पिछले कुछ समय से इजरायल और लेबनान के बीच युद्ध और भीषण हो रहा है. ऐसे में हजारों की तादाद में लोग लेबनान छोड़कर जा रहे हैं. चाहे वो लेबनान के निवासी हों या दूसरे देशों से आए लोग, सभी लेबनान से निकल रहे हैं. इस बीच दुनियाभर की अधिकतर उड़ानों ने बेरूत के लिए अपनी फ्लाइट्स रद्द कर दी है. सिर्फ लेबनान की अपनी एयरलाइन मिडिल ईस्ट एयरलाइन का संचालन जारी है. लेकिन लेबनान छोड़कर जाने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि मिडिल ईस्ट एयरलाइन लोगों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही है. आजतक लगातार ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट कर रहा है.
बता दें कि बेरूत की शिप पोर्ट लंबे समय से बंद पड़ी है, लेकिन लेबनान से लोगों को निकालने के लिए यह पोर्ट अब शुरू हो गई है. सीरिया के लोगों को भी लेबनान से निकालने के लिए समुद्री जहाज की मदद ली जा रही है. लोगों की तादाद इतनी ज्यादा है कि कुछ लोग समुंद्र के रास्ते तो कुछ लोग फ्लाइट के जरिए बेरूत छोड़ रहे हैं.
बेरूत का नाइटक्लब अब विस्थापित लोगों का बना आश्रय
लेबनान में इजरायली बमबारी से प्रभावित परिवारों ने राजधानी बेरूत के एक मशहूर नाइटक्लब को अपना आश्रय बना लिया है. स्काईबार नाम के इस नाइट क्लब में जहां पहले डांस-पार्टियां हुआ करती थी अब उसे युद्ध में बेघर हुए लोगों के लिए शरणार्थी केंद्र बना दिया गया है. लेबनानी शासन के मुताबिक, 23 सितंबर के बाद से करीब 12 लाख लोग विस्थापित हो गए हैं.
हालांकि, देशभर में 973 शर्णार्थी केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें लगभग 180,000 लोग रह रहे हैं, लेकिन ये सभी पहले से ही भरे हुए हैं. कुछ परिवार होटल या किराए के मकानों में रहने का खर्च उठा सकते हैं, लेकिन अन्य लोग खाली भवनों में शरण ले रहे हैं या फिर अपनी गाड़ियों और पार्कों में रहने को मजूबर हैं.
क्लब के मालिक ने दी शरण
बेरूत के आलीशान वाटरफ्रंट क्षेत्र में स्थित 'स्किन' और उसका स्काईबार कभी पार्टी प्रेमियों से भरा रहता था, लेकिन जैसे ही लोग इसके आसपास में गाड़ियों में रात बिताने लगे और फुटपाथ पर रहने लगे, तो क्लब के मालिकों ने उन्हें शरण दे दी.
यहां का डांस फ्लोर अब बच्चों का खेल का मैदान बन चुका है, और वीआईपी केबिन्स में परिवार रह रहे हैं. यहां के बार में अभी भी वाइन के ग्लास सजे हुए हैं और एनजीओ द्वारा उनके लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है. विस्थापित यहां के शॉवर्स और शौचालयों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
लोग सड़कों पर रहने को मजबूर
इसके महज दो किलोमीटर की दूरी पर, कई लोग अभी भी सड़कों पर सोने को मजबूर हैं. आजतक ने पहले भी बेरूत का वो नजारा दिखाया था, जहां कई किलोमीटर की दूरी में फुटपाथ पर लोगों ने आश्रय लिया हुआ था.