अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 70 से ज्यादा देशों को रेसिप्रोकल टैरिफ से 90 दिनों की छूट दे दी है. लेकिन चीन को इस दायरे से बाहर रखा गया है. चीन पर 125 फीसदी का भारी-भरकम टैरिफ लगाया गया है, जिसे लेकर दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि ट्रंप के इस टैरिफ बम के आइडिया के पीछे कौन है?
यूं तो ट्रंप शुरुआत से ही टैरिफ के हिमायती रहे हैं. उनका मानना है कि सदियों से दुनियाभर के देशों ने उन्हें जमकर लूटा है. लेकिन अब अमेरिका और लूटने वाला नहीं है.
चीन के विरोधी और टैरिफ के आर्किटेक्ट हैं नैवारो
इनमें सबसे बड़ा नाम है पीटर नैवारो का. वह आर्थिक मामलों में डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार हैं. इन दिनों उनका नाम दुनियाभर में चर्चा में बना हुआ है. एलॉन मस्क के साथ टैरिफ को लेकर उनका विवाद सुर्खियां बटोर रहा है.
नैवारो को चीन का सबसे बड़ा आलोचक माना जाता है. वह 2006 में China Wars और 2011 में Death by China नाम से दो किताबें भी लिख चुके हैं. इन किताबों में उनके चीन विरोधी विचारों को साफ समझा जा सकता है. नैवारो 2017 से2021 तक व्हाइट हाउस में नेशनल ट्रेड काउंसिल के डायरेक्टर पद पर रह चुके हैं. वह ट्रंप के America's First पॉलिसी के कट्टर समर्थक हैं.
पीटर नैवारो को ट्रंप की टैरिफ नीतियों का आर्किटेक्ट मान जाता है. वह संरक्षणवाद (protectionism) और टैरिफ के जरिए अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने के पक्षधर हैं. उनकी सोच है कि हाई टैरिफ विदेशी आयात को महंगा करके अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देगा और नौकरियों का सृजन करेगा.
नैवारो ने रेसिप्रोकल टैरिफ का आइडिया सबसे पहले ट्रंप के सामने रखा था. उन्होंने अन्य देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ के जवाब में समान टैरिफ लगाए जाने की वकालत की थी. इसके पीछे उनका तर्क था कि यह अमेरिका के व्यापार घाटे को संतुलित करेगा और विदेशी देशों को अपनी नीतियां बदलने के लिए मजबूर करेगा.
स्कॉट बेसेंट की इकोनॉमी बूस्ट वाली थ्योरी
अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट राजनीति में आने से पहले हेज फंड मैनेजर हुआ करते थे. वह जॉर्ज सोरोस के साथ भी काम कर चुके हैं. 2015 में उन्होंने अपनी खुद की इन्वेस्टमेंट कंपनी KEY Square Group शुरू की. स्कॉट बेसेंट ट्रंप की टैरिफ नीतियों के समर्थक हैं.
नैवारो के रेसिप्रोकल आइडियो की पैरवी करते हुए बेसेंट ने माना कि टैरिफ से न केवल कारोबार संतुलित होगा बल्कि अमेरिकी इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा. बेसेंट ने वैश्विक स्तर पर रेसिप्रोकल टैरिफ की जमकर वकालत की और इसे जायज ठहराया. टैरिफ के बाद शेयर बाजार में तेज गिरावट के बाद बेसेंट ने बढ़-चढ़कर कहा कि अमेरिका मंदी से नहीं जूझेगा बल्कि देश की इकोनॉमी को इससे फायदा पहुंचेगा.
ट्रंप के वफादार लुटनिक की टैरिफ में क्या थी भूमिका?
अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक इन्वेस्टमेंट बैंकर रहे हैं. वह इन्वेस्टमेंट फर्म कैंटर फिट्जराल्ड के एग्जिक्यूटिव रह चुके हैं. वह लंबे समय से ट्रंप के दोस्त हैं और उनके हर बड़े फैसलों में लुटनिक की भूमिका रही है. उन्हें ट्रंप का वफादार कहा जाता है.
लुटनिक को ट्रंप की मेक अमेरिका ग्रेट अगेन पॉलिसी के तहत टैरिफ का De Facto Face कहा जाता है. वह ट्रंप की उस टीम का हिस्सा हैं, जिसने टैरिफ को लेकर पूरा प्लान तैयार किया. लुटनिक ने टैरिफ को बातचीत के टूल के तौर पर पेश किया, जिसका मकसद अन्य देशों को अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने और व्यापार नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर करना है.
लुटनिक ने चीन और वियतनाम जैसे देशों पर अधिक से अधिक टैरिफ लगाने की वकालत की थी. इसके पीछे उनका तर्क था कि चीन की तुलना में अमेरिका उनके उत्पाद ज्यादा खरीदता है. दोनों देशों के बीच व्यापार बिल्कुल भी संतुलित नहीं है, जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है.
वह ट्रंप की टैरिफ नीति के मुख्य समर्थक और प्रचारक रहे हैं, जो इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी मानते हैं. उन्होंने न केवल इसे लागू करने में मदद की, बल्कि इसे जनता और बाजारों के सामने जायज ठहराने की जिम्मेदारी भी ली.