लेबनान की सरकार ने ईरान समर्थित समूह हिज्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का फैसला किया है जिसे लेकर लेबनानी समूह बेहद नाराज हुआ है. हिज्बुल्लाह ने सरकार के इस फैसले की निंदा की और इस कदम को 'घोर पाप' बताया है. समूह ने लेबनान की सरकार पर आरोप लगाया है कि इजरायली हितों की पूर्ति के लिए अमेरिकी दबाव में काम किया जा रहा है. इसके साथ ही हिज्बुल्लाह ने हथियार डालने से साफ इनकार किया है और इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है.
हिज्बुल्लाह ने कल एक बयान में कहा, 'हम इस फैसले को ऐसे लेंगे जैसे इसका कोई अस्तित्व ही न हो.' समूह ने लेबनानी सरकार के निरस्त्रीकरण प्लान की वैधता को खारिज करते हुए चेतावनी दी कि इजरायली आक्रमण लगातार जारी है और अगर ऐसे में ऐसा प्लान लाया जाएगा तो लेबनान कमजोर होगा.
हिज्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का लेबनान का विवादित फैसला ऐसे वक्त में आया है जब उस पर अपने क्षेत्र में हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण की अंतरराष्ट्रीय मांग तेज होती जा रही है. दबाव के बीच लेबनानी कैबिनेट ने 5 अगस्त को देश की सेना को एक प्लान तैयार करने का निर्देश दिया है जिसके तहत साल के अंत तक सभी हथियारों को राज्य के नियंत्रण में रखा जाएगा.
लेबनान के प्रधानमंत्री नवाफ सलाम ने कहा कि यह प्लान अगस्त के अंत तक कैबिनेट की चर्चा और अप्रूवल के लिए तैयार होनी चाहिए.
लेबनान सरकार का हालिया कदम अक्टूबर 2023 में हुई घटना का नतीजा है जब हमास ने इजरायल पर हमला कर कम से कम 1,200 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया था. इसके बाद इजरायल ने जो प्रतिक्रिया दी वो विनाशकारी साबित हुई जिसमें फिलिस्तीनियों का शहर गाजा लगभग तबाह हो गया है. गाजा पर इजरायली हमले अब भी जारी हैं.
पिछले साल हमास के समर्थन में हिज्बुल्लाह भी इजरायल के खिलाफ संघर्ष में शामिल हो गया. लेकिन हिज्बुल्लाह के लिए यह एक खतरनाक कदम साबित हुआ. इजरायल ने एक सैन्य और खुफिया अभियान के साथ जवाब दिया जिसने हिज्बुल्लाह को हैरानी में डाल दिया. 5,000 से अधिक हिज्बुल्लाह लड़ाके और वरिष्ठ कमांडर मारे गए.
और सबसे बड़ा झटका तब लगा जब इजरायल ने हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह को भी एक बमबारी में मार डाला. अमेरिका इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच एक युद्धविराम कराने में कामयाब रहा लेकिन इजरायल अब भी दक्षिणी लेबनान में हिज्बुल्लाह के ठिकानों को निशाना बनाता रहा है.
इजरायल के साथ युद्धविराम समझौते के तहत लेबनान ने हथियारों को देश के छह सुरक्षा बलों तक सीमित रखने, अनधिकृत हथियारों को जब्त करने और गैर-सरकारी तत्वों के पुनः शस्त्रीकरण को रोकने का वचन दिया था. तब से, लेबनान पर अमेरिका लगातार राजनयिक दबाव डाल रहा है कि वो हिज्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण शुरू करे.
जून में, अमेरिकी दूत थॉमस बैरक ने लेबनानी अधिकारियों के सामने एक रोडमैप प्रस्तुत किया था जिसमें कहा गया कि इजरायली सेना दक्षिणी लेबनान के पांच विवादित ठिकानों से पीछे हटे और लेबनान पर हवाई हमले इसलिए रोके हैं ताकि लेबनान की सरकार हिज्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण करे.
दिसंबर में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को अपदस्थ कर दिया गया था और समूह के स्पॉन्सर ईरान पर जून में इजरायल ने हमला कर उसे कमजोर कर दिया. इस वजह से हिज्बुल्लाह का मुख्य सप्लाई का रास्ता बंद हो गया है और हिज्बुल्लाह कमजोर पड़ता जा रहा है. इसी वजह से इस प्रस्ताव को और बल मिला है.
हिज्बुल्लाह और उसके शिया सहयोगी, संसद अध्यक्ष नबीह बेरी के नेतृत्व वाला अमल मूवमेंट का कहना है कि निरस्त्रीकरण पर तभी विचार किया जा सकता है जब इजरायल लेबनानी क्षेत्र से हट जाए और अपने सैन्य अभियान बंद कर दे.
एक बयान में, हिज्बुल्लाह ने कहा कि वो बातचीत के लिए खुला है लेकिन ऐसी बातचीत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के ढांचे के भीतर होनी चाहिए, न कि इजरायली आक्रामकता की स्थिति में.
हिज्बुल्लाह का तर्क है कि अमेरिका के हुक्म से लेबनान सरकार योजना लेकर आई है जो इजरायली खतरे का समाधान नहीं करेगी और इससे लेबनान असुरक्षित हो गया है. 5 अगस्त को कैबिनेट बैठक के दौरान बोलते हुए, हिज्बुल्लाह के उप नेता नईम कासिम ने कहा कि इजरायली आक्रमण जब तक जारी रहेगा, निरस्त्रीकरण पर चर्चा नहीं होगी.
हिज्बुल्लाह का ये भी कहना है कि इजरायली नियंत्रण वाले लेबनानी क्षेत्र को मुक्त किया जाए और लेबनानी बंदियों को वापस किया जाए.
इजरायल ने हमले के वक्त हिज्बुल्लाह को बुरी तरह से कुचल दिया था, फिर भी हिज्बुल्लाह लेबनान में, खासकर शिया समुदाय के बीच एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बना हुआ है. यह कई सामाजिक सेवाएं चलाता है और राजनीतिक रूप से भी यह काफी मजबूत माना जाता है.