प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ की रौनक देखते ही बन रही है. इस साल का महाकुंभ खास इसलिए है क्योंकि 144 साल बाद ऐसा ग्रह योग बना है, जो इस आयोजन को ऐतिहासिक बनाता है. हर 12 साल में एक सामान्य कुंभ मेला होता है, लेकिन 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ का आयोजन होता है.
सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनलों तक, 2025 के महाकुंभ की तस्वीरें और वीडियो छाए हुए हैं. आधुनिक तकनीक से सजे टेंट, लग्जरी रिवर कॉटेज, संगम में तैरते हुए कॉटेज, मोटरबोट और क्रूज, इस बार महाकुंभ के आयोजन में VVIP के लिए भी शानदार इंतजाम किए गए हैं.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आजाद भारत में पहले कुंभ का आयोजन कैसा था? जब महाकुंभ का स्वरूप बिल्कुल अलग था और दूरदर्शन ने इसे पहली बार कवर किया था. इस दिलचस्प पहलू के लिए दूरदर्शन ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर 1954 के कुंभ के कुछ विज्यूल्स शेयर किए हैं, जो उस वक्त के महाकुंभ की तस्वीर पेश करते हैं.
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आजाद भारत का पहला कुंभ
आजाद भारत में पहले कुंभ का आयोजन हुआ था 1954 में. उस समय के मेले में करीब पांच लाख तीर्थ यात्री पहले और आखिरी दिन पहुंचे थे. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उस कुंभ में करीब 1 करोड़ लोग मौजूद थे. खास बात यह थी कि कुंभ मेले की निगरानी के लिए पांच कंप्यूटर सेंटर और 30 इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड लगाए गए थे.
घायलों की प्राथमिकता देने के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे और भले-भटके लोगों की पहचान के लिए लगातार ऐलान हो रहे थे. इस दौरान मेले में लाउडस्पीकर का जाल बिछाया गया था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत पुलिस अधिकारियों के साथ घोड़े पर सवार होकर मेले का निरीक्षण कर रहे थे. उन्होंने नावों में सवार होकर घाटों का निरीक्षण किया और मेले के व्यवस्था का जायजा लिया.
नया और पुराना कुंभ: एक दिलचस्प तुलना
आज जहां कुंभ मेले में आधुनिकता का पूरा असर देखने को मिल रहा है, वहीं 1954 में हर चीज काफी साधारण और पारंपरिक थी. उस वक्त के महाकुंभ की तस्वीरें और आज के महाकुंभ की रौनक, दोनों ही भारतीय संस्कृति की विशालता और समय के बदलाव को दर्शाती हैं.