अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा पीस प्लान की घोषणा करते हुए कहा कि इस प्लान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर का 100 फीसदी सपोर्ट हासिल है. उन्होंने कहा कि दोनों नेता "शुरू से ही हमारे साथ थे. ट्रंप के इस बयान से पाकिस्तान को एक बार फिर से गलतफहमी हो गई है. पाकिस्तान को लगता है कि इंटरनेशनल लेवल पर चौधराहट दिखाने का बड़ा मौका उसके पास है. इसलिए पाकिस्तान में अब ये चर्चा हो रही है कि गाजा में जिस इंटरनेशनल स्टेबलाइजेन फोर्स की तैनाती होने जा रही है क्या पाकिस्तान की सेना उसका हिस्सा बनेगी?
बता दें कि ट्रंप ने गाजा के लिए जिस शांति प्लान की रुप रेखा तैयार की है. उसके तहत गाजा में 72 घंटे में जंग की समाप्ति, बंधकों की वापसी, युद्ध से जुड़े हथियारों का सरेंडर, गाजा में शांति सैनिकों तैनाती और युद्ध से ध्वस्त हो चुके इस शहर का पुनर्निर्माण शामलि है.
गाजा पीस प्लान के ऐलान से पहले पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने वाशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की थी.
आठ मुस्लिम देशों पाकिस्तान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, तुर्की, कतर, मिस्र और जॉर्डन के विदेश मंत्रियों ने ट्रंप की 20-सूत्रीय गाजा शांति योजना का समर्थन किया है. इन देशों ने समझौते को अंतिम रूप देने और लागू करने के लिए वाशिंगटन और सभी पक्षों के साथ रचनात्मक सहयोग का वादा किया है.
बता दें कि ट्रंप ने पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र से इतर न्यूयॉर्क में एक बैठक के दौरान मुस्लिम नेताओं के साथ इस प्रस्ताव पर चर्चा की थी.
सोमवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान अपने सैनिकों को पीस कीपिंग फोर्स के बैनर तले गाजा भेजेगा?
इसके जवाब में इशाक डार ने कहा कि पाकिस्तान का शीर्ष नेतृत्व क्षेत्र में रक्तपात को समाप्त करने के लिए हाल ही में घोषित शांति समझौते के तहत गाजा में मुस्लिम राष्ट्रों की शांति सेना के हिस्से के रूप में सैनिकों की तैनाती पर निर्णय लेगा.
इशाक डार ने एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, "गाजा शांति योजना में फ़िलीस्तीन में एक शांति सेना तैनात करने की परिकल्पना की गई है."
बता दें कि इंडोनेशिया ने शांति प्लान के तहत अपने 20 हजार सैनिकों को भेजने का वादा किया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा कि गाजा में रहने वाली सेना एक शांति सेना होगी, लेकिन लॉ एंड ऑर्डर का कामकाज फिलीस्तीनी एजेंसियां देखेंगी. इंडोनेशिया ने इसके लिए 20,000 सैनिकों की पेशकश की है. मुझे यकीन है कि पाकिस्तान का नेतृत्व भी इस पर फैसला लेगा.
पहले ट्रंप के प्लान का किया स्वागत, अब पीछे हटा पाकिस्तान
पाकिस्तान ने पहले तो इस प्लान का स्वागत किया, लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरानों को इसके लिए अपने ही देशवासियों ने खरी-खोटी सुनाई. बता दें कि पाकिस्तान इजरायल के वजूद को स्वीकार करता ही नहीं है. लेकिन ट्रंप के इस प्लान को मानने का मतलब है कि इजरायल के अस्तित्व को ही मानना. यहूदी विरोध पर पनपे पाकिस्तान जैसे राष्ट्र के लिए ये एक बड़ा वैचारिक बदलाव है.
इसलिए जैसे ही शहबाज शरीफ ने ट्रंप के इस प्लान का समर्थन किया, पाकिस्तान में ही लोग उसे खरी खोटी सुनाने लगे. लोगों ने कहा कि शहबाज शरीफ ट्रंप को खुश करने के लिए ऐसा बयान दे रहा है.
इजरायल को नहीं मानता था जिन्ना?
