पाकिस्तान में लाहौर हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि इस्लामिक देश में किसी व्यक्ति को 'जिहाद' की खातिर धन जुटाने के लिए जनता को उकसाने की अनुमति नहीं है. इसे बगावत यानी देशद्रोह माना जाएगा. अदालत ने ये फैसला प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लिए धन जुटाने के लिए दोषी ठहराए गए दो लोगों की अपील को खारिज करते सुनाया है.
न्यायमूर्ति अली बकर नजफी की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'अगर बेहद जरूरी हुआ तो किसी घोषित युद्ध के लिए लोगों से फंड लेने का काम बस देश ही कर सकता है. किसी संगठन द्वारा निजी रूप से फंड जमा नहीं किया जा सकता.'
सरगोधा की एक आतंकवाद-रोधी अदालत ने जनवरी 2021 में अपीलकर्ताओं- मुहम्मद इब्राहिम और उबैदुर रहमान को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई थी.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस ने एक गुप्त सूचना के आधार पर इब्राहिम को गिरफ्तार किया था. उसके पास से 136 पर्चे, TTP की सदस्यता की दो नई किताबें और नकदी बरामद की गई थी. वहीं रहमान के पास से अन्य सामग्रियों के अलावा जिहाद के लिए दान किए गए फंड की रसीद बरामद हुई थी.
आरोपियों के वकील ने तर्क दिया कि न तो किसी फंड देने वाले को और न ही फंड लेने वाले किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है. वकीलों का कहना था कि TTP का कोई मेंबरशिप कार्ड भी दोनों के पास से बरामद नहीं हुआ है. ऐसे में दोनों की सजा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.
लेकिन फैसला करने वाले न्यायमूर्ति नजफी ने सभी दलीलों को खारिज कर दिया. उन्होंने जब्त किए गए पर्चे का निरीक्षण करने के बाद कहा कि TTP एक प्रतिबंधित संगठन है और ये एक तथ्य है कि इसने न केवल सरकारी संस्थाओं को नुकसान पहुंचाया है बल्कि उच्च अधिकारियों को भी अपना निशाना बनाया है.
आतंकवादी संगठन ने पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों को भी तेज किया है और ये सब बिना किसी आर्थिक मदद के संभव नहीं है. न्यायमूर्ति नजफी का कहना है कि अभियोजन पक्ष ने संदेह के आधार पर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष सबूतों के आधार पर अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामले को साबित किया है.