कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के संबंधों में जारी तनातनी के बीच जमीयत उलेमा इस्लाम पार्टी के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने शहबाज शरीफ सरकार को आड़े हाथों लिया है.
भारत की ओर से संभावित सैन्य कार्रवाई के बीच पाकिस्तान की सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया था. लेकिन मौलाना फजलुर रहमान ने यह कहते हुए सत्र का बहिष्कार कर दिया कि सरकार बिल्कुल भी गंभीर नहीं है. उन्होंने कहा कि हम भारत के साथ युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं लेकिन शहबाज शरीफ सरकार बिल्कुल भी गंभीर नहीं है.
इससे पहले फजलुर रहमान ने इस्लामाबाद में अपने भाषण के दौरान कहा था कि हम कश्मीर की बात करते हैं. लेकिन हमें कश्मीर के मसले से पहले अफगानिस्तान के हवाले से सोचना होगा. हमें सोचना होगा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते बेहतर क्यों नहीं बनाए? ये बात याद रखें कि अफगानिस्तान में जाहिर शाह से लेकर अशरफ गनी तक जितनी भी सरकारें आईं, सभी प्रो-इंडियन सरकारें थीं.
रहमान ने कहा था कि एक अमारत-ए-इस्लामी की हुकूमत है जिसे हम सियासी कामयाबी के साथ प्रो-पाकिस्तानी बनाने में कामयाब हो सकते थे. अगर हम सियासत जानते तो आज अफगानिस्तान को प्रो-पाकिस्तान अफगानिस्तान होना चाहिए था. लेकिन हम इन्हें भी धकेल रहे हैं. हम अपने मामलातों को सुलझाने के बजाए और उलझाते जा रहे हैं.
उन्होंने कहा था कि बॉर्डर पर दोनों तरफ माल से लदी हुई गाड़ियों की लंबी कतारें हैं और अवाम का माल बर्बाद हो रहा है. ये गलत पॉलिसियां तब तक बनती रहेंगी जब तक फौजी सोच के साथ सियासी और इकोनॉमिक सोच शामिल नहीं होगी. इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश और चीन की अर्थव्यवस्था ऊपर जा रही है. लेकिन इन सब मुल्कों के बीच में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डाउन हो रही है.