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इस मौसम में करें चने की खेती, इन बातों का रखा ध्यान तो होगी बंपर पैदावार

Chane Ki Kheti: चने का उत्पादन उत्तर भारत मे बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. संरक्षित नमी वाले शुष्क क्षेत्रो में इसकी खेती बेहद उपयुक्त मानी जाती है. ध्यान रखें इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करें जहां 60 से 90 से.मी बारिश होती है. सर्द मौसम वाले क्षेत्र में अगर आप इसकी खेती करते हैं तो सबसे बेहतर हैं.

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Chane Ki Kheti( Pic credit: Getty Images)
Chane Ki Kheti( Pic credit: Getty Images)

Gram Cultivation: रबी की फसलों की बुवाई का वक्त बेहद नजदीक आ चुका है. इस दौरान किसान बड़े पैमाने पर परंपरागत तौर पर गेहूं की बुवाई करते हैं. हर साल एक ही तरह की फसल की बुवाई की वजह से किसानों को कई बार नुकसान भी झेलना पड़ता है. ऐसे में किसानों को कुछ ऐसी फसलों की खेती करने की सलाह दी जाती है, जो बेहद कम वक्त में बढ़िया मुनाफा पहुंचा पाएं. चना भी इसी किस्म की फसल है. इसे दलहनी फसलों का राजा माना जाता है.'

उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर होती है चने की खेती

चने का उत्पादन उत्तर भारत मे बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. संरक्षित नमी वाले शुष्क क्षेत्रों में इसकी खेती बेहद उपयुक्त मानी जाती है. ध्यान रखें इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करें जहां 60 से 90 सेमी बारिश होती है. सर्द मौसम वाले क्षेत्र में अगर आप इसकी खेती करते हैं तो सबसे बेहतर है. 24 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इसके पौधे अच्छे तरीके से विकास करते हैं.

इस तरह की भूमि का करें चयन

चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती के लिए ऐसे भूमि का चयन करें जहां जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था उपयुक्त हो. पौधों के अच्छे विकास के लिए 5.5 से 7 पी एच वाली मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती हैं,

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चने की देसी किस्मों की करें बुवाई

>जी. एन. जी. 2171 (मीरा) :-  इसकी फली में 2 या 2 से अधिक दाने पाए जाते हैं. ये किस्म लगभग 150 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी जाती है.

> जी.एन. जी. 1958 (मरुधर) :- इसके बीज का रंग हल्का भूरा होता है, इसकी फसल 145 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक आंकी गई है.

>जी.एन. जी. 1581 (गणगौर) :- इसके बीज का रंग हल्का पीला होता है. इसकी औसत उपज 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक आंकी गई है.

>आर. वी. जी . 202 :- इस किस्म के पौधे की ऊंचाई दो फीट से भी कम रहती है. इसपर पाले का असर कम पड़ता है. इसकी खेती करने पर आपको एक हेक्टेयर में 22 से 25 क्विंटल तक पैदावार मिलती है.

देसी चने की देरी से बोई जाने वाली किस्म

> जी.एन. जी. 2144 (तीज) :- चने के इस किस्म की बुवाई दिसंबर के पहले सप्ताह तक की जा सकती है. बीज मध्यम आकार के हल्के भूरे रंग का होता है. इसकी फसल 130-135 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मानी गई है.

> जी. एन. जी. 1488 (संगम) :-  इसके बीज भूरे रंग के होते हैं, सतह चिकनी होती है. यह 130 से 135 दिन में पक जाती है. इसकी खेती करने पर 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन मिल जाता है.

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असिंचित क्षेत्र के लिए चने की देसी किस्म

> आर. एस. जी. 888 :- यह औसतन 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन देता है. यह किस्म तकरीबन 141 दिनों के अंदर पक कर तैयार हो जाती है.

काबुली चने की किस्म 

>जी.एन. जी. 1969 (त्रिवेणी) :- इसके दाने का रंग मटमैला सफेद क्रीम रंग का होता है. 146 दिन में यह पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत पैदावार 22 क्विंटल तक पाई जाती है.

>जी. एन. जी. 1499 (गौरी) :- इसके बीज का रंग मटमैला सफेद होता है. इसकी फसल 143 दिन में पककर तैयार हो जाती है. औसत पैदावार 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.

> जी.एन. जी. 1292 :- यह किस्म लगभग 147 दिन में पक जाती है. यह झुलसा, एस्कोकाईटा ब्लाइट, शुष्क जड़गलन आदि रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. इस फसल का औसत उत्पादन 23-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाता है.

कब करें चने की खेती

सिंचित चने की बुवाई 20 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करें. हालांकि, इसके लिए सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक का माना जाता है. प्रति हेक्टेयर तकरीबन 60 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. वहीं, जी.एन. जी. 469 (सम्राट) जैसी किस्मों की बुवाई करने पर 75 से 85 किलो बीजों की आवश्यकता पड़ती है. इसके अलावा काबुली चने की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा 100 किलो रखनी चाहिए.

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कैसे करें चने की खेती

चने की कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. रखें.  सिंचित क्षेत्र में बीज की गहराई 7 से.मी. सबसे उपयुक्त मानी जाती है.  जिन क्षेत्रों में उकसा (विल्ट) प्रकोप है वहां बुवाई गहरी और देरी से करनी चाहिए. चने के खेत मे 15 टन गोबर की खाद या 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट मिला लें. अच्छी पैदावार के लिए 20 किलो नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर खेतों में मिलाएं.

सिंचाई के लिए ये समय उपयुक्त

पौधों को कीटों से बचाने के लिए चने की खेती के दौरान समय-समय पर सिंचाई अवश्य करें. पहली सिंचाई के 55 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करें और तीसरी सिंचाई 100 दिनों में करें.

कीटों से बचाने के लिए करें ये उपाय

प्रथम सिंचाई बिजाई के 55 दिन बाद, द्वितीय सिंचाई 100 दिन बाद करनी चाहिए. लेकिन यदि एक ही सिंचाई करनी हो तो 50-60 दिन बाद करें. हैलीकोवरपा आर्मीगेरा फीरोमॉन कार्ड 10-12 प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं. कम हमला होने पर सुंडी को हाथ से उठाकर बाहर निकाल दें. शुरूआती समय में एच एन पी वी या नीम का अर्क 50 ग्राम प्रति लीटर पानी का प्रयोग करें.


 

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