आज के समय में बॉडी मोडिफिकेशन से जुड़ी तमाम खबरें आ रही हैं. लोग अलग दिखने की होड़ में लिप फिलर करवार होठ मोटे करा रहे हैं, कोई अपनी जीभ के दो हिस्से करवा रहा है, तो कई सिर पर नकली सींघ लगवा रहा है. कुछ लोगों ने तो शरीर के 90 फीसदी से ज्यादा हिस्से को टैटू से कवर करवा लिया. तो किसी ने अपनी उंगलियां ही कटवा लीं.
ऐसा करने वालों को आम लोग मानसिक तौर पर बीमार तक कह देते हैं. लेकिन अब एक स्टडी में जो खुलासा हुआ है, वो काफी हैरान करने वाला है. इसमें पता चला है कि लोग ऐसा प्राचीन समय में भी किया करते थे.
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसी संभावना है कि पश्चिमी यूरोप में पुरापाषाण युग के पुरुषों और महिलाओं ने धार्मिक अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में अपनी उंगलियां काटी थीं. इसके सबूत होने की जानकारी भी दी गई है. ऐसा कहा गया कि गुफाओं में ऐसी सैकड़ों पेंटिंग मिली हैं, जिनमें हाथों का कम से कम एक हिस्सा गायब दिखाया गया है.
कनाडा के वैंकूवर में साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद प्रोफेसर मार्क कोलार्ड ने द गार्जियन को बताया, 'इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इन लोगों ने देवताओं से मदद पाने के इरादे से जानबूझकर अनुष्ठान के तहत अपनी उंगलियां कटवाई होंगी.'
कोलार्ड ने हाल ही में यूरोपियन सोसाइटी फॉर ह्यूमन इवोल्यूशन में अपनी इस स्टडी को लेकर एक पेपर प्रस्तुत किया, जिसमें फ्रांस और स्पेन में 25,000 साल पुराने हाथ से बने चित्रों की बात की गई है. 200 प्रिंट में से प्रत्येक में कम से कम एक उंगली गायब थी. कुछ में केवल ऊपर का हिस्सा गायब दिखा. जबकि कुछ में कई उंगलियां गायब थीं.
उनकी कही ये बातें 2018 की एक स्टडी में भी पब्लिश हुईं. जिसमें कहा गया है कि देवताओं को खुश करने के लिए लोग जानबूझकर अपने शरीर के अंग काट देते थे. कोलार्ड और उनकी पीएचडी स्टूडेंट ब्रे मैककौली ने अन्य हाथों से बने चित्रों के माध्यम से बताया कि ऐसा दूसरे कई प्राचीन समाजों में भी होता था. दोनों ने कहा कि ऐसा प्राचीन समय में भी होता था और आज भी होता है. उन्होंने कहा कि न्यू गिनी हाइलैंड्स की महिलाएं आज भी किसी अपने की मौत के संकेत के तौर पर अपनी उंगलियां काट देती हैं.
इन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि पुरापाषाण काल में यूरोपीय लोग भी यही करते थे. हालांकि ऐसा करने के पीछे की उनकी वजह अलग हो सकती हैं. हम मानते हैं कि ये एक ऐसी प्रथा है, जिसका हमेशा से नियमित तौर पर पालन नहीं हुआ है बल्कि ये इतिहास में विभिन्न समय पर घटित हुई है.'