियन डॉलर के मालिक हैं, जबकि चौथे सबसे अमीर यहूदी स्टीव बालमेर हैं, जिनके पास 78.9 बिलियन डॉलर का नेटवर्थ है. इसी तरह पांचवें पायदान पर 76.8 बिलियन डॉलर के साथ माइकल ब्लूमबर्ग हैं. स्टारबक्स के मालिक भी यहूदी ही हैं. डेल टोक्नोलॉजी, व्हाट्सएप और ऐसे ही कई बड़ी कंपनियों का मालिकाना यहूदियों के पास है. फोर्ब्स की लिस्ट ये तो साफ है, कारोबार की दुनिया में यहूदी काफी आगे हैं. एक तरह से अमेरिका की इकोनॉमी की डोर यहूदियों के हाथ में हैं. क्योंकि सबसे ज्यादा यहूदी अरबपति अमेरिका में रहते हैं, और मीडिया, टेक्नोलॉजी, रियल एस्टेट, बैंकिंग और रिटेल सेक्टर के किंग हैं. यही कारण है कि अमेरिका मजबूती के साथ यहूदियों के पीछे खड़ा है.

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