आंवला फल को संसार का सबसे पहला फल माना जाता है. इसलिए आयुर्वेद में भी इसका प्रमुख स्थान है. यह फल त्रिफला नाम के आयुर्वेदिक चूर्ण का एक हिस्सा है और साथ ही इस औषधि का आधार है. वात-पित्त और कफ दोष को नियंत्रित करने वाला आंवला फल के रूप में अपने आप में औषधि है. स्कंद पुराण में इसकी उत्पत्ति की कथा का वर्णन है कि कैसे आंवले के वृक्ष और फल की उत्पत्ति हुई.
कार्तिक में है आंवला पूजन का महत्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला की पूजा की जाती है, लेकिन स्कंद पुराण कहता है कि कार्तिक का महीना तुलसी और आंवला की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है. इस आसान पूजा से ही मनुष्य के कई पाप कट जाते हैं. स्कंदपुराण में नवमी ही नहीं बल्कि कार्तिकके शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भी आंवले के पूजन का विधान बताया गया है.
कैसे करें आंवले की पूजा
स्कंद पुराण कहता है कि, आंवले का महान् वृक्ष सब पापोंका नाश करनेवाला है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का नाम वैकुण्ठ चतुर्दशी है. इस दिन आंवले की छाया में जाकर मनुष्य राधा सहित देवेश्वर श्रीहरिका पूजन करे.
इसके बाद आंवले की 108 प्रदक्षिणा करे. फिर साष्टांग प्रणाम करके श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण की प्रार्थना करे और आंवले की छायामें बैठकर इसकी उत्पत्ति की कथा को सुनना चाहिए. ब्राह्यणों को भोजन कराकर और यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिए. ब्राह्मणों के सन्तुष्ट होने पर मोक्षदायक श्रीहरि भी प्रसन होते हैं.
क्या है आंवले की उत्पत्ति की कथा?
स्कंदपुराण में कथा आती है कि एक बार जब सारा संसार जल में डूब गया था और धरती के जलमग्न हो जाने से सभी चराचर प्राणी नष्ट हो गये थे, उस समय ब्रह्मदेव सनातन परब्रह्म परमसत्ता का जाप करने लगे. परब्रह्म के नाम का जप करते-करते उन्होंने गहरी सांस ली और इसी दौरान ईश्वर के प्रति अपने दिव्य अनुराग के कारण उनकी आंखों से आंसू गिर पड़ा. प्रेम के आंसुओं से भरी वह जल की बृंद पृथ्वी पर गिर पड़ी. उसी से आंवले का महान् वृक्ष उत्पन्न हुआ.
इस वृक्ष में बहुत सी शाखाएं थीं. वह फलों के भार से लदा हुआ था. सब वृक्षों में सबसे पहले आंवला ही प्रकट हुआ, इसलिये उसे ' आदिरोह ' कहा गया. ब्रह्माजी ने पहले आंवले को उत्पन्न किया और फिर इसके बाद समस्त प्रजाकी सृष्टि की. जब देवता आदिकी भी सृष्टि हो गयी, तब वे उस स्थानपर आये जहां भगवान् विष्णुको प्रिय लगने वाला आंवले का वृक्ष था. उसे देखकर देवताओं को बड़ा आश्चर्य हुआ. उसी समय आकाशवाणी हुई कि यह आंवलेका वृक्ष सब वृक्षों से श्रेष्ठ है, क्योंकि यह भगवान् विष्णु को प्रिय है. इस तरह आंवला भगवान विष्णु का ही रूप माना जाने लगा.