भारतीय करेंसी रुपया (Indian Currency Fall) में गिरावट का सिलसिला जारी है और ये रुकती हुई नजर नहीं आ रही है. हर रोज गिरने का नया रिकॉर्ड बनाते हुए बुधवार Indian Rupee अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 के नीचे आ गया. जो इसका रिकॉर्ड लो-लेवल है. रिपोर्ट की मानें, तो बैंकों के इंपोर्टर्स की तरफ से लगातार डॉलर खरीदने की वजह से रुपया 90 प्रति डॉलर के निशान से नीचे गिरकर 90.14 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. बता दें किसी भी देश की करेंसी का तेजी से टूटना उसकी इकोनॉमी (Economy) के लिए भी अच्छा नहीं माना जाता. आइए जानते हैं इसके क्या-क्या बड़े नुकसान हैं?
खुलते ही धड़ाम हो गया रुपया
सबसे पहले बात करते हैं रुपये के ताजा हाल के बारे में, तो बता दें कि बुधवार को Indian Rupee डॉलर के मुकाबले 89.97 के स्तर पर खुला और फिर अचानक कुछ ही देर में ये फिसलकर 90 प्रति डॉलर के नीचे आ गया. ये खबर लिखे जाने तक 28 पैसे फिसलकर 90.14 के अपने सबसे निचले स्तर पर ट्रेड कर रहा था. डीलरों के मुताबिक, भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील (India-US Trade Deal) में देरी भारतीय करेंसी में तेज गिरावट का मुख्य कारण बन रही हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, एक प्राइवेट सेक्टर बैंक के डीलर ने कहा कि भले ही हर कोई रुपये के 90 (प्रति डॉलर) की बात कर रहा था, लेकिन लोगों को उम्मीद नहीं थी कि यह इतनी आसानी से हो जाएगा. उन्होंने कहा कि कोई नहीं बता सकता कि हम यहां से कहां तक जाएंगे. कुछ डीलरों का कहना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने Indian Currency में नुकसान को कम करने के लिए शायद डॉलर बेचे होंगे. इनका मानना है कि रुपया के लिए फिलहाल टेक्निकल सपोर्ट 90.20 प्रति डॉलर है.
2025 इंडियन करेंसी के लिए खराब
भारतीय रुपया के लिए 2025 बेहद खराब साबित होता नजर आया है. अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले अब तक इंडियन करेंसी करीब 5 फीसदी के आसपास फिसल चुकी है. पहले से ही रिपोर्ट्स में बीते कुछ दिनों से जारी गिरावट के आधार पर इसके 90 के नीचे लुढ़कने का अनुमान जाहिर किया जा रहा था और बुधवार को खुलने के साथ ही रुपया इससे भी नीचे अपने नए लो-लेवल पर (Rupee All Time Low) पर आ गया. भारत-US ट्रेड डील में देरी के अलावा घरेलू और विदेशी बाजारों में बड़ी बिकवाली का दबाव भी इसमें गिरावट की बड़ी वजह नजर आया है.
इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं ये गिरावट
गौरतलब है कि जब किसी देश की करेंसी तेजी से टूटती है, तो इसे उस देश की इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं माना जाता है. ऐसे में रुपया में गिरावट पर ब्रेक लगाने के लिए तत्काल कदम उठाना बेहद जरूरी है. इसके तमाम तरह के नुकसान देखने को मिलते हैं, जिनमें महंगाई बढ़ने का जोखिम सबसे आगे है.
इसे सीधे शब्दों में समझें, तो डॉलर के मुकाबले रुपये के लगातार कमजोर होने का असर पेट्रोलियम पदार्थों पर दिखाई देता है. दरअसल, भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल (Crude Oil) आयात करता है. रिपोर्ट्स की मानें, तो देश में अपनी जरूरत का 80% तेज इंपोर्ट किया जाता है. वहीं जब रुपये में गिरावट आती है, तो इस तेल को खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ते हैं और इससे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का खतरा रहता है. अगर इनकी कीमतें बढ़ती हैं, तो फिर देश में ट्रांसपोर्टेशन, लॉजिस्टिक्स कॉस्ट में इजाफा देखने को मिलता है और आयतित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं.