46 साल में बादल फटने की सिर्फ 30 घटनाएं, इधर 9 साल में 8 भयानक तबाही के मंजर दिखे
46 साल में बादल फटने की सिर्फ 30 घटनाएं हुईं, लेकिन पिछले 9 साल में 8 भयानक तबाहियां देखी गईं. जलवायु परिवर्तन, बेहिसाब निर्माण और जंगल कटाई इसके पीछे की वजह हैं. केदारनाथ (2013) और किश्तवाड़ (2025) जैसी घटनाओं से सबक लेते हुए बचाव जरूरी है.
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किश्तवाड़ के चशोटी गांव में बादल फटने के बाद ये नजारा आया. (Photo: Reuters)
भारत में खासकर हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने (cloudburst) की घटनाएं पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी हैं. ये घटनाएं छोटे इलाके में कुछ घंटों में भारी बारिश लाती हैं, जिससे बाढ़, भूस्खलन और भारी तबाही होती है. लेकिन आखिर क्यों ये घटनाएं बढ़ रही हैं.
भारत में कब-कब बादल फट चुके हैं? आइए जानते हैं कि इसके कारण और प्रभाव क्या हैं. पिछले सालों की सभी प्रमुख घटनाओं की विस्तृत सूची देंगे ताकि आप इसे अच्छी तरह समझ सकें.
IMD के अनुसार, जब किसी इलाके में एक घंटे में 100 मिलीमीटर (10 सेंटीमीटर) से ज्यादा बारिश हो और यह 20-30 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में हो, तो इसे बादल फटना कहते हैं. कुछ वैज्ञानिक 50-100 मिलीमीटर बारिश को दो घंटे में ‘मिनी क्लाउडबर्स्ट’ भी मानते हैं.
यह तब होता है जब नमी से भरी हवा पहाड़ों पर चढ़ती है. ऊंचाई पर कम्युलोनिम्बस क्लाउड (बादल) बनते हैं. ये बादल इतने भारी हो जाते हैं कि अचानक सारा पानी नीचे गिर जाता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति बनती है.
बादल फटने के कारण
भौगोलिक कारण: हिमालय की ऊंची पहाड़ियां और ढलानें हवा को ऊपर उठाती हैं, जिसे ‘ओरोग्राफिक लिफ्टिंग’ कहते हैं. इससे बारिश तेज होती है. जंगलों की कटाई, गलत निर्माण और पहाड़ों पर बस्तियां बनाना इस खतरे को बढ़ाता है.
जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र गर्म हो रहे हैं, जिससे हवा में नमी बढ़ती है. गर्म हवा में नमी 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर 7% ज्यादा पानी रख सकती है, जो बादल फटने की तीव्रता को बढ़ाता है.
मानवीय कारण: जंगलों की कटाई, बांध बनाना और खराब नालियां पानी को सोखने से रोकती हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन बढ़ते हैं.
मॉनसून का असर: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली नमी हिमालय से टकराकर भारी बारिश बनाती है. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) भी इसमें योगदान देते हैं.
पहचान में मुश्किल: बादल फटना बहुत छोटे इलाके में और अचानक होता है, इसलिए मौसम विभाग इसे पहले से सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता.
बाढ़ और भूस्खलन: तेज बारिश से नदियां उफान पर आती हैं और पहाड़ों पर मिट्टी ढहती है.
जान-माल का नुकसान: घर, फसलें, सड़कें और इमारतें नष्ट होती हैं, लोग मरते हैं.
संचार और बिजली ठप: सड़कें बंद होने से मदद पहुंचने में देरी होती है.
पर्यावरणीय नुकसान: मिट्टी का कटाव, नदियों का प्रदूषण और जंगलों का नुकसान होता है.
आर्थिक प्रभाव: पर्यटन और खेती पर बुरा असर पड़ता है, जिससे लोगों की आजीविका खतरे में पड़ती है.
