डोनाल्ड ट्रंप के राजनीतिक और आर्थिक खेल में अब भारत, चीन और रूस तीनों को शामिल होना ही पड़ा है. राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस से भारत और चीन की तेल खरीद को ठोस चुनौती के रूप में सामने रखा है. और वह हर उपाय को आजमाकर भी इसे अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं. यूक्रेन जंग और 'अमेरिका फर्स्ट' की ट्रंप की पॉलिसी ने ग्लोबल एनर्जी मार्केट में खलबली मचा दी है.
23 अक्टूबर को ट्रंप प्रशासन ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों, रोसनेफ्ट और लुकोइल पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए. ट्रंप का दावा है कि वे इन प्रतिबंधों के जरिये रूस की यूक्रेन वॉर की फंडिंग को रोक रहे हैं.
लेकिन इसका असर सबसे ज्यादा भारत और चीन पर पड़ने जा रहा है, जो रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं. रूस से मिले सस्ते कच्चे तेल की बदौलत दोनों ही तेल बाजार में होने वाली कीमतों की हलचल से संरक्षित थे और लंबे समय तक इसका फायदा उपभोक्ताओं को मिला. 2022 के बाद से अब भारत के खुदरा बाजार में तेल की कीमतें स्थिर बनी हैं. इसकी वजह रूस से 30 से 40 फीसदी तक होने वाला कच्चे तेल का आयात है.
अब ट्रंप का दावा है कि भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात घटा दिया है. सूत्रों ने बताया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड भी मास्को से जुड़ी कंपनियों पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद रूसी कच्चे तेल के आयात को कम करने की योजना बना रही है.
ट्रंप के फैसले का भारत पर क्या असर होगा?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ओपन ज्वाइंट स्टॉक कंपनी रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी (रोसनेफ्ट) और लुकोइल ओएओ (लुकोइल) पर प्रतिबंध लगाए जाने का मतलब है कि कोई भी संस्था चाहे वह अमेरिकी हो या विदेशी, प्रतिबंधित रूसी कंपनियों के साथ कोई भी व्यावसायिक लेन-देन नहीं कर सकती है. उल्लंघन करने वालों को सिविल या आपराधिक दंड का सामना करना पड़ेगा.
पीटीआई के अनुसार इस मामले की जानकारी रखने वाले तीन सूत्रों ने बताया कि रिलायंस ने रोसनेफ्ट के साथ प्रतिदिन 500,000 बैरल (प्रति वर्ष 25 मिलियन टन) कच्चा तेल खरीदने के लिए 25 साल का समझौता किया है, अब रूस से सभी खरीद कम करेगी और संभवतः पूरी तरह से बंद कर देगी.
हालांकि अधिकारियों ने कहा कि सरकारी रिफाइनरियां फिलहाल मिडिल मैन व्यापारियों के माध्यम से खरीदारी जारी रख सकती हैं.
अमेरिकी प्रतिबंधों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाली दूसरी कंपनी नायरा एनर्जी है, इस कंपनीमें रोसनेफ्ट की 49.13 प्रतिशत हिस्सेदारी है. जुलाई में यूरोपीय संघ द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से यह कंपनी पूरी तरह से रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति पर निर्भर है.
हालांकि, सरकारी तेल रिफाइनरियां इतनी मुश्किल में नहीं हैं क्योंकि उनका रोसनेफ्ट या लुकोइल के साथ कोई सीधा कॉनट्रैक्ट नहीं है और वे मध्यस्थ व्यापारियों, ज़्यादातर यूरोपीय व्यापारियों (जो प्रतिबंधों के दायरे से बाहर हैं) के माध्यम से रूसी तेल खरीद रही थीं. यह खरीदारी फिलहाल जारी रह सकती है.
भारत-चीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अगर वे रूस से तेल खरीदना बंद कर देते हैं, तो उन्हें महंगे विकल्पों की ओर जाना पड़ेगा, जिससे उनकी उत्पादन लागत और महंगाई बढ़ेगी. गौरतलब है कि ट्रंप की घोषणा के बाद ही वैश्विक तेल कीमतें 5% उछल गईं हैं.
