Safflower Cultivation: कुसुम एक औषधीय गुणों वाला पौधा है. इसका बीज, छिल्का, पत्ती, पंखुड़ियां, तेल, शरबत सभी का उपयोग दवाएं बनाने में किया जाता है. इसके फूलों के तेल का उपयोग उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है. कुसुम के तेल का उपयोग इसका प्रयोग साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम और इनसे संबधित पदार्थो को तैयार करने में भी लिया जाता हैं.
पानी की कमी वाले क्षेत्रों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है. इसकी खेती सीमित सिंचाई अवस्था में की जाती है. इसका पौधा आराम से 120 से 130 दिनों में उत्पादन देना शुरू कर देता है.
किस तरह की जलवायु उपयुक्त?
इसके अंकुरण के लिए 15 डिग्री तापमान तथा अच्छी पैदावार के लिए 20-25 डिग्री तापमान अच्छा होता है. अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक बुवाई अवश्य कर दें अन्यथा अधिक ठंढ पड़ने से अंकुरण पर बुरा असर पड़ता है.
कैसे करें बुवाई?
कुसुम फसल की बुवाई के लिये एक हेक्टर में 10 से 15 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. इसकी बुवाई करते वक्त ध्यान रखें कि कतार से कतार के बीच की दूरी 45 से.मी और पौधों की दूरी 20 से.मी. रखें. इसके खेतों में जलनिकासी की व्यवस्था अच्छी रखें.
कटाई व मड़ाई
जब पौधे की डालियां सूख जाती हैं तब निचली पत्तियों को काटकर हटा दें ताकि पौधों को कांटेदार पत्तियों के बाधा के बिना आसानी से पकड़ा जा सके. सुबह कटाई करने से कांटे मुलायम रहते हैं. इसके अतिरिक्त कांटेदार जाति की कटाई के लिये हाथों में दस्ताने पहनकर कटाई की जा सकती है. कटी फसल को 2 से 3 दिनों तक धूप में सुखाने के बाद डंडे से पीटकर मड़ाई की जाती है.
मुनाफा
किसान अगर एक हेक्टेयर में बढ़िया तरीके से कुसुम की खेती करें तो आराम से 9 से 10 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकता है. इसका बीज, छिलका, पत्ती, पंखुड़ियाँ, तेल, शरबत सभी बाजार में अच्छी कीमतों पर बिकती हैं, जिससे किसान बंपर मुनाफा कमाया जा सकता है.