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शेख हसीना ने भारतीय राजदूत से मिलने से किया इनकार, रिपोर्ट पर हंगामा

aajtak.in
  • 27 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 12:27 PM IST
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बांग्लादेश कभी पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. भारत की मदद से वह पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बना. जहां शुरुआत से ही भारत-बांग्लादेश के संबंध बेहद मजबूत रहे, वहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंध कभी सहज नहीं रहे. हालांकि, पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान और बांग्लादेश की नजदीकियों की चर्चा बढ़ रही है. इस बीच, बांग्लादेश के एक प्रमुख अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना तमाम अनुरोधों के बावजूद पिछले चार महीनों में भारतीय उच्चायुक्त से मुलाकात नहीं कर पाई हैं.

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बांग्लादेश के प्रमुख अखबार 'भोरेर कागज' की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री शेख हसीना के 2019 में सत्ता में आने के बाद से भारतीय परियोजनाओं की रफ्तार भी धीमी पड़ गई है लेकिन चीनी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को ज्यादा समर्थन मिल रहा है.

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अखबार के संपादक श्यामल दत्ता ने पाकिस्तान और चीन की तरफ बांग्लादेश के झुकाव को लेकर एक आर्टिकल लिखा है. उन्होंने लिखा है, "भारत की चिंताओं के बावजूद, बांग्लादेश ने एक चीनी कंपनी को सिल्हट में एक एयरपोर्ट टर्मिनल बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया है. भारत की उच्चायुक्त रीवा गांगुली पिछले चार महीनों से बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना से मुलाकात की कोशिश कर रही हैं लेकिन अभी तक उन्हें एंपॉइंटमेंट नहीं मिल सका है. बांग्लादेश ने कोरोना महामारी के दौरान भारतीय मदद को लेकर शुक्रिया अदा करने के लिए कोई नोट भी नहीं भेजा."

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भारत की आपत्ति के बावजूद बीजिंग अर्बन कंस्ट्रक्शन ग्रुप (बीयूसीजी) को बांग्लादेश में सिल्हट के ओस्मानिया एयरपोर्ट में नया टर्मिनल बनाने को लेकर कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है. भारत के लिए चिंता की बात ये है कि सिल्हट भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से से लगता है इसलिए भारत के लिए संवेदनशील इलाका है. पिछले कुछ महीनों से ढाका और बीजिंग की भी नजदीकियां बढ़ी हैं. चीन ने बांग्लादेशी उत्पादों को ड्यूटी फ्री कर दिया. चीन बांग्लादेश को कोरोना वायरस की लड़ाई में भी मेडिकल आपूर्ति के जरिए मदद कर रहा है. इसके अलावा, बांग्लादेश चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड में भी शामिल है.

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हाल ही में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुधवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को फोन किया था जिसे लेकर खूब चर्चा हुई. ढाका की तरफ से इस बातचीत को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दी गई लेकिन पाकिस्तान की सरकारी न्यूज एजेंसी ने बताया कि इमरान खान ने शेख हसीना से कश्मीर के हालात पर चर्चा की और विवाद के समाधान पर जोर दिया. हालांकि, भारत ने गुरुवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के रुख की सराहना की. भारत ने कहा कि बांग्लादेश अपने पुराने रुख पर कायम है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मुद्दा है.

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बांग्लादेश के अखबार भोरेर कागज के लेख में कहा गया है कि हसीना की सरकार का एक धड़ा है जो चीन के साथ संबंध मजबूत करने का इच्छुक है. पिछले 10 महीनों में चीन के सहयोगी पाकिस्तान के साथ संबंध मजबूत करने की कोशिशें भी हुई हैं जो इस बात को साबित भी करता है. बांग्लादेश ने नवंबर 2019 में भारत ने निर्यात पर बैन लगा दिया था जिसके बाद उसने पाकिस्तान से प्याज मंगाना शुरू कर दिया.