पाकिस्तान का संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इजरायल के निर्माण का कड़ा विरोध किया था. 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन विभाजन योजना को मंजूरी दी तो जिन्ना ने इसे "अन्यायपूर्ण" और "फिलिस्तीनी अरबों के अधिकारों का उल्लंघन" करार दिया. उन्होंने तर्क दिया कि यह योजना ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीतियों का परिणाम थी और मुस्लिम दुनिया के हितों के खिलाफ थी.
Imran Khan said:
— S̷p̷a̷r̷t̷a̷c̷u̷s̷،̷ ̷س̷پ̷ا̷ر̷ٹ̷ا̷ک̷س̷ (@ThePatriiott) September 30, 2025
"My stance on Israel is the same as that of the Quaid-e-Azam (Muhammad Ali Jinnah)."
Shehbaz Sharif said:
"My stance on Israel is the same as that of Donald Trump."
Know the difference and live!
This “NOTUNKY” was brought in solely to legitimize Israel, pic.twitter.com/5vhi0xdGDN
जिन्ना ने फीलिस्तीन के अरबों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की वकालत की. उनकी यह नीति पाकिस्तान की प्रारंभिक विदेश नीति को आकार देती रही. यही वजह है कि पाकिस्तान ने अबतक इजरायल को मान्यता नहीं दी है.
एक्स पर एक पाकिस्तानी यूजर ने कहा, "फीलिस्तीन के साथ कभी विश्वासघात नहीं किया जाएगा, न ही हम अपने देश से किसी भी तरह का विश्वासघात होने देंगे. हम प्रधानमंत्री द्वारा ट्रंप की घृणित तथाकथित गाजा शांति योजना का समर्थन करने को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं."
एक दूसरे पाकिस्तान यूजर ने कहा कि आप गाजा के हथियार को कैसे छीन सकते हैं, जबकि 70,000 नागरिकों की मौत के बाद भी इजरायल सुरक्षा घेरा बनाए हुए है?
होम ग्राउंड पर आलोचना झेलने के बाद पाकिस्तान की सरकार तुरंत पलट गई. इशार डार ने कहा कि "यह हमारा दस्तावेज नहीं है, यह अमेरिकी दस्तावेज है."
अब पाकिस्तान ने इस योजना में कुछ "महत्वपूर्ण बिंदु" गायब बताए हैं, जैसे 1967 की सीमाओं के आधार पर फीलिस्तीनी राज्य की स्थापना, वेस्ट बैंक की सुरक्षा और इजरायल की ओर से एकतरफा कार्रवाइयों का अंत.
अरब देशों में पाकिस्तान ने कब कब अपनी सेना भेजी है?
गाजा में पाकिस्तान ने अब तक अपनी सेना नहीं भेजी है, लेकिन 1960 के दशक से ही पाकिस्तान की सेना सऊदी समेत कुछ अन्य खाड़ी देशों में मौजूद रही है. पाकिस्तान की सेनाओं ने यहां ट्रेनिंग, सलाहकार, सुरक्षा सहायता और युद्धकालीन समर्थन की जिम्मेदारी ली है. ये तैनातियां पाकिस्तान की विदेश नीति का हिस्सा रही हैं, जो अरब देशों को सैन्य क्षमता विकसित करने में मदद करती हैं.
पाकिस्तान ने पहली बार 1960 के दशक में अपने सैनिकों को सऊदी सीमाओं की रक्षा के लिए भेजा. ये वो दौर था जब मिस्र ने यमन युद्ध शुरू किया था. इस दौरान पाकिस्तानी वायु सेना के पायलटों ने सऊदी वायु सेना को प्रशिक्षण दिया और लगभग 20,000 सैनिक तैनात किए.
1969 में सऊदी अरब के अल-वादीह युद्ध में पाकिस्तानी मिलिट्री इंजीनियरों ने यमन सीमा पर किले बनाए. वायु सेना के पायलटों ने सऊदी विमानों को उड़ाया.
1973 के योम किप्पुर युद्ध में पाकिस्तान के सैनिक मिस्र और सीरिया गए. पाकिस्तानी वायु ब्रिगेड को दमिश्क की रक्षा के लिए तैयार किया गया और पाकिस्तान ने हथियारों की आपूर्ति भी की.
1979 में जब चरमपंथियों ने सऊदी अरब के मक्का में ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा कर लिया तो पाकिस्तान ने स्पेशल फोर्सेज को विद्रोहियों को हटाने में सहायता के लिए भेजा.