हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की फंडिंग रोकने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार शिक्षण संस्थानों के पर काटने में लगे हैं. अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) ने कहा कि उसके 9 इंटरनेशनल स्टू़डेंट्स और रिसर्चर्स के वीजा बिना किसी पूर्व चेतावनी या सफाई के रद्द कर दिए गए हैं. इमिग्रेशन को लेकर ट्रंप प्रशासन की ओर से की गई सख्ती के तहत यह कदम उठाया गया है. साथ ही यह कैंपस में एक्टिविज्म पर काबू पाने की भी एक कोशिश है.
अब तक 500 से ज्यादा वीजा रद्द
सीबीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक अमेरिकी सरकार ने 88 कॉलेजों और यूनिवर्सिटी के करीब 530 स्टूडेंट्स, टीचर्स और रिसर्चर्स के वीजा रद्द कर दिए हैं. एमआईटी कम्युनिटी को लिखे एक लेटर में यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट सैली कोर्नब्लथ ने सोमवार को सरकार के हालिया एक्शन पर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि यह कदम से न सिर्फ एमआईटी के संचालन के लिए खतरा है, बल्कि वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने और साइंटिफिक लीडरशिप को बनाए रखने वाली देश की क्षमताओं के लिए भी संकट पैदा करता है.
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कोर्नब्लथ ने लिखा, 'चार अप्रैल से अब तक हमारी कम्युनिटी के 9 सदस्यों, छात्रों, हाल ही में ग्रेजुएट हुए लोगों और पोस्टडॉक्टरेट छात्रों के वीजा रद्द कर दिए गए हैं.' उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की आधिकारिक सूचना न मिलना चिंताजनक है. हालांकि संस्थान एक पीड़ित छात्र की ओर से दायर मुकदमे में सीधे तौर पर शामिल नहीं था, लेकिन उसका कहना है कि वह इसके असर को लेकर बेहद चिंतित है.
फेडरल पॉलिसी में भी बदलाव
कोर्नब्लथ ने कहा कि ये एक्शन एमआईटी के सामान्य कामकाज में बाधा डाल रहे हैं. ये राष्ट्र की सेवा करने और दुनिया की बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करने की हमारी क्षमता को कम करता है.
वीजा रद्द करने के साथ-साथ एक फेडरल पॉलिसी में भी बदलाव हुआ है, जिसके कारण एमआईटी, प्रिंसटन, कैलटेक और इलिनोइस यूनिवर्सटी सहित कई अन्य टॉप यूनिवर्सिटी ने बोस्टन फेडरल कोर्ट में डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी (DOE) के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. इस मुकदमे में प्रशासन के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें रिसर्च कोस्ट रिम्बर्समेंट को 15 फीसदी तक सीमित कर दिया गया है. इस कदम की वजह से रिसर्च में लगे शैक्षणिक संस्थानों को करोड़ों डॉलर का का नुकसान हो सकता है.
सरकारी ग्रांट पर मंडराया खतरा
इस लागत में अहम बुनियादी ढांचे और सेवाएं शामिल हैं जो साइंटिफिक रिसर्च का समर्थन करती हैं लेकिन किसी स्पेशल प्रोजेक्ट से जुड़ी नहीं होती हैं. इनमें सेफ्टी प्रोटोकॉल, सुविधा रखरखाव और डेटा स्टोरेज शामिल है. एमआईटी ने कहा कि उसकी कम्युनिटी के करीब एक हजार सदस्य डीओई ग्रांट पर निर्भर हैं, जिसपर अब खतरा मंडरा रहा है.
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अपने लेटर में कोर्नब्लथ ने कहा कि इस कटौती से अमेरिका के विश्वविद्यालयों में साइंटिफिक रिसर्च खत्म हो जाएगी और लंबे समय से चली आ रही देश की इनोवेशन संभावनाओं को नुकसान पहुंचेगा. डीओई ने 11 अप्रैल को नए कैप का ऐलान करते हुए कहा कि इससे फेडरल रिसर्च खर्च ज्यादा पारदर्शी और बेहतर हो जाएगा.
विश्वविद्यालयों को होगा वित्तीय नुकसान
इस फैसले के खिलाफ विश्वविद्यालयों का कहना है कि यह बदलाव ठीक नहीं है, खासकर तब जब कई विश्वविद्यालय पहले से ही रिम्बर्समेंट रेट पर सहमत हो चुके थे. उदाहरण के लिए मिशिगन यूनिवर्सिटी को इस नए नियम की वजह से 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो सकता है.
हाल के महीनों में यह दूसरी बार है जब विश्वविद्यालयों को इसी तरह की कार्रवाइयों के लिए अदालत में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस साल की शुरुआत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने इसी तरह की फंडिंग कैप लगाई थी, जिसे बाद में अदालत में चुनौती दी गई थी. एक फेडरल जज ने मामले के आगे बढ़ने तक उन कटौतियों को रोकने के लिए एक स्थायी आदेश जारी किया है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर गिरी गाज
अमेरिकी सरकार विश्वविद्यालयों के साथ बातचीत करने और यह सुनिश्चित करने के लिए फंड का इस्तेमाल कर रही है कि वे सरकारी निर्देशों का पालन करें. सरकार की बात न मानने पर फंडिंग पर रोक लग रही है, जैसा कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ हुआ. ट्रंप प्रशासन ने सोमवार को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को दी जाने वाली करीब 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग रोक दी, क्योंकि आइवी लीग स्कूल ने कैंपस में एक्टिविज्म को कंट्रोल करने जैसी व्हाइट हाउस की मांगों की लिस्ट को मानने से इनकार कर दिया था.
यहूदी विरोधी भावना से निपटने के लिए बनाई गई टास्क फोर्स के मुताबिक इस रोक में 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की ग्रांट और 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फेडरल कॉन्ट्रैक्ट शामिल है.