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किस्सा: ...तो नेता नहीं, पुलिस में सिपाही होते लालू यादव... एक फेल्योर और किस्मत बदल गई

अपनी भाषण शैली के कारण अलग पहचान रखने वाले लालू यादव का आज जन्मदिन है. लालू यादव अपनी सियासत के शुरुआती दिनों में नौकरी की तलाश में थे. वह सिपाही भर्ती में भी किस्मत आजमाने गए थे.

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लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो)
लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो)

एक ऐसा नेता जिसने बिहार की राजनीति को बदलकर रख दिया. पिछड़े, दबे-कुचले वर्गों की मुखर आवाज बना. अपनी बेबाकी और मजाकिया वाक शैली से सियासत की दिशा मोड़ दी. पान लेकर पाकिस्तान गया तो सत्तू लेकर अमेरिका, और आम जनता के दिलों से खास की दूरी मिटा यह एहसास दिलाया कि हम भी आपके ही बीच के हैं. सूबे की सत्ता के शीर्ष पद मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र सरकार में भी मंत्री रहा, लेकिन जमीन से जुड़े राजनेता वाली इमेज हमेशा बनाए रखी. हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की. आज लालू यादव का जन्मदिन है.

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चुनावी साल में लालू यादव के 78वें जन्मदिन को खास बनाने के लिए आरजेडी ने बड़े स्तर पर तैयारी की है. पार्टी ने दलित और वंचित समाज के लोगों के साथ ही गरीबों को भोजन कराने, गरीब बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी सामग्री देने का ऐलान किया है. पटना में पूर्व मुख्यमंत्री रबड़ी देवी के आवास पर 78 पाउंड का केक काटकर लालू यादव के जन्मदिन का जश्न मनाया गया. पूरे बिहार में विविध कार्यक्रमों के आयोजन की तैयारी है. ऐसे में बात लालू यादव से जुड़े किस्सों की भी हो रही है.

बिहार के गोपालगंज जिले के छोटे से गांव फुलवरिया की गलियों में पले-बढ़े लालू यादव की भाषण शैली जितनी दिलचस्प है, उतना ही दिलचस्प हैं उनका सियासत में आने, सीएम बन जाने से लेकर अपनी पार्टी बनाने तक का सफर. कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आए लालू यादव ने सियासत में कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने इससे किनारा करने और अपने कदम पीछे खींचने का पूरा मन बना लिया था. लालू यादव बिहार पुलिस की सिपाही भर्ती में शामिल होने चले गए. हालांकि, वह इस भर्ती में असफल हो गए और नौकरी का ख्वाब टूट गया,. इस एक फेल्योर से उनकी किस्मत बदल गई.

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बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब बंधु बिहारी में इससे जुड़ा किस्सा लिखा है. उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है लालू यादव ने जब छात्र राजनीति में कदम रखा, उन्हें एहसास हुआ कि इसमें कुछ नहीं रखा है. लालू एक अदद नौकरी की तलाश में जुट गए. कॉलेज की राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बनाने लगे. लालू यादव को राजनीति में लाने वाले तब के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह ने तब अपने हित के लिए उन्हें जबरदस्ती सक्रिय बनाए रखा. लालू अपनी हरकतों से लोगों को लुभाने की कला के कारण बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो गए थे.

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संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब में नरेंद्र सिंह से बातचीत के आधार पर लिखा है कि बीएन कॉलेज में बड़ा धरना आयोजित किया जाना था. इसके लिए लालू यादव को जब खोजा गया, वह नहीं मिले. न तो वह घर गए थे, और ना ही उन जगहों में से कहीं पर थे जहां वह बैठकी किया करते थे. धरना खत्म होने के बाद शाम को लालू, नरेंद्र सिंह के पास पहुंचे. वह थके-हारे और चोटिल थे. लालू यादव ने तब नरेंद्र सिंह को बताया कि पुलिस भर्ती में गया था, जहां सबकुछ ठीक रहा लेकिन दौड़ नहीं पाया और गिर गया. लालू यादव ने इसके बाद नरेंद्र सिंह से हर राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने का वादा किया था.

(नोट- यह खबर मूलरूप से 11 जून 2024 को प्रकाशित स्टोरी पर आधारित है.)

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