
दुर्गा पूजा बंगाल में सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि परंपरा, स्वाद और संस्कृति का त्योहार है. खासकर अष्टमी के दिन मां दुर्गा को हिल्सा मछली (इलिश) चढ़ाने की परंपरा कई घरों में सालों से निभाई जाती रही है, लेकिन इस बार ये रस्म निभाना जेब पर भारी पड़ रहा है. कोलकाता के मछली बाजारों में हिल्सा की कीमतें पिछले तीन सालों में लगभग दोगुनी हो चुकी हैं, पहले जहां 1,500 रुपये किलो मिलती थी. वहीं, इस सीजन में रेट 2,500 रुपये या उससे भी ऊपर पहुंच गया है. इसका असर सीधे-सीधे मध्यम वर्ग की पर पड़ा है.

भारत हिल्सा के लिए बांग्लादेश पर निर्भर
भारत में हिल्सा मछली की सप्लाई लगातार घट रही है और अब इसकी उपलब्धता आयात पर निर्भर हो गई है. यह खासकर बांग्लादेश से आने वाली हिल्सा पर निर्भर हो गई है. पिछले साल दुर्गा पूजा के वक्त बांग्लादेश ने हिल्सा के निर्यात पर अस्थायी रोक लगाई थी, बाद में 3,000 टन के कोटे की मंजूरी मिली, लेकिन पूरी मात्रा भारत तक नहीं पहुंच पाई. इस साल भी सिर्फ 1,200 टन के कोटे में समय की कमी के चलते पूरी मछली आने की उम्मीद कम है
भारत अब हिल्सा के लिए बांग्लादेश पर ज्यादा निर्भर होता जा रहा है, क्योंकि यहां के जलक्षेत्र में उत्पादन कई वजहों से घट रहा है. पिछले महीने, करीब 48 भारतीय मछुआरों को बांग्लादेशी जलक्षेत्र में घुसने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. माना जा रहा है कि ये मछुआरे, जो दक्षिण 24 परगना के सुंदरबन के काकद्वीप इलाके से थे, हिल्सा पकड़ने की तलाश में समुद्री सीमा पार कर गए थे.
प्रकृति और इंसान दोनों की वजह से हिल्सा को खतरा
हिल्सा एक समुद्री मछली है, जो अंडे देने के लिए मानसून में नदियों की ओर आती है. ये मछली खासकर गंगा और पद्मा जैसी नदियों में आती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, नदियों में गिरता औद्योगिक कचरा और ‘जटका’ यानी छोटी हिल्सा की अवैध पकड़ ने इसकी संख्या को तेजी से घटा दी है.

इस संकट को Farakka बैराज ने और गहरा कर दिया है. इस बैराज के कारण गंगा में पानी का प्रवाह और खारापन (salinity) दोनों प्रभावित हुए हैं, जिससे हिल्सा के प्रजनन के लिए जरूरी माहौल खत्म होता जा रहा है.
एक रिपोर्ट बताती है कि फरक्का बैराज बनने के बाद गंगा के ऊपरी हिस्सों जैसे प्रयागराज, भभुआ और भागलपुर में हिल्सा की पकड़ में 92% तक की गिरावट आई है. अब यह मछली सिर्फ बंगाल के निचले इलाकों तक सीमित रह गई है.
1971 में बने फरक्का बैराज ने हिल्सा के जीवन चक्र में बड़ी रुकावट पैदा की है. सीआईएफआरआई के अध्ययन के मुताबिक, इस बैराज से पानी के बहाव पर असर पड़ा है, खारापन बढ़ा है और उन मछलियों पर जो अंडा देने के लिए आगे की ओर बढ़ती है, उन मछलियों के अंडे देने के रास्ते में बाधाएं बढ़ गई है.

एक तरफ भारत में हिल्सा मछली की उपलब्धता तेजी से घट रही है, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश इसका उत्पादन लगातार बढ़ा रहा है। पिछले 15 सालों में वहां हिल्सा का उत्पादन दोगुना होकर 2024 में 5.71 लाख टन तक पहुंच चुका है.
(तपन सेन की रिपोर्ट के साथ)