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विश्व

अगर भूटान ने मान ली चीन की ये बात तो भारत को लगेगा तगड़ा झटका

अगर भूटान ने मान ली चीन की ये बात तो भारत को लगेगा तगड़ा झटका
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चीन ने एक बार फिर से भूटान के पूर्वी हिस्से पर अपना दावा पेश किया है. चीन ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भूटान को एक पैकेज का प्रस्ताव भी दिया है. 1996 में भी चीन ने भूटान के सामने जमीन की अदला-बदली करने का प्रस्ताव रखा था जिसे भूटान ने नामंजूर कर दिया था.
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1996 के प्रस्ताव के तहत, चीन भूटान को उत्तरी सीमा के विवादित क्षेत्र सौंप देगा और बदले में डोकलाम समेत पश्चिमी सीमा के विवादित क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में ले लेगा. अगर चीन फिर से वही डील करने की कोशिश कर रहा है तो भूटान की सहमति भारत के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है.
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हाल ही में, चीन के विदेश मंत्रालय ने भी साकतेंग से लगी पूर्वी सीमा पर अपने दावे को दोहराया है. विश्लेषकों का कहना है कि चीन भूटान पर डील को लेकर राजी करने के लिए दबाव बढ़ाना चाहता है इसीलिए वह भूटान के नए-नए हिस्सों पर दावा पेश कर रहा है.
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चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने मंगलवार को कहा, चीन और भूटान के बीच सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है. भूटान की पूर्वी, पश्चिमी और केंद्रीय हिस्सों को लेकर चीन के साथ सीमा विवाद रहा है. इन विवादों के निपटारे के लिए चीन ने एक पैकेज का प्रस्ताव रखा है.
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यूएनडीपी के ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी की बैठक के दौरान चीन ने भूटान के साकतेंग अभयारण्य को विवादित बताते हुए इसकी फंडिंग रोकने की कोशिश की थी. हालांकि, भारतीय प्रतिनिधि के जरिए भूटान ने इस दावे को खारिज कर दिया जिसके बाद फंडिंग पास कर दी गई.
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1984 से चीन और भूटान की कई दौर की सीमा वार्ता में कभी भी साकतेंग या पूर्वी हिस्से को लेकर कोई मुद्दा नहीं उठा. भूटान के उत्तरी हिस्से पासमलुंग और जाकारलुंग घाटी और पश्चिम में डोकलाम समेत कुछ क्षेत्रों को लेकर ही चीन के साथ सीमा विवाद रहा है. हालांकि, अरुणाचल प्रदेश से लगती भूटान की पूर्वी सीमा को लेकर चीन ने पहले कभी दावा पेश नहीं किया था. कहा जा रहा है कि चीन भूटान के साथ-साथ भारत पर भी दबाव बनाने के लिए ऐसा कर रहा है.
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1996 में 11वें दौर की वार्ता के बाद भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक (वर्तमान राजा के पिता) ने भूटान की नेशनल एसेंबली को सूचित किया था कि चीन उत्तरी घाटियों के 495 वर्गकिमी इलाके को पश्चिम में 269 वर्गकिमी की जमीन से बदलना चाहता है. इस डील से भूटान को जमीन का एक बड़ा हिस्सा मिल जाता और चीन के साथ उसका सीमा विवाद भी सुलझ जाता.
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यह सौदा उसके लिए फायदे का साबित होता लेकिन भारत की चिंता बढ़ जाती. अगर डोकलाम चीन के पास चला जाता तो चीनी सेना की पहुंच सिलीगुड़ी कॉरिडोर के संवेदनशील और रणनीतिक रूप से अहम 'चिकन नेक' तक हो जाती. हालांकि, चीन के विदेश मंत्रालय ने पैकेज समाधान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है लेकिन संभवत: चीन इसी पुरानी डील का जिक्र कर रहा है.
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भूटान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति? पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने समाचार पत्र 'द हिंदू' से बातचीत में कहा, जहां तक मुझे पता है कि कई साल पहले भूटान-चीन के बीच हुई सीमा वार्ता में पैकेज का प्रस्ताव दिया था. इतने सालों में ये पहली बार है जब चीन ने अपने पुराने प्रस्ताव को फिर से दोहराया है. भूटान ने उस वक्त इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था. सरन ने कहा, चीन का मकसद है कि इस समझौते पर भूटान जल्द से जल्द हामी भर दे. चीन भूटान को दिखा रहा है कि अगर वह डील पर सहमति नहीं देता तो वह उसके क्षेत्रों पर इसी तरह अपने दावे का विस्तार करता जाएगा. चीन ने भारत को भी अरुणाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही ऑफर दिया था जिसके बाद ही चीन 1985 से तवांग पर भी दावा पेश करने लगा.
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भूटान के विदेश मंत्रालय ने चीन के इस बयान पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. डोकलाम में भारतीय और चीनी सेना के बीच हुए संघर्ष के बाद से ही भूटान-चीन के बीच सीमा वार्ता नहीं हुई है. इस साल वार्ता होनी थी लेकिन कोरोना वायरस महामारी की वजह से स्थगित हो गई. भूटान के अधिकारियों का कहना है कि जब भी अगले दौर की सीमा वार्ता होगी, उसमें चीन के नए दावे का मुद्दा उठाया जाएगा.
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