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कोई भी मुस्लिम देश ईरान के साथ क्यों नहीं खड़ा, क्या अब खामेनेई रिजीम के लिए बचने का कोई रास्ता है?

ईरान और इजरायल के बीच जारी संघर्ष में इजरायल को अमेरिका और पश्चिम से तो खूब समर्थन मिल रहा है लेकिन ईरान को मुस्लिम देशों से समर्थन वाले बयानों के अलावा कुछ नहीं मिल रहा. मुस्लिम देश खुलकर ईरान का साथ नहीं दे रहे हैं और बस बयान जारी करके खानापूर्ति कर रहे हैं.

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ईरान-इजरायल संघर्ष में अधिकांश मुस्लिम देश चुप हैं (Photo-AP)
ईरान-इजरायल संघर्ष में अधिकांश मुस्लिम देश चुप हैं (Photo-AP)

इजरायल ने जब ईरान पर बीते हफ्ते गुरुवार रात को हमला किया तब दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देशों ने इसकी निंदा की. सऊदी अरब ने ईरान को अपना भाई बताते हुए कहा कि इजरायल का हमला ईरान की संप्रभुता और सुरक्षा को कमजोर करता है और यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है. तुर्की ने भी हमले की निंदा करते हुए बस इतना कहा कि इजरायल पूरे क्षेत्र को युद्ध में धकेलना चाहता है और मध्य-पूर्व एक और युद्ध नहीं झेल सकता है.

इसी तरह ईरान के पड़ोसी मुस्लिम देशों मिस्र, लेबनान और इराक जैसे देशों ने भी इजरायली हमले की निंदा की लेकिन इजरायल के खिलाफ कोई खुलकर ईरान के साथ नहीं आया है. मुस्लिम देशों के संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन ने भी इस संघर्ष पर कोई बयान नहीं जारी किया है.

इजरायल के खिलाफ मुस्लिम देशों को एकजुट करने की कोशिश में पाकिस्तान

ईरान पर इजरायली हमले की निंदा करते हुए पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों के आग्रह किया है कि वो एकजुट होकर ईरान का साथ दें. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने सोमवार को ही कहा कि उनका देश दुनिया के मुस्लिम देशों को ईरान के समर्थन में एकजुट करने की कोशिश कर रहा है ताकि शांति कायम हो सके.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी बुधवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि ईरान और इजरायल के बीच तुरंत सीजफायर होना चाहिए नहीं तो क्षेत्र की बिगड़ती स्थिति न केवल मध्य-पूर्व के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए घातक साबित होगी.

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एक तरफ पाकिस्तान ईरान के लिए समर्थन दिखा रहा है और पूरी दुनिया के मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एक होने के लिए कह रहा है तो वहीं, दूसरी तरफ उसके सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर इजरायल के सबसे बड़े समर्थक और सहयोगी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मिल रहे हैं.

इससे साफ पता चलता है कि पाकिस्तान किस हद तक ईरान के साथ खड़ा है.

21 मुस्लिम देशों ने मिलकर की ईरान पर इजरायली हमले की निंदा 

मंगलवार को 21 मुस्लिम देशों ने एक बयान जारी ईरान पर इजरायल के हमले की निंदा की. निंदा प्रस्ताव में इन देशों ने मांग की कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले रोके जाएं, अंतरराष्ट्रीय नियम-कानून का सम्मान हो और विवादों के निपटान के लिए कूटनीति का रास्ता चुना जाए. बयान जारी करने वाले देशों में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत तुर्की, मिस्र, ओमान, कतर, कुवैत, सूडान, सोमालिया, पाकिस्तान, ब्रुनेई, चाड, बहरीन, जिबूती, लीबिया, अल्जीरिया जैसे देश शामिल हैं. 

मुस्लिम देशों ने बयान जारी कर इजरायल की निंदा तो कर दी लेकिन कोई भी खुलकर ईरान के साथ नहीं आया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मुस्लिम देश ईरान के साथ होने का दिखावा कर रहे हैं और अगर कुछ देश चाहें भी तो मदद नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनके पास उतनी क्षमता नहीं है. मुस्लिम देशों को इस बात का भी डर है कि अगर वो ईरान के साथ आते हैं तो अमेरिका और इजरायल से उनकी दुश्मनी हो जाएगी जो किसी भी तरह से उनके हित में नहीं है.

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जर्मन ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से बात करते हुए मध्यपूर्व मामलों के जानकार फज्जुर रहमान कहते हैं, 'इन देशों में इतना साहस नहीं है कि वो सीधे इजरायल को चुनौती दें. उनके बयान सुनिए, लेकिन वो कोई कदम उठाएंगे, भूल जाइए. यह सिर्फ अपना चेहरा बचाने की कोशिश है. ये देश दिखाना चाहते हैं कि दुनिया में वो भी रहते हैं और इस तरह के मुद्दों पर बोल सकते हैं.'

शिया-सुन्नी विवाद भी एक बड़ा मसला

ईरान एक शिया बहुल देश है और दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश सुन्नी मुसलमान हैं. शिया-सु्न्नी मुद्दे को लेकर ही ईरान की सऊदी अरब से ऐतिहासिक दुश्मनी रही है. दोनों देशों ने इसी तरह के विवाद के चलते 2016 में अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिए थे. लेकिन चीन की मदद से मार्च 2023 में दोनों देशों ने सामान्यीकरण समझौता किया था. सऊदी अरब ने भले ही ईरान से दोस्ती कर ली लेकिन वो पुरानी दुश्मनी भुला नहीं है.

फज्जुर रहमान कहते हैं, 'सऊदी अरब ने भले ही दिखावे की दोस्ती कर ली है लेकिन वो अपनी दुश्मनी भूल जाएगा यह सोचना गलत होगा. सबसे बड़ी बात है कि ईरान की मदद करने मुस्लिम देशों को क्या मिलेगा, उल्टे इजरायल और अमेरिका की दुश्मनी गले पड़ जाएगी.'

श्रीलंका गार्डियन के विदेश मामलों के एडिटर ने एक लेख में कहा है कि मुस्लिम देशों ने बार-बार पश्चिमी देशों के हित में एक-दूसरे को धोखा दिया है और इससे नुकसान उनका खुद का ही हुआ है.

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लेख में 2003 में इराक में अमेरिकी हमलों का जिक्र है जिसमें कहा गया है कि इराक के पड़ोसी मुल्कों के एयरबेस, लॉजिस्टिक्स और चुप्पी के बिना अमेरिका इराक का वो हाल नहीं कर पाता. सऊदी अरब, जॉर्डन और कतर ने अमेरिका की मदद की जिसने इराक को बर्बाद कर दिया.

लेख में लिखा गया, 'इराक जो कि सबसे आधुनिक अरब देश हुआ करता था, उसे मुस्लिम देशों की ही मदद से अमेरिका ने विदेशी सैनिकों और प्रॉक्सी समूहों की लड़ाई का मैदान बना दिया.'

खामेनेई के शासन पर खतरा

इजरायल ने ईरान पर किए गए हमलों में उसके शीर्ष सैन्य कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी है. इजरायल ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई की भी हत्या करना चाहता था लेकिन अमेरिका ने उसे रोक दिया. एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया था कि अब तक ईरानियों ने एक भी अमेरिकी को नहीं मारा है इसलिए अमेरिका भी ईरान के राजनीतिक नेतृत्व को निशाना नहीं बनाएगा.

इसके बाद फॉक्स न्यूज से बात करते हुए इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संकेत दिया था कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो सकता है. 

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि अब ईरान के साथ बातचीत करने में बहुत देरी हो चुकी है और उनकी धैर्य जवाब दे चुका है. ट्रंप ने कहा है कि अगले हफ्ते में कुछ बड़ा होने वाला है. ऐसे में इस बात की आशंका जताई जाने लगी है कि ईरान में खामेनेई का तख्तापलट हो सकता है.

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फज्जुर रहमान कहते हैं कि ईरान को अब अमेरिका और इजरायल ही बचा सकते हैं. 

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