दो तरह के रेन जोन, हिमालय की दीवार... ऐसे ही नहीं उत्तराखंड-हिमाचल में बारिश मचा रही इतनी तबाही

भारत के दो वर्षा क्षेत्र—उष्णकटिबंधीय मानसून और सवाना जलवायु—हरियाली और तबाही दोनों लाते हैं. मानसून कृषि और जैव-विविधता को बढ़ावा देता है, लेकिन बाढ़ और भूस्खलन भी लाता है. जुलाई 2025 में हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ ने भारी नुकसान किया. जलवायु परिवर्तन ने चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ाया, जिससे बेहतर प्रबंधन और नीतियों की जरूरत है.

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ये है हिमाचल प्रदेश का थुनाग इलाका जहां हाल ही में बादल फटा और भारी तबाही मची. (फोटोः गिरीश चंद्र/India Today) ये है हिमाचल प्रदेश का थुनाग इलाका जहां हाल ही में बादल फटा और भारी तबाही मची. (फोटोः गिरीश चंद्र/India Today)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 5:07 PM IST

भारत का मौसम और जलवायु दुनिया में सबसे विविधतापूर्ण है. यह हरियाली भी लाता है और तबाही भी. यह देश दो प्रमुख वर्षा क्षेत्रों (Rain Zone) में बंटा है: उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु (Tropical Monsoon Climate) और उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु (Tropical Savanna Climate). ये दोनों जलवायु क्षेत्र भारत को हरियाली से भरपूर बनाते हैं, लेकिन साथ ही भारी बारिश, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी लाते हैं. 

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भारत के वर्षा क्षेत्र

भारत की जलवायु को उष्णकटिबंधीय वर्षा जलवायु (Tropical Rainy Climate) के तहत वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें तापमान आमतौर पर 18 डिग्री सेल्सियस (64°F) से नीचे नहीं जाता.

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भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार भारत में 4 मौसम होते हैं: सर्दी (दिसंबर-फरवरी), गर्मी (मार्च-मई), मानसून (जून-सितंबर) और उत्तर-मानसून (अक्टूबर-नवंबर). भारत की जलवायु दो प्रमुख उप-प्रकारों में बंटी है...

हिमाचल के थुनाग में बादल फटने से बहे अपने घर के सामान खोजती महिला. (फोटोः गिरीश चंद्र/India Today)

उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु (Tropical Monsoon Climate)

  • स्थान: यह जलवायु पश्चिमी घाट, मालाबार तट, दक्षिणी असम, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है.
  • विशेषताएं: साल भर मध्यम से उच्च तापमान (18°C से ऊपर) रहता है. मई से नवंबर के बीच बारिश होती है, जो सालाना 2000 मिलीमीटर (79 इंच) से अधिक हो सकती है. यह बारिश जंगलों, दलदली क्षेत्रों और हरियाली को बनाए रखती है.
  • प्रभाव: भारी बारिश के कारण यह क्षेत्र जैव-विविधता से समृद्ध है, जैसे पश्चिमी घाट के वर्षावन और अंडमान के जंगल. लेकिन, यह भारी बाढ़ और भूस्खलन का कारण भी बनता है. उदाहरण के लिए, केरल और असम में अक्सर मानसून के दौरान बाढ़ आती है.

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उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु (Tropical Savanna Climate)

  • स्थान: यह जलवायु भारत के अधिकांश आंतरिक प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में प्रचलित है, जैसे मध्य भारत, दक्कन पठार, और पश्चिमी घाट के पूर्वी हिस्से को छोड़कर.
  • विशेषताएं: इस क्षेत्र में गर्मी (मार्च-मई) में तापमान 50°C तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में यह 18°C से ऊपर रहता है. बारिश मुख्य रूप से जून से सितंबर के बीच होती है, जो 750-1500 मिलीमीटर (30-59 इंच) के बीच होती है. दिसंबर से मार्च तक शुष्क मौसम रहता है.
  • प्रभाव: यह जलवायु सवाना-प्रकार की वनस्पति (लंबी घास और बिखरे हुए पेड़) को बढ़ावा देती है. यह क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है, लेकिन सूखा और गर्मी की लहरें यहां आम हैं.

भौगोलिक स्थिति और इसका प्रभाव

भारत की भौगोलिक स्थिति इन रेन जोन को आकार देती है. नीचे लिखे कारण भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं...

हिमालय: हिमालय ठंडी मध्य एशियाई हवाओं को रोकता है, जिससे भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय बनी रहती है. यह मानसूनी हवाओं को भी भारत की ओर मोड़ता है, जिससे भारी बारिश होती है.

थार मरुस्थल: पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल कम बारिश वाला क्षेत्र है, क्योंकि पश्चिमी घाट मानसून हवाओं की नमी को रोक लेते हैं, जिससे यहां रेन शैडो ज़ोन बनता है.

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समुद्र से निकटता: तटीय क्षेत्र, जैसे मुंबई और चेन्नई, समुद्र के कारण मध्यम तापमान और उच्च आर्द्रता का अनुभव करते हैं. जबकि, आंतरिक क्षेत्र, जैसे दिल्ली और कानपुर, चरम मौसमी बदलाव देखते हैं.

मानसूनी हवाएं: दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) भारत में 80% बारिश लाता है. यह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी लाकर भारी वर्षा करता है. उत्तर-पूर्वी मानसून (अक्टूबर-दिसंबर) तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बारिश लाता है.

पश्चिमी घाट और ITCZ: पश्चिमी घाट मानसून हवाओं को ऊपर उठने के लिए मजबूर करता है, जिससे भारी वर्षा होती है. इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ) का उत्तर-दक्षिण में स्थानांतरण मानसून की शुरुआत और समाप्ति को नियंत्रित करता है.

इन भौगोलिक कारणों से भारत में वर्षा का वितरण असमान है. जैसे- मेघालय के चेरापूंजी और मावसिनराम में सालाना 1080 सेमी से अधिक बारिश होती है, जबकि जैसलमेर में केवल 9 सेमी बारिश होती है.

हाल की चरम मौसमी घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं

जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण भारत में चरम मौसमी घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं. नीचे 2024 और 2025 की कुछ प्रमुख घटनाएं दी गई हैं...

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केरल में भूस्खलन (जुलाई 2024): केरल के वायनाड में भारी मानसूनी बारिश के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ, जिसमें 350 से अधिक लोग मारे गए और कई गांव नष्ट हो गए. यह उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु क्षेत्र में भारी बारिश का परिणाम था, जिसे पश्चिमी घाट की भौगोलिक स्थिति ने और बढ़ाया.

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जैसलमेर में अप्रत्याशित बाढ़ (2024): राजस्थान के जैसलमेर, जो सामान्य रूप से शुष्क सवाना जलवायु क्षेत्र में पड़ता है. वहां 2024 में एक दिन में मौसम की 55% बारिश देखी. यह मानसून के लंबे समय तक सक्रिय रहने और जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ. इससे क्षेत्र में अप्रत्याशित बाढ़ आई.

लेह में गर्मी की लहर (जुलाई 2024): लद्दाख के लेह, जो सामान्य रूप से ठंडा मरुस्थलीय क्षेत्र है, वहां पर 2024 में गर्मी की लहर का सामना किया. यह जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का परिणाम था, जो भारत की जलवायु की विविधता को दर्शाता है.

मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत में बाढ़ (जून 2025): ओडिशा, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में भारी मानसूनी बारिश ने बाढ़ का खतरा बढ़ाया. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने एक निम्न दबाव प्रणाली के मजबूत होने की चेतावनी दी, जिससे इन क्षेत्रों में भारी तबाही हुई.

हिमालयी राज्यों में आपदाएं: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) और क्लाउडबर्स्ट जैसी घटनाएं बढ़ी हैं. ये मानसून की अनियमितता और हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघलने के कारण हैं.

शहरी बाढ़: मुंबई, चेन्नई और दिल्ली जैसे शहर हर साल मानसून के दौरान शहरी बाढ़ का सामना करते हैं. अपर्याप्त जल निकासी प्रणाली और शहरीकरण के कारण ये समस्याएं और गंभीर हो गई हैं. जैसे 2005 की मुंबई बाढ़ ने शहर को ठप कर दिया था.

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हरियाली और तबाही

भारत के वर्षा क्षेत्रों का दोहरा प्रभाव है.

हरियाली

  • कृषि: मानसून भारत की कृषि का आधार है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 25% और 70% आबादी को रोजगार देता है. धान, गन्ना, कपास और मोटे अनाज जैसी फसलें मानसून पर निर्भर हैं.
  • जैव-विविधता: उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु क्षेत्रों में भारी बारिश वर्षावनों और जैव-विविधता को बढ़ावा देती है. पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत में घने जंगल और समृद्ध वनस्पति इसका उदाहरण हैं.
  • जल संसाधन: मानसून नदियों और जलाशयों को भरता है, जो सिंचाई और पेयजल के लिए महत्वपूर्ण हैं.

तबाही

  • बाढ़ और भूस्खलन: भारी बारिश के कारण बाढ़ और भूस्खलन आम हैं, खासकर हिमालयी क्षेत्रों और पश्चिमी घाट में. 2024 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं से 3238 लोगों की मृत्यु हुई, जो 2022 की तुलना में 18% अधिक है.
  • सूखा: सवाना जलवायु क्षेत्रों में मानसून की अनियमितता सूखे का कारण बनती है. 2015 में महाराष्ट्र, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश में कमजोर मानसून के कारण पानी की भारी कमी हुई.
  • गर्मी की लहरें: सवाना क्षेत्रों में गर्मी की लहरें सैकड़ों लोगों की जान लेती हैं. 2025 में IMD ने और गर्म ग्रीष्मकाल और लगातार गर्मी की लहरों की भविष्यवाणी की है.
  • रोगों का प्रकोप: मानसून की नमी डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों को बढ़ावा देती है.

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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन ने भारत के वर्षा क्षेत्रों को और जटिल बना दिया है. भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल के अनुसार, भारत की उष्णकटिबंधीय भौगोलिक स्थिति और ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ा रहा है.

बढ़ती गर्मी: शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट के कारण रात में ठंडक नहीं मिलती, जिससे दिल्ली जैसे शहरों में शहरी-ग्रामीण तापमान में 15°C तक का अंतर होता है.

अनियमित मानसून: 1950 से 2015 तक मध्य भारत में चरम वर्षा की घटनाएं तीन गुना बढ़ी हैं, जबकि मध्यम बारिश की घटनाएं कम हुई हैं.

माइक्रोक्लाइमेट बदलाव: बाढ़ क्षेत्र (जैसे बिहार, ओडिशा) सूखा-प्रवण हो रहे हैं. सूखा-प्रवण क्षेत्र (जैसे राजकोट, औरंगाबाद) बाढ़ का सामना कर रहे हैं.

चक्रवात: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है. 2024 में 258 जिलों ने चक्रवातों का सामना किया, जिसमें पुरी, चेन्नई और नेल्लोर जैसे तटीय क्षेत्र प्रभावित हुए.

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