2025 के पहले नौ महीनों में भारत ने रूस से 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो कुल आयात का 40% है. यह सस्ता तेल भारत की रिफाइनरियों को लाभ पहुंचा रहा था, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत हो रही थी और भारत का अपने विदेशी व्यापार पर मजबूत कंट्रोल था.
लेकिन अब आयात घटने से तेल बिल 11 अरब डॉलर बढ़ सकता है.
रूस से कच्चे तेल ना आयात करने का सकारात्मक पक्ष यह है कि भारत पर ट्रंप के टैरिफ कम हो सकते हैं. जिससे अमेरिका के साथ विदेशी व्यापार को फिर से रफ्तार मिल सकती है. लेकिन भारत पर फिलहाल दबाव बढ़ेगा.
After Trump, in his first term, imposed a blanket ban on Iranian energy exports, Modi halted all oil imports from Iran — a move that made China the almost exclusive buyer of heavily discounted Iranian crude, still the world’s cheapest. In recent years, India turned to Russian…
— Dr. Brahma Chellaney (@Chellaney) October 24, 2025
पॉलिसी एक्सपर्ट ब्रह्म चेलानी इसे दूसरे नजरिये से देखते हैं और मानते हैं कि अगर भारत ने रूस से आयात बंद कर दिया तो इसका फायदा चीन को होगा. उन्होंने एक्स पर लिखा. "ट्रंप द्वारा अपने पहले कार्यकाल में ईरानी एनर्जी एक्सपोर्ट पर व्यापक प्रतिबंध लगाने के बाद मोदी ने ईरान से सभी प्रकार के तेल आयात रोक दिए थे, इस कदम ने चीन को भारी छूट पर मिलने वाले ईरानी कच्चे तेल का लगभग एकमात्र खरीदार बना दिया, जो अभी भी दुनिया में सबसे सस्ता है. हाल के वर्षों में भारत ने मास्को के ऊर्जा निर्यात पर प्रत्यक्ष अमेरिकी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए रूसी तेल की ओर रुख किया.
अब, जब ट्रम्प ने रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादकों—लुकोइल और रोसनेफ्ट—को काली सूची में डाल दिया है, तो सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार फिर से अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करेगी, जिससे भारत के अनुपालन से चीन को एक और अप्रत्याशित लाभ होगा."
अमेरिकी प्रतिबंधों पर चीन क्या करेगा?
चीन की स्थिति और जटिल है. दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक चीन ने ट्रंप की ओर से रूसी कंपनियों पर बैन लगाने के बाद सरकारी तेल कंपनियों के जरिये रूसी तेल की खरीद रोक दी है. और वहां की स्वतंत्र रिफाइनरियां अमेरिकी प्रतिबंधों का आकलन कर रही है. आगामी 30 अक्तूबर को जब ट्रंप जिनपिंग से मुलाकात करेंगे तो ये मुद्दा निश्चित रूप से सामने आने वाला है.
चीन अगर रूस से कच्चे तेल का आयात घटाता है तो उसके एनर्जी बिल में जबर्दस्त इजाफा होगा. चीन का 18 प्रतिशत तेल रूस से आता है. अगर चीन अचानक रूस से आयात बंद कर देगा तो इसका वहां की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना लाजिमी है.
बीजिंग में ऊर्जा नीति के शोधकर्ता लिन फांग का मानना है कि चीन के लिए भी यह एक कठिन कदम है क्योंकि रूस से सस्ता तेल चीन की आर्थिक वृद्धि में मदद करता है. वे कहते हैं, "चीन को अपनी ऊर्जा आयात रणनीति में विविधता लानी होगी और अमेरिका के दबाव के कारण रणनीतिक फैसले लेने होंगे."
यह 'तेल का खेल' ट्रंप की कूटनीति का परीक्षण है. अगर भारत-चीन आयात घटाते हैं तो पुतिन वार्ता की मेज पर आ सकते हैं, लेकिन इससे ऊर्जा मार्केट में होने वाले बदलावों को देखना जरूरी होगा.