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ट्रेन, हवाई जहाज या सड़क मार्ग, कैसे पहुंचें सबरीमाला? जानिए यात्रा के लिए जरूरी टिप्स

सबरीमाला की यात्रा आस्था से भरी जरूर है, लेकिन इसके रास्ते, नियम और व्यवस्थाएं इसे चुनौतीपूर्ण भी बना देती हैं. ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि दर्शन के दौरान किसी उलझन या परेशानी का सामना न करना पड़े, तो इस यात्रा से जुड़ी कुछ जरूरी बातें जान लेना आपके लिए बेहद काम का हो सकता है.

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मकरविलक्कू उत्सव के लिए आज शाम खुलेंगे सबरीमाला के कपाट (Photo: keralatourism.org)
मकरविलक्कू उत्सव के लिए आज शाम खुलेंगे सबरीमाला के कपाट (Photo: keralatourism.org)

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर के कपाट 30 दिसंबर की शाम को वार्षिक मकरविलक्कू उत्सव के लिए खोल दिए जाएंगे. आपको बता दें कि इससे पहले 26 दिसंबर को मंडल पूजा संपन्न होने के बाद मंदिर को कुछ समय के लिए बंद किया गया था, लेकिन अब मकर संक्रांति के पावन अवसर तक यहां आस्था का सैलाब उमड़ने वाला है. यह तीर्थयात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा और कठिन अनुशासन का मेल है जहां लाखों लोग घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों के बीच से होकर अपने आराध्य के दर्शन करने पहुंचते हैं.

इस पावन यात्रा की शुरुआत पंबा नदी के किनारे से होती है जहां भक्त डुबकी लगाकर अपनी चढ़ाई शुरू करते हैं और फिर 18 पवित्र सीढ़ियों को पार कर मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं. चूंकि यह मंदिर पेरियार टाइगर रिजर्व के बीच स्थित है, इसलिए यहां के नियम और रास्ते काफी चुनौतीपूर्ण होते हैं, जो इस सफर को अन्य मंदिरों की तुलना में अलग बनाते हैं. ऐसे में अगर आप भी इस साल सबरीमाला जाने का विचार कर रहे हैं, तो कुछ जरूरी बातों को समझना बहुत आवश्यक है ताकि आपका सफर सुगम और सुरक्षित रह सके.

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कठिन परंपराओं के बीच मकरज्योति के दिव्य दर्शन का संयोग

सबरीमाला मंदिर की यात्रा पर निकलने से पहले जो सबसे बड़ी और पहली बात आपको जाननी चाहिए, वह है यहां के कड़े नियम और 41 दिनों का कठिन मंडल काल व्रत. मान्यता है कि जो भी भक्त यहां आता है उसे सात्विक भोजन, काले वस्त्र और नंगे पैर चलने जैसे अनुशासन का पालन करना होता है और साथ ही अपने साथ इरुमुडी केट्टू यानी प्रसाद की पवित्र पोटली लानी होती है, क्योंकि इसके बिना 18 सीढ़ियों पर चढ़ने की अनुमति नहीं मिलती. यह अनुशासन ही भक्तों को मानसिक और शारीरिक रूप से उस कठिन रास्ते के लिए तैयार करता है जो करिमाला और नीलिमाला जैसी पहाड़ियों से होकर गुजरता है.

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इस बार मकरविलक्कू उत्सव का मुख्य आकर्षण मकर संक्रांति के दिन पोन्नम्बलमेडु पहाड़ी पर जलने वाली दिव्य 'मकरज्योति' होगी, जिसे देखना हर श्रद्धालु अपना सौभाग्य मानता है और इस साल भी इसके दर्शन के लिए प्रशासन ने खास इंतजाम किए हैं.

यही नहीं, मंदिर की परंपराओं में रात के समय गाया जाने वाला 'हरिवरसनम' भजन भी बेहद खास है, जो भगवान अय्यप्पा की लोरी की तरह काम करता है और इसके खत्म होते ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. आस्था के इस माहौल में सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा गया है क्योंकि मंदिर घने जंगलों के बीच है, इसलिए रास्तों पर रोशनी और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएं बढ़ाई गई हैं.

दर्शन की व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए वर्चुअल क्यू बुकिंग को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि घंटों लंबी लाइनों में भक्तों को कम से कम परेशानी का सामना करना पड़े. इस दिव्य अनुभव को करीब से महसूस करने के लिए भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे मंदिर के खुलने और बंद होने के समय का विशेष ध्यान रखें, जो अक्सर मलयालम पंचांग के आधार पर तय होता है.

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हवाई सफर से लेकर जंगल के रास्तों तक ऐसे तय करें अपना सफर

जब बात सबरीमाला पहुंचने की आती है, तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क, रेल और हवाई तीनों ही विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अंतिम 5 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई सबके लिए अनिवार्य है. जो लोग हवाई मार्ग से आना चाहते हैं उनके लिए कोच्चि और तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट सबसे नजदीकी विकल्प हैं, जहां से लगभग 150 से 170 किलोमीटर का सफर सड़क मार्ग से तय कर आप पंबा पहुंच सकते हैं. वहीं अगर आप ट्रेन से आने की योजना बना रहे हैं, तो कोट्टयम, तिरुवल्ला या चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन पर उतरना आपके लिए सबसे सुविधाजनक होगा क्योंकि यहां से मंदिर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर रह जाती है. इन स्टेशनों से मंदिर तक पहुंचने के लिए लगातार सरकारी बसें और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध रहती हैं जो श्रद्धालुओं को बिना किसी रुकावट के उनके गंतव्य तक पहुंचाती हैं.

सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एरुमेलि, वण्डिप्पेरियार और चालक्कयम जैसे तीन मुख्य रास्ते हैं, जिनमें से चालक्कयम वाला रास्ता सबसे आसान माना जाता है क्योंकि यह सीधे पंबा नदी के करीब ले जाता है. तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आने वाले भक्त अक्सर अपने निजी वाहनों या विशेष बसों का सहारा लेते हैं, जिन्हें केवल पंबा तक ले जाने की अनुमति दी जाती है. यहां पहुंचने के बाद पवित्र पंबा नदी में स्नान करना एक अनिवार्य परंपरा है, जिसके बाद ही असली चढ़ाई शुरू होती है.

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ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि पहाड़ी इलाकों में मौसम और सुरक्षा को देखते हुए रात के समय चढ़ाई करने से बचना चाहिए और प्रशासन द्वारा दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए. इन छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखकर आप अपनी सबरीमाला यात्रा को न केवल सफल बना सकते हैं बल्कि भगवान अय्यप्पा के दर्शन का वह सुखद अनुभव भी पा सकते हैं जिसकी यादें जीवन भर आपके साथ रहेंगी.

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