
कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित किए जाने से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा हुआ है. इसी नदी के पानी पर पाकिस्तान के करोड़ों किसान और आम लोग निर्भर थे. अब जल प्रवाह को नियंत्रित और रोके जाने के बाद सिंधु नदी पर निर्भर पाकिस्तान के करोड़ों किसानों में डर का माहौल है. भारत की प्रतिक्रिया से पड़ोसी मुल्क में खेती, पीने के पानी और पावर क्राइसिस की आशंका बढ़ रही है.
सिंधु नदी के किनारे अपने खेत में सूखती सब्जियों को देखकर एक किसान होमला ठाकुर भी अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं. चिलचिलाती धूप के बीच नदी का जल स्तर तेजी से घट रहा है. भारत द्वारा जल प्रवाह रोकने के ऐलान के बाद उनकी चिंता और बढ़ गई है.
किसान कहते हैं, "अगर वे (भारत) पानी रोक देगा तो यह सब थार के रेगिस्तान में बदल जाएगा, पूरा देश बर्बाद हो जाएगा." उन्होंने कहा, "हम भूख से मर जाएंगे." होमला ठाकुर का खेत दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिंध के लतीफाबाद क्षेत्र में है, जहां से सिंधु नदी बहती हुई अरब सागर में मिलती है. यह नदी तिब्बत से निकलती है और भारत होते हुए पाकिस्तान पहुंचती है.
सिर्फ खेती नहीं, पीने के पानी की भी होगी किल्लत!
पाकिस्तान के लोकल एक्सपर्ट और अन्य किसान भी मानते हैं कि अगर भारत की तरफ से जल प्रवाह को रोका जाता है, तो इससे बड़ी मुश्किलें पैदा होंगी - जहां बारिश में कमी और बदलते मौसम के बीच खेती पहले से ही प्रभावित है.

सिंध के ही एक अन्य किसान नदीम शाह, अपने खेतों में कपास, गेहूं और सब्जियां उगाते हैं. नदीम कहते हैं कि जल प्रवाह रोके जाने से सिर्फ खेती ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि पीने के पानी की भी किल्लत हो जाएगी. उन्होंने कहा, "हमें अल्लाह पर भरोसा है, लेकिन भारत के कदमों को लेकर चिंता है."
कराची स्थित पाकिस्तान एग्रीकल्चर रिसर्च के घशरीब शौकत कहते हैं कि भारत की कार्रवाई से एक ऐसे सिस्टम में अनिश्चितता आ गई है, जो स्थिरता के लिए बनाया गया था. उनका कहना है, "इस समय हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. ये नदियां सिर्फ फसलों को नहीं, बल्कि शहरों, बिजली उत्पादन और करोड़ों लोगों की आजीविका का सहारा हैं."
वर्ल्ड बैंक ने भारत के फैसले पर प्रतिक्रिया देने से किया परहेज
पहलगाम में आतंकियों द्वारा पर्यटकों पर हमले किए जाने के बाद भारत ने पांच-सूत्रीय रणनीतिक फैसले लिए थे, और इसी दौरान सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया गया था. वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता के साथ 1960 में सिंधु के जल पर समझौता हुआ था, जिसपर पाकिस्तान की 80% खेती निर्भर है.
भारत के हालिया फैसले पर वर्ल्ड बैंक भी स्पष्ट कर चुका है कि उसकी मध्यस्थता के दौरान कुछ समय के लिए संस्थान सिग्नेटरी रहा है, लेकिन अब ये दो मुल्कों के बीच का मामला है. वर्ल्ड बैंक के प्रवक्ता ने भारत के फैसले पर कुछ प्रतिक्रिया देने से भी परहेज किया.
पानी रोकना भारत के लिए फिलहाल मुश्किल!
भारत ने स्पष्ट किया था कि यह निलंबन तब तक जारी रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना पूरी तरह से नहीं छोड़ देता. मसलन, भारतीय एजेंसियों द्वारा की गई अब तक जांच में पता चला कि पर्यटकों पर हमला करने वाले तीन आतंकियों में दो पाकिस्तान के थे. हालांकि, पाकिस्तान ने इन आरोपो को खारिज किया और जांच में सहयोग की बात कही है.

इससे पहले संधि के निलंबन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने "एक्ट ऑफ वॉर" बताया था. हालांकि, भारत नदी के प्रवाह को रोकने की तमाम कोशिशें कर रहा है, जबकि पूरी तौर पर पानी को रोका जाना, एक्सपर्ट कहते हैं कि फिलहाल मुश्किल है, लेकिन आने वाले महीनों में इसके प्रभाव देखने को मिल सकते हैं.
सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान को तत्काल क्या नुकसान होगा?
भारत डैम बनाने की योजनाओं पर भी काम कर रहा है, जिन्हें पूरा होने में कुछ सालों का वक्त लग सकता है. सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद भारत पाकिस्तान को जल प्रवाह का डेटा शेयर करना बंद कर देगा, और इससे संबंधित वार्षिंक मीटिंग भी नहीं करेगा. रॉयटर्स के मुताबिक, यह जानकारी भारत के केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा ने दी, जो पहले भारत के सिंधु आयुक्त भी रह चुके हैं.
पाकिस्तान को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि नदी में कब, कितने पानी का प्रवाह हो रहा है, और इस जानकारी के अभाव में वे कुछ योजनाएं भी नहीं बना सकेंगे. जैसे कि अगर नदी में अचानक जल प्रवाह बढ़ जाता है, और ओवरफ्लो जैसी स्थिति पैदा हो जाती है, तो इसका खामियाजा पाकिस्तानी नागरिकों को बाढ़ के रूप में भुगतना पड़ सकता है.
मसलन, जल प्रवाह रोके जाने से पाकिस्तान में सिर्फ खेती ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि बिजली उत्पादन भी प्रभावित होगी - जिसका सीधा असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. इस बीच पाकिस्तान के मंत्री बिलावल भुट्टो स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान पीढ़ियों से संघर्षों में फंसा है और सिंधु जल संधि के निलंबन से आने वाली पीढ़ियां भी उसी संघर्ष में जाती नजर आ रही हैं - उनका कहना है, "ऐसा नहीं होना चाहिए."