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15 सालों में ये पहली बार है जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से कृषि उत्पादों का आयात किया है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंध तब और खराब हो गए थे जब शेख हसीना सरकार ने 2016 में जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के नेता मोती-उर-रहमान निजामी को 1971 के युद्ध अपराध के लिए फांसी पर लटका दिया था. पाकिस्तान ने इसे लेकर कड़ा विरोध जताया था. इस घटना के दो सालों तक ढाका ने पाकिस्तान उच्चायुक्त की नियुक्ति तक नहीं की.

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एनआरसी और सीएए का मुद्दा
पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग कर बांग्लादेश बनाने में भारत की अहम भूमिका रही है. इसीलिए भारत-बांग्लादेश के संबंधों में हमेशा से एक-दूसरे को लेकर भरोसा रहा है. हालांकि, एनआरसी और सीएए को लेकर बांग्लादेश के साथ कुछ मतभेद पैदा हुए हैं. नागरिकता कानून के तहत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. बांग्लादेश का कहना है कि उनके देश में धार्मिक कट्टरता कम हुई है और हिंदुओं के खिलाफ किसी तरह का धार्मिक भेदभाव नहीं हो रहा है. वहीं, एनआरसी और सीएए को बांग्लादेश ने आंतरिक मुद्दा करार दिया है.

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भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को वापस भेजने की भी बात कही जा रही है जिसे लेकर बांग्लादेश में चिंता की लहर है. पिछले कुछ सप्ताह में, बांग्लादेश की मीडिया में भारत-बांग्लादेश सीमा पर जान-माल के नुकसान को लेकर भी आवाजें उठ रही हैं. भारत के साथ बढ़ते मतभेदों को बांग्लादेश में पाकिस्तान और चीन के समर्थकों के लिए एक मौके की तरह देखा जा रहा है.

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बांग्लादेश-पाकिस्तान के बीच लंबे समय के बाद पाकिस्तान उच्चायुक्त पद पर इमरान अहमद सिद्दीकी के आने के बाद से कूटनीतिक संबंध फिर से शुरू हुए हैं. सिद्दीकी ने बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ. मोमेन के साथ 1 जुलाई को मुलाकात भी की थी.

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भोरेर कागज के आर्टिकल में कहा गया है कि बांग्लादेश में अधिकारियों का एक धड़ा दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य करने के लिए क्रिकेट का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है. बांग्लादेश की पाकिस्तान और चीन के साथ बढ़ते संवाद को सीएए समेत तमाम मुद्दों पर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. बांग्लादेश पहले से ही म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजना उसकी मुश्किलें और बढ़ा देगा.

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बांग्लादेश के एक अन्य प्रमुख अखबार 'डेली ऑब्जर्वर' ने लिखा है कि शेख हसीना से भारतीय राजदूत की मुलाकात ना होने को गलत तरीके से नहीं पढ़ा जाना चाहिए. अखबार ने लिखा है कि विदेशी मीडिया को ये बात समझनी होगी कि हमारी मिट्टी में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ही विदेशी राजदूतों से मुलाकात को लेकर फैसला करती हैं. बांग्लादेश में तैनात किसी भी देश के विदेशी राजदूत के पास अब अनाधिकारिक तौर पर मिले विशेषाधिकार नहीं रह गए हैं जैसा कि कुछ समय पहले तक था.

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अखबार ने लिखा है कि ढाका चाहे बीजिंग के नजदीक जाए या दिल्ली के, ये बांग्लादेश का फैसला है. पाकिस्तान के साथ कड़वे अतीत को छोड़ दें तो भारत और चीन दोनों ही हमारे भरोसेमंद दोस्त हैं. भारत-चीन के बीच दुश्मनी भले बढ़ रही हो लेकिन विदेशी मीडिया को हमारे कूटनीतिक संबंधों को गलत संदर्भों में पेश करने से बचना चाहिए.

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