scorecardresearch
 

'ये सही नहीं है... और गुस्सा हो गए रतन टाटा', 20 साल पहले लिया था ये बड़ा फैसला, किताब में खुलासा

Ratan Tata Story: रतन टाटा का कहना था कि शेयर  बाजार का मतलब सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि छोटे निवेशकों को जोड़ने का एक मौका भी था. बता दें, मौजूदा दौर में TCS टाटा ग्रुप की सबसे बड़ी कंपनी है.

Advertisement
X
TCS IPO को लेकर रतन टाटा ने लिया था बड़ा फैसला. (Photo; ITG
TCS IPO को लेकर रतन टाटा ने लिया था बड़ा फैसला. (Photo; ITG

रतन टाटा (Ratan Tata) आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन देश उन्हें कभी भूला नहीं सकता. वे देश के लिए ऐसे-ऐसे काम कर गए हैं, जिनके ल‍िए उन्हें कारोबारी के बजाय एक महान शख्स‍ियत के तौर पर याद क‍िया जाता है. एक ऐसा ही वाकया TCS के आईपीओ को लेकर है. जिसकी कहानी सुनकर आप भी कहेंगे क‍ि उनके दिल में हमेशा देश और देश के लोग ही बसते थे. 

दरअसल, टाटा ग्रुप से जुड़े और लेखक हरीश भट्ट की नई किताब 'डूइंग द राइट थिंग: लर्निंग्स फ्रॉम रतन टाटा' में रतन टाटा के एक बड़े फैसले का जिक्र है. टाटा ग्रुप के लिए TCS की लिस्टिंग एक चुनौतीपूर्ण काम था, खासकर रतन टाटा के लिए. उन्होंने 1991 में टाटा समूह की कमान संभाली, जिसके बाद उनके कई फैसलों में कानून के साथ-साथ सिद्धांतवाद‍िता की भी झलक देखने को मिली. रतन टाटा किसी फैसले को लेकर सिर्फ कानूनी तौर पर ही सही नहीं होना चाहते थे, बल्कि वे नैतिकता की कसौटी पर भी उसे पूरी तरह परखते थे.

रतन टाटा की एक और कहानी

रतन टाटा ऐसे कारोबारी कदम उठाते जिससे किसी को 'नुकसान' न हो, या फिर उनके फैसलों से किसी के साथ अनुचित व्यवहार न हो. इस किताब में TCS के IPO के वक्त रतन टाटा के दरियादिली की एक और नजीर का ज‍िक्र है. किताब में लिखा है कि Ratan Tata के लिए ये सिर्फ IPO नहीं था, बल्कि इंसाफ का मसला था. 

Advertisement

उन्होंने जब 2004 में Tata Consultancy Services (TCS) को पब्लिक लिस्ट कराने का फैसला किया, तो बड़ा सवाल ये था कि इस आईपीओ में आम निवेशकों (रिटेल इन्वेस्टर्स) को पर्याप्त हिस्सा मिले, न कि सिर्फ बड़े संस्थागत निवेशकों (QIB या HNIs) का IPO में पलड़ा भारी हो जाए. उन्होंने मर्चेंट बैंकर्स से टीसीएस के आईपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी अधिक होने की मांग की थी. 

रतन टाटा का कहना था कि शेयर बाजार का मतलब सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि छोटे निवेशकों को जोड़ना एक मौका भी था. बता दें, मौजूदा दौर में TCS टाटा ग्रुप की सबसे बड़ी कंपनी है. ज‍िसकी शुरुआत 1968 में टाटा संस के एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट के रूप में हुई थी. लेकिन 1990 तक आते-आते ग्रुप की सबसे सफल कंपनियों में से एक बन चुकी थी. तब ये विचार आया कि इसे लिस्ट किया जाए, ताकि कंपनी को आधुनिक बनाए जाने वाले अन्य टाटा प्रोजेक्ट्स के लिए फंड मिल सके, और साथ ही कर्मचारियों को शेयर ऑप्शन्स मिले. इसका उस समय कुछ विरोध भी हुआ, लेकिन रतन टाटा ने हिम्मत नहीं हारी.

TCS आईपीओ को लेकर रतन टाटा ने लिया था बड़ा फैसला

रतन टाटा की अगुवाई में फैसला हुआ कि TCS की 14% इक्विटी सार्वजनिक (Public) को दी जाएगी. 29 जुलाई 2004 को IPO खुला, लेकिन मुश्किल तब आई जब शेयर बांटने की बारी आई. रिटेल इन्वेस्टर्स की मांग जब ज़ोरों पर थी, तब नियमों के अनुसार Institutional + HNI निवेशकों को लगभग 65% हिस्सा देना था. यानी रिटेल निवेशकों के लिए हिस्सेदारी लगभग 40% से भी कम थी. ये आईपीओ भी ओवर सब्सक्राइब हुआ था. 

Advertisement

जब रतन टाटा को ये बात बताई गई तो वे बहुत नाराज हुए. हरीश भट्ट अपनी किताब में लिखते हैं कि उन्हें छोटे निवेशकों के लिए इतना कम हिस्सा देना गलत लगा. उन्होंने कहा कि ये रिटेल इन्वेस्टर्स के साथ नाइंसाफी है. हालांकि उन्हें समझाया गया कि फिलहाल नियम यही है, इसमें बहुत कुछ बदलाव नहीं हो सकता. 

रतन टाटा ने कहा- आम निवेशक का रखें ध्यान

इसके बाद IPO के प्राइस बैंड में भी रतन टाटा ने हस्तक्षेप किया. उन्होंने कहा कि मुनाफा कमाना हमारा पहला मकसद नहीं है. बैंकर्स ने सुझाव देते हुए कहा था कि अपर प्राइस बैंड 900 रुपये रखें, बैंकर ने कहा कि इससे Tata Sons को ज्यादा पैसा मिलेगा. लेकिन रतन टाटा ने साफ कहा, ये सही नहीं है, इसमें निवेशकों के हितों को भी देखना चाहिए. उसके बाद IPO का अपर प्राइस बैंड घटाकर 850 रुपये कर दिया गया. ताकि छोटे निवेशकों को फायदा हो सके. 

यह फैसला सिर्फ शेयर-बाजार का नहीं था, बल्क‍ि रटन टाटा के दरियादिली का सबूत था, जिसमें शेयर होल्डिंग सिर्फ अमीरों और संस्थानों के लिए नहीं, आम जनता के लिए भी होनी चाहिए. क्योंकि आज के दौर में कई बड़े IPO के दौरान निवेशकों को गुमराह किया जाता है, आंकड़ें छुपाए जाते हैं. इसके पीछे एक ही मकसद होता है पैसा कमाना. लेखक हरीश भट्ट कहते हैं कि रतन टाटा की सोच थी कि 'हमें सिर्फ दिखने के लिए सही नहीं होना चाहिए, हमें सच में सही होना चाहिए.'

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement