Iran-Israel Tension & Hidden Interests of America: ईरान और इजरायल के बीच जंग के आसार देखते हुए इस बार भी अमेरिका ने खाड़ी में अपने जंगी बेड़ों को तैनात कर दिया है. पर सवाल ये है कि क्या महज़ इजरायल से दोस्ती निभाने के लिए इजरायल ये सब कर रहा है? या फिर इसके पीछे भी उसका कोई अपना मतलब छुपा है. ये सवाल इसलिए भी है कि अमेरिका की रणनीति को समझना और जानना हर किसी के बस की बात नहीं है.
इज़रायल के साथ खड़ा है अमेरिका
हमास के मुखिया इस्माइल हानिया की मौत के बाद बेशक ईरान और इजरायल एक बार फिर आमने-सामने आ गए हों, लेकिन मिडिल ईस्ट में गहराते जंग के बादल के पीछे कई और मायने हैं. और इनमें दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्कों में से एक अमेरिका का अपना इंटरेस्ट यानी उसके अपने हित सबसे ऊपर हैं. असल में अमेरिका ईरान में सत्ता परिवर्तन चाहता है. लेकिन वो इसके लिए सीधे-सीधे ना तो ईरान के अंदरुनी मामलों में दखल दे सकता है और ना ही उस पर हमला कर सकता है, ऐसे में वो ईरान के दुश्मन नंबर एक इज़रायल के साथ खड़ा है और हर हाल में उसका साथ देने का दावा भी करता रहा है. इस बार भी हमास और ईरान के साथ इज़रायल की जो तनातनी और सैन्य कार्रवाई चल रही है, उसमें अमेरिका लगातार इजरायल की मदद कर रहा है.
अमेरिका के व्यापारिक हित
अब सवाल उठता है कि आखिर ईरान पर अमेरिका की नजर क्यों हैं? और क्यों वो ईरान में सत्ता परिवर्तन करना चाहता है? तो जवाब है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन के पीछे अमेरिका के व्यापारिक हित छुपे हैं और वो जानता है कि अयातुल्ला अली खामेनेई को ईरान के सुप्रीम लीडर की कुर्सी से हटाए बिना उसका ना तो इराक और अफगानिस्तान में दबदबा कायम हो सकता है. और ना ही व्यापारिक हित पूरे हो सकते हैं. यही वजह है कि अमेरिका ने ईरान के ऊपर बड़े पैमाने पर पाबंदी लगा रखी है और ईरान के साथ उसका हर तरह का व्यापार बंद है. यहां तक कि ईरान के साथ व्यापारिक रिश्ते रखने वाले मुल्कों के साथ भी अमेरिका दूरी बनाता रहा है और उन पर भी अपना प्रतिबंध लगाता रहा है.
ये है अमेरिका का असली मकसद
ईरान के पास तेल और गैस का बड़ा भंडार है. बल्कि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार ईरान के ही पास है, जबकि गैस के मामले में तो वो दूसरे नंबर पर है. इसके अलावा ईरान में बेशकीमती खनिज भी भरे पड़े हैं. मिडिल ईस्ट में ईरान जिस जगह पर लोकेटेड है वो भी उसे भौगोलिक तौर पर काफी अहम बनाता है. ईरान के साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, इराक, तुर्किए, आर्मेनिया और रूस की सीमाएं लगती हैं. ऐसे में ईरान में दबदबे से वो ना सिर्फ व्यापारिक तौर पर फायदा उठा सकता है, बल्कि एक साथ कई देशों के करीब पहुंच कर सामरिक तौर पर भी खुद को मिडिल ईस्ट में और मजबूत कर सकता है. और सच्चाई तो ये है कि मिडिल ईस्ट में सामरिक यानी फौजी तौर पर खुद को मजबूत करने का मतलब भी व्यापारिक तौर पर खुद को और मजबूत करना है.
ईरान में नई सत्ता चाहता है अमेरिका
ऊपर से ईरान ने जिस तरह से मिडिल ईस्ट में अमेरिका और उसकी समर्थक ताकतों के खिलाफ गोलबंदी की है, वो भी अमेरिका को मुंह चिढ़ा रही है. आस-पास के कई देश और वहां के उग्रवादी संगठन ईरान के साथ हैं. मसलन यमन में हूती, लेबनान में हिज्बुल्ला, फिलिस्तीन में हमास और इराक के कई मिलिशियाओं का ईरान को साथ है. और ये बेशक किसी देश के मुकाबले छोटे-छोटे संगठन हैं, लेकिन ये जिस तरह से मिडिल ईस्ट के एक बड़े इलाक़े में बिखरे हुए हैं और जिस तरह से ये लगातार अमेरिका, इजरायल और यूरोपीय मुल्कों का विरोध करते रहे हैं, वो भी अमेरिका को सालता है. ऐसे में ईरान में नई सत्ता स्थापित करना अमेरिका का बड़ा मकसद है.
अमेरिका और ईरान की दुश्मनी का फसाना
ईरान और अमेरिका के बीच पिछले चार दशकों से दुश्मनी का रिश्ता रहा है. जानकार बताते हैं कि 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए प्रधानमंत्री को हटाने के लिए और ईरान के पूर्व शक्तिशाली शासक के बेटे शाह को मजबूत करने की कोशिश की. इसके बाद 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई, जिसने शाह को उखाड़ फेंका और उन्हें देश छोड़ कर भागना पड़ा. अमेरिका ने शाह को कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन इससे ईरान में उनके विरोधियों का गुस्सा भड़क गया. और राजधानी तेहरान में अमेरिकी दूतावास में मौजूद अमेरिकियों को बंदी बना लिया गया. फिर 1980 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने उन्हें बचाने के लिए एक ऑपरेशन का आदेश दिया, जो फेल हो गया. बाद में अमेरिका ने ईरान को कमजोर करने के लिए इराक का साथ देना शुरू कर दिया. जंग के दौरान उसे इंटेलिजेंस इनपुट मुहैया करवाए और इस तरह अमेरिका और ईरान की दुश्मनी लगातार गहरी होती चली गई.
ईरान और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी
अब जिस तरह से ईरान और इजरायल के बीच चल रहे तनातनी के दौरान अमेरिका ने पूरी मुस्तैदी से मिडिल ईस्ट में अपने जंगी जहाज़ों और युद्धपोतों की तैनाती शुरू कर दी है, उससे भी इस बात की झलक मिलती है कि ईरान और अमेरिका के रिश्तों में किस कदर तल्खी है.
अमेरिका ने शुरू की ज़बरदस्त तैयारी
इज़रायल पर ईरान के हमले की आशंका को देखते हुए अमेरिका ने ज़बरदस्त तैयारी शुरू कर दी है. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने एहतियात के तौर पर इस इलाके में एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप यानी विमान वाहक पोत तैनात कर दिया है. और इसके साथ ही फाइटर जेट स्क्वाड्रन, क्रूजर और डेस्ट्रॉयर को भी मोर्चे पर लगाया गया है. यूएसएस अब्राहम लिंकन एयरक्राफ्ट कैरियर ग्रुप को मिडिल ईस्ट के लिए भेजा गया है और इसके मिडिल ईस्ट में पहले से मौजूद यूएसएस थियोडोर रूज़वेल्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप को वापस बुलाया गया है. और ये तैनाती इस बात का सबूत है कि ईरान और इज़रायल के बीच जंग का खतरा किस कदर बढ़ता जा रहा है.
बड़े स्तर पर फौजी लामबंदी
7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर हुए हमले और गाज़ा पर चल रही इजरायल की जवाबी कार्रवाई के बाद ये पहला मौका है, जब इतने बड़े स्तर पर इलाके में फौजी लामबंदी चल रही है. पेंटागन ने शुरू में इस इलाके में हमास, हूती और हिज्बुल्लाह सरीखे संगठनों को जवाब देने और उन्हें काबू में रखने के लिए दो कैरियर स्ट्राइक ग्रुप तैनात किए थे, लेकिन अब इसके अलावा भी तैनाती चल रही है.
हर हाल में इजरायल की मदद का दावा
इसके अलावा अमेरिका ने मिडिल ईस्ट और भूमध्य सागर में बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस डिस्ट्रॉयर और क्रूजर भेजे हैं. दो अमेरिकी डिस्ट्रॉयर इसी साल अप्रैल में इजरायल के खिलाफ ईरानी मिसाइल हमले को रोकने में शामिल रहे थे. पेंटागन ने ये भी साफ किया है कि मिसाइल डिफेंस फोर्स को भी अलर्ट पर रखा गया है. और ये फैसला इस बात का सबूत है कि अमेरिका हर हाल में इजरायल की मदद के लिए तैयार है. अमेरिका का कहना है कि वो मिडिल ईस्ट में जंग को बढ़ावा नहीं देना चाहता, लेकिन लेकिन इजरायल की मदद करने के मामले में वो कमी भी नहीं करना चाहता.