भारत में बादल फटने की घटनाओं की विस्तृत सूची
1970 से 2016 के बीच सिर्फ 30 बादल फटने की आधिकारिक घटनाएं दर्ज हुईं, लेकिन हाल के सालों में ये संख्या बढ़ी है. नीचे पिछले 100 सालों की प्रमुख घटनाओं की सूची है...
28 सितंबर 1908, हैदराबाद (तेलंगाना): मुसी नदी में बाढ़ आई. 15000 से ज्यादा लोग मरे और 80000 घर बर्बाद हुए. यह उस समय की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी.
20 जुलाई 1970, अलकनंदा घाटी (उत्तराखंड): जोशीमठ और चमोली के बीच बादल फटने से गोहना झील का बचा हिस्सा बह गया. कई बसें और गांव नष्ट हुए, सैकड़ों लोग मरे.
26 जुलाई 2005, मुंबई (महाराष्ट्र): 950 मिलीमीटर बारिश हुई, जिसमें 1,000 से ज्यादा लोग मरे. सड़कें, रेलें और हवाई सेवा ठप हो गई.
6 अगस्त 2010, लेह (लद्दाख): 200 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई. 179 लोग मरे, 400 घायल हुए. हवाई अड्डा और सेना के ठिकाने तबाह हुए.
15-17 जून 2013, केदारनाथ (उत्तराखंड): मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों में बाढ़ आई. 6000 से 10000 लोग मरे, 1 लाख से ज्यादा फंसे. यह हिमालय की सबसे बड़ी त्रासदी थी.
4 मई 2018, बेलगाम (कर्नाटक): 95 मिलीमीटर बारिश हुई, लेकिन नुकसान कम रहा.
12 मई 2021, टिहरी और चमोली (उत्तराखंड): भारी बारिश हुई, लेकिन बड़े नुकसान की खबर नहीं.
28 जुलाई 2021, किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर): हंजर गांव में 26 लोग मरे और 17 घायल हुए.
20 अक्टूबर 2021, सलेम (तमिलनाडु): 213 मिलीमीटर बारिश से तालाब और नदियां लबालब हो गईं, लेकिन नुकसान सीमित रहा.
8 जुलाई 2022, पहलगाम (जम्मू-कश्मीर): अमरनाथ यात्रा मार्ग पर बादल फटने से 15 तीर्थयात्री मरे.
अगस्त 2022, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड: कई जगहों पर बादल फटे, दर्जनों लोग मरे और बाढ़ आई.
6 अगस्त 2025, उत्तरकाशी (उत्तराखंड): धराली गांव में 4 लोग मरे, 50 से ज्यादा लापता. होटल और घर बह गए.
14 अगस्त 2025, किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर): चशोटी में 45 लोग मरे, 100 घायल, मचैल माता यात्रा प्रभावित हुई.
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बादल फटने की बढ़ती घटनाएं: क्यों हो रही हैं?
हिमालय का प्रभाव: हिमालय की ढलानें और ग्लेशियर बारिश को तेज करते हैं. जंगलों की कटाई और बांधों ने इसे और खतरनाक बना दिया. जलवायु परिवर्तन: समुद्र का गर्म होना नमी बढ़ा रहा है, जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ती है. 1950 के बाद से कुछ क्षेत्रों में बारिश 20-50% ज्यादा हुई है. मानव गलतियां: गलत निर्माण, पर्यटन का अंधाधुंध विकास और नालियों की कमी बाढ़ को बढ़ाती है. भविष्यवाणी की कमी: मौसम विभाग भारी बारिश की चेतावनी दे सकता है, लेकिन सटीक जगह और समय नहीं बता सकता.
जम्मू-कश्मीर: किश्तवाड़, पहलगाम और अमरनाथ क्षेत्र. हिमाचल प्रदेश: कुल्लू, मनाली, शिमला और चंबा. उत्तराखंड: केदारनाथ, चमोली, रुद्रप्रयाग और जोशीमठ. लद्दाख: लेह. सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश: तवांग और नॉर्थ सिक्किम.
ऋचीक मिश